काल्पनिक कहानी - विधवा हुई सुहागिन

काल्पनिक कहानी - विधवा हुई सुहागिन

Jun 15, 2024 - 07:59
 0  42
काल्पनिक कहानी  -  विधवा हुई सुहागिन
काल्पनिक कहानी  -  विधवा हुई सुहागिन
Follow:

काल्पनिक कहानी - 

विधवा हुई सुहागिन 

जून का महीना था। भयंकर गर्मी का मौसम था। सुबह 11 बजे का समय था। कैप्टन ठाकुर बलदेव सिंह चौहान ने सेंट्रल बैंक में जाकर काउंटर पर जैसे ही चेक कैसियर को दिया । उसी समय बैंक के चपरासी ने आकर धीरे से कैप्टन साहब से कहा -- आपको मैनेजर साहब याद कर रहे हैं ।कैसियर को चेक देने के बाद चपरासी के साथ कैप्टन ठाकुर बलदेव सिंह बैंक मैनेजर के चेंबर में पहुंचे ।

बैंक मैनेजर ने उठा कर ठाकुर कैप्टन साहब से हाथ मिला कर स्वागत किया और सामने की कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। बैंक मैनेजर के सामने की कुर्सी पर बैठते हुए कैप्टन साहब ने बैंक मैनेजर से कहा- कहिए कैसा याद फरमाया। बैंक मैनेजर मुस्कुराते हुए असिस्टेंट मैनेजर की और इशारा करते हुए हुए बोले -- आप का परिचय मैं अपने इन असिस्टेंट मैनेजर से कराना चाहता हूं ।मथुरा से ट्रांसफर होकर ठाकुर वीरेंद्र सिंह इस बैंकमें आ गए हैं । इन्हें रहने के लिए किराए के मकान की जरूरत है। आप की कोठी का ऊपर का हिस्सा खाली पड़ा हुआ है । इन्हें किराए पर दे दीजिए।

असिस्टेंट मैनेजर वीरेंद्र सिंह ने ठाकुर कैप्टन साहब के हाथ जोड़ते हुए नमस्ते किया ।फिर मैनेजर साहब ने अपने असिस्टेंट मैनेजर से कहा - 80 वर्षीय कैप्टन साहब को मैं अपने पिता के समान मानता हूं। होली दिवाली पर कैप्टन साहब की कोठी पर जाकर कैप्टन साहब तथा इनकी 75 वर्षीय धर्म पत्नी के पैर छूता हूं। इतना सुनकर असिस्टेंट मैनेजर ने कुर्सी से उठकर कैप्टन साहब के पैर छुए और बोला -मैं भी कैप्टन साहब को पिता के सामान ही मानूंगा ।सदैव आदर करूंगा। असिस्टेंट मैनेजर के सद व्यवहार को देखकर कैप्टन साहब सोचते हुए बोले- मैं कोठी का ऊपर हिस्सा आज तक किराए पर कभी नहीं उठाया है।

क्योंकि कोठी के ऊपर के हिस्से में जाने के लिए आगन से ही जाने का रास्ता है। आने जाने में इन को परेशानी होगी। बीच में ही मैनेजर साहब बोल उठे-- -यह परिवार की तरह से रहेगे ।आपको कोई परेशानी नहीं होने देंगे। कैप्टन साहब बोले -तो ठीक है। कल आकर कोठी के ऊपर का हिस्सा देख ले। सही लगे तो रहने के लिए आ जाए। इतना कहकर कैप्टन साहब उठकर कैशियर के काउंटर पर जाकर रुपया लेकर चले गए। दूसरे दिन असिस्टेंट मैनेजर ठाकुर वीरेंद्र सिंह अपनी 45 वर्षीय पत्नी रामकली 19 वर्षीय बेटी दिव्या को लेकर कैप्टन साहब की कोठी पर पहुंच गये। पति-पत्नी ने मिलकर कैप्टन साहब तथा उनकी पत्नी के पैर छुए ।कैप्टन साहब के लड़के धर्मेंद्र सिंह के साथ कोठी के ऊपर जाकर कमरों रसोई घर बाथम रूम को देखा।

सब पोर्शन देखने के बाद असिस्टेंट मैनेजर अपनी पत्नी पुत्री से बोले -रहने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था है। असिस्टेंट मैनेजर ने अपनी पुत्री दिव्या से धर्मेंद्र से परिचय कराते हुए कहा-- यह बी ए करने के बाद अब एमए .में एडमिशन लेगी। दिव्या ने हाथ जोड़कर धर्मेंद्र से नमस्ते की। दिव्या के मधुर शिष्टाचार को देखते हुए धर्मेंद्र ने दिव्या की माता तथा पिता के पैर छुए और दिव्या से नमस्ते की । धर्मेंद्र ने दिव्या से कहा-- मैं भी एमए. फाइनल में पढ़ रहा हूं। दिव्या ने कहा किस सब्जेक्ट से। धर्मेंद्र कहा- हिंदी सब्जेक्ट से । दिव्या बोली-- मैं भी हिंदी सब्जेक्ट.से एमए फर्स्ट ईयर में एडमिशन लूंगी। आपसे अच्छी गाइडेंस मिलती रहेगी ।धर्मेंद्र मुस्काया कोई जवाब नहीं दिया ।

असिस्टेंट मैनेजर वीरेंद्र ने कोठी से नीचे उतर कर कैप्टन साहब से आकर बोले -आपने कोठी बहुत अच्छे ढंग से बनवाई है। सब जगह सब व्यवस्था कर रखी है ।कैप्टन साहब बोले यह कोठे मेरे बाबा कैप्टनविक्रम सिंह द्वारा बनाई गई है ।मेरे बाबा बहुत शाही मिजाज के थे। उसी प्रकार मेरे पिताजी ने इसकोठी की मेंटेनेंस अच्छी तरह से रखी ।मैं भी 80 वर्ष की उम्र में कोठी की मेंटेनेंस अच्छी तरह से रख रहा हूं । असिस्टेंट मैनेजर बोला- अभी मैं एक रिश्तेदारी में रुका हुआ हूं । कल मथुरा जाकर सभी सामान लाऊंगा। आपकी आज्ञा हो तो इस कोठी में आ जाऊंगा। कैप्टन साहब बोले - कोठी को अपना समझ कर जब तक चाहो रहो।

मैं तुम्हारी बातचीत व्यवहार से बहुत खुश हूं । इसी प्रकार से बनाए रखना। असिस्टेंट मैनेजर बोला- मुझ से मेरे परिवार से कभी ऐसी चूक नहीं होगी। जिससे आप लोगों को दुख पहुंचे। मैं तो परिवार समझ कर ही परिवार में रहूंगा। इतना कहकर असिस्टेंट मैनेजर चले गए।फिर 3 दिन के बाद ट्रक में सामान भरकर असिस्टेंट मैनेजर आ गए और कोठी के ऊपर के हिस्से में अपना सामान लगा दिया। नीचे उतर कर कैप्टन साहब और उनकी पत्नी के पैर छुए। कैप्टन साहब असिस्टेंट मैनेजर से बोले -आज शाम के समय आप सब का खाना नीचे रहेगा ।अभी चाय पीजिए। असिस्टेंट मैनेजर उनकी पत्नी तथा पुत्री ने कैप्टन साहब के परिवार के साथ चाय पी।

शाम के समय सभी ने एक मेज पर बैठकर भोजन किया। भोजन करते समय असिस्टेंट मैनेजर की पुत्री दिव्या ने कैप्टन साहब से कहा- बाबूजी कल मेरा एडमिशन कॉलेज में कराने की कृपा करें। पिताजी की अभी किसी से जान पहचान नहीं है । कैप्टन साहब ने दिव्या की ओर देखते हुए अपने लड़के से कहा- कल तुम कॉलेज जाकर दिव्या बेटी का एडमिशन करा देना । दूसरे दिन कैप्टन साहब के लड़के धर्मेंद्र ने गाड़ी निकाली और दिव्या को अपने पास की सीट पर बैठा कर कॉलेज जाकर एडमिशन करा दिया। रास्ते भर दोनोंकीखूब बातें होती रही। धर्मेंद्र ने दिव्या से कहा -कल मेरे साथ ही कॉलेज चलना। मैं तुम्हारा तुम्हारे क्लास के छात्रों से परिचय करा दूंगा।

मैं कॉलेज यूनियन का प्रेसिडेंट हूं। इसीलिए सभी छात्र छात्राएं मेरा सम्मान करते हैं। धर्मेंद्र की बातों को सुनकर दिव्या मुस्काई और बोली ---जब सभी छात्र-छात्राएं आपका सम्मान करती है तो मैं भी तहे दिल से आपका सम्मान करूंगी। आप जो कहेगे मैं वही किया करूंगी। दिव्या की बातों पर धर्मेंद्र बड़ी जोर से मुस्काया और बोला- तब तो बहुत अच्छा रहेगा ।हम दोनों की खूब पटेगी ।कल यूनियन की बैठक हो रही है ।मैं तुम्हें उप महामंत्री का का पद दिला दूंगा और तुम मेरे कैबिनेट की उप महामंत्री रहोगी ।महामंत्री उषा त्रिपाठी है। जो संगठन को काफी मजबूत किए हुए हैं। दिव्या बोली- मथुरा के कॉलेज यूनियन में मैं भीसंगठन मंत्री रह चुकी हूं ।

धर्मेंद्र बोला -तो बहुत ठीक है। रास्ते भर धर्मेंद्र और दिव्या में काफी बातें होती रही ।जिस से दोनों आपस में काफी घुल मिल गए। एक दिन ऐसा हुआ कैप्टन साहब और उनकी पत्नी किसी विवाह समारोह में गई हुई थी ।धर्मेंद्र अकेला कमरे में लेटा हुआ था । अचानक उसे मलेरिया का प्रकोप हो गया । कपकपी मिटाने के लिए कमल औढ कर लेट गया । रात के 8:00 बज रहे थे ।असिस्टेंट मैनेजर ने दरवाजे की काफी कुंडी खटखटाई ।जब कुंडी खुली नहीं तो ऊपर की कॉल बैल बजाई ।दिव्या ने ऊपर से उतरकर दरवाजे की कुंडी खोली ।जब असिस्टेंट मैनेजर ऊपर जा जाने के लिए आगन से गुजरे तो उन्होंने देखा कि धर्मेंद्र कमर ओढ़े हुए कांप रहा है ।तो उन्होंने पास आकर जब उसके माथे पर हाथ रखा तो देखा काफी तेज बुखार है ।

असिस्टेंट मैनेजर ने दिव्या से कहा - तुम ऊपर जाकर एक कटोरी में पानी लाकर रुमाल भिगोकर इसके माथे पर रखो। मैं डॉक्टर लेने जा रहा हूं ।दिव्या एक कटोरी में पानी लाकर उसमे रुमाल भिजा कर धर्मेंद्र के माथे पर रखने लगी। कुछ बुखार हल्का होने लगा ।तो धर्मेंद्र दिव्या का हाथ पकड़ कर कहा- रहने दीजिए। दिव्या बोली - पिताजी डॉक्टर को लेने गए हैं। आते ही होंगे ।मैं तुम्हारीउपमहामंत्री हूं। इसलिए मुझेबुखार उतारने के लिए यह सब करने दीजिए। दिव्या का अपनत्व देखकर धर्मेंद्र का मौन प्रेम का अंकुर अपनत्व में बदल गया। थोड़ी देर बाद डॉक्टर साहब आगये।

धर्मेंद्र को डॉक्टर साहब ने इंजेक्शन लगाया और असिस्टेंट मैनेजर साहब से बोले-- इन्हें मलेरिया का बुखार है। बहुत जल्दी उतर जाएगा। घबराने की कोई बात नहीं है ।दवा देकर डॉक्टर चले गए । असिस्टेंट मैनेजर और दिव्या रात भर धर्मेंद्र के पास ही रहे और उनको दवाई आदि देते रहे ।सुबह के समय धर्मेंद्र का बुखार उतर गया। थोड़ी देर के बाद विवाह समारोह से धर्मेंद्र के पिता और माता लौट आई ।जब उन्होंने असिस्टेंट मैनेजर के व्यवहार के विषय में सुना तो उन्हें असिस्टेंट मैनेजरकेपरिवार से काफी लगाव हो गया । समय चक्र बड़ी तेजी से घूम रहा था ।दिव्या और धर्मेंद्र में मौनता लिए हुए प्यार का अंकुर बड़ी तेजी से बढ़ रहा था ।असिस्टेंट मैनेजर और उनकी पत्नी दिव्या धर्मेंद्र की सुंदर जोड़ी देखकर दोनों केविवाह करने की कल्पना करने लगे थे।

दबी जुबान से कैप्टन साहब की पत्नी से दोनों के विवाह की चर्चाएं भी करने लगे थे। तभी एक दिन अचानक कैशियर साहब का ट्रांसफर कानपुर को हो गया। दिव्या की फाइनल परीक्षाएं समाप्त होने पर असिस्टेंट मैनेजर साहब अपने पूरे परिवार के साथ कानपुर को चले गए। दिव्या और धर्मेंद्र के मौन प्यार के सपने धीरे-धीरे बढ़ते रहे । दिव्या और धर्मेंद्र की मोबाइल से आए दिन बातें होती रही। दिव्या जब भी मोबाइल से विवाह की बात करती तो धर्मेंद्र कहदेता जब तक आईएएस नहीं हो जाएगा तब तक शादी नहीं करूंगा ।धर्मेंद्रअपनीआईएएस की तैयारी में लग गया। दिव्या ने भी एक प्राइवेट कॉलेज में एमए फर्स्ट क्लास की डिग्री लेकर हिंदी प्रवक्ता की नौकरी पाली।

असिस्टेंट मैनेजर ने दिव्या के बहुत मना करने के बाद भी उसी के कॉलेज के एक लेक्चर से उसकी शादी कर दी। भाग्य और समय चक्र को कोई नहींजानता आगे क्या होने वाला है ? दिव्या की शादी हुये 1 वर्ष भी नहीं हुआ था की एक मार्ग दुर्घटना में दिव्या के पति की दुखद मौत हो गई और दिव्या विधवा हो गई। दिव्या के मायके ससुराल परिवार में मातम छा गया ।दिव्या के ससुराल वाले दिव्या को एक कलंकिनी बहू की रूप में देखने लगे और दिव्या को ससुराल से निकालकर उसको मायके भेज दिया । असिस्टेंट मैनेजर ने दिव्या के ससुराली जनों के प्रकोप से बचने के लिए अपना ट्रांसफर कानपुर से अलीगढ़ करा लिया और दिव्या को लेकर अलीगढ़ में एक अपने पुराने मकान मे रहने लगे। दिव्या ने भी ससुराली जनों के कारण प्रवक्ता की नौकरी छोड़ दी ।

अलीगढ़ में आकर एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में हिंदी के एक साधारण अध्यापिका बन गई और अपने पिता के साथ आकर रहने लगी। दिव्या का मोबाइल खो जाने से धर्मेंद्र सिंह से बातचीत का सिलसिला भीटूट गया था। एक दिन जब दिव्या अपनी सहेली के यहां जाने के लिए बस स्टैंड के पास रियो होटल से गुजर रही थी तभी रियो होटल से निकले धर्मेंद्र की निगाह दिव्या पर जा पहुंची और दिव्या के पास आने पर धर्मेंद्र ने दिव्या से पूछा -तुम यहां कैसी? धर्मेंद्र को पहचानते हुए दिव्या ने भी पूछा- आप यहां कैसे ?मैं तो अपने पिताजी के साथ अलीगढ़ में रह रही हूं ।

धर्मेंद्र मुस्काया और दिव्या से बोला -तुम देखती नहीं हो ।जीप पर क्या लिखा है। मैं अलीगढ़ का अभी ट्रेनिंग मे सिटी मजिस्ट्रेट हूं ।मैं तुम्हारे प्रेम दुआओं से आईएस बन गया हूं। दिव्या मुस्काई और बोली --तुमने तो अपनी मंजिल पाली- लेकिन मैंने तो अपनी मंजिल पाकर भी खोदी। समय भाग्य चक्र का खेल है । धर्मेंद्र दिव्या से बोला -तुम तो बहुत बड़ी निराशा की बातें कर रही हो ।मैं कुछ समझा नहीं। दिव्या बोली -समय हो तो घर चलो। मैं पूरी बातें वही बताऊंगी। धर्मेंद्र बोला -तुम्हारे घर क्यों नहीं चलूंगा? अपनी खुशी तुम्हारे पिताजी माताजी को क्यों नहीं बताऊंगा? मुझे अभी तक तुम्हारा कोई रहने का ठिकाना पता नहीं था ।नहीं तो मैं खुद आता और तुम्हारे पिताजी के पैर छूता ।उनकी ही दुआओं से मैं आईएस बनाहू।

मेरी जीप पर बैठो तुम्हारे घर चलूंगा। दिव्या जीप पर बैठ गई। धर्मेंद्र दिव्या को लेकर दिव्या के घर पहुंचा। दिव्या के माता पिता के पैर छुए। असिस्टेंट मैनेजर तथा उनकी पत्नी ने धर्मेंद्र के सिर पर हाथ फेरते हुएउन्हें दुआएं दी और अपने पलंग पर बैठा कर कहा- बेटा धर्मेंद्र! हम तो बर्बाद हो गए। मेरी फूल सी बेटी शादी होने के 1 साल बाद ही विधवा हो गई। ससुरालियों ने ऐसे कलंकिनी बता कर घर से निकाल दिया । अब मैं अपने इस पुराने मकान में गुजर-बसर कर रहा हूं। धर्मेंद्र के आंखों में असिस्टेंट मैनेजर की करूण कथा सुनकर आंखों में आंसू आ गए। आंसू पोछते हुए धर्मेंद्र असिस्टेंट मैनेजर से दिव्या की ओर देखते हुए बोला- बाबूजी आप निराश नहीं हो। रात के बाद सवेरा होता है। सूर्य ढलने के बाद सुबह नया सूर्य निकलता है। अगर आप कहें तो दिव्या का हाथ आज ही मैं थामना चाहता हूं ।

दिव्या मेरे लिए पवित्र है ।कलंकिनी नहीं है । दिव्या से आज भी मैं प्यार करता हूं ।असिस्टेंट मैनेजर बोले- बेटा तुम तो यह कह रहे हो लेकिन कैप्टन साहब एक विधवा से तुम्हारी शादी करने को तैयार नहीं होंगे ।धर्मेंद्र ने फौरन कैप्टन पिताजी को फोन मिलाया ।उन्हें असिस्टेंट मैनेजर की पूरी करुणा कथा बताईऔर दिव्या के जीवन में नई किरण लाने के लिए उसके साथ शादी करने की बात भी बताई। पूरी बात सुन कर कैप्टन साहब बोले -असिस्टेंट मैनेजर से कह दो- दिव्या को लेकर फिरअपनी उसी पुरानी कोठी पर आ जाएं।

दिव्या और धर्मेंद्र की धूमधाम से शादी होगी। बेटा तुम्हारा सोच बहुत सही है ।दिव्या जैसी बहू को पाकर मैं बहुत धन्य हो जाऊंगा । कैप्टन साहब के निर्णय को सुनकर असिस्टेंट मैनेजर तथा उनकी पत्नी खुशी से उछल पड़ी। पास खड़ी दिव्या मुरझाई कली की तरह से खिल उठी। भाग्य चक्र के खेल में खुशी में सभी के आंसू निकल पड़े। खुले विचार से दोनों की धूमधाम से शादी हुई। विधवा दिव्या फिर सुहागिन हो गई।

 बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी