अहम का वहम
अहम का वहम
अहं वृत्ति से ग्रस्त इन्सान इस वहम में रहता है कि वह लोगों के लिए ‘अहम’ हैं ( मेरे बिना किसी का काम पूर्ण नहीं होता ) परन्तु हक़ीक़त यह हैं कि वह नहीं समझता कि कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं किसी को कि वह है कि नहीं कहीं। वास्तिवकता यह है कि किसी को जितनी जरुरत होती है उसकी उतनी ही अहमियत होती है । जो अहम के आसमानों में उड़ते है उनको जमीन पर आने में वक्त नही लगता है ।
हर तरह का वक्त आता हैं जीवन में, वक्त के गुजरने में वक्त नही लगता है । समय बहाकर ले जाता हैं, नाम और निशान, कोई हम में रह जाता हैं, कोई अहम में, हम नम्र रहें,विनम्र रहें । अतः हम अपने पैसे का धन वैभव एवं पद आदि का घमंड न करें, ये आज है और कल नही लेकिन मधुर संबंध आज भी काम आएंगे और कल भी, हम सभी के साथ आत्मीयता के साथ व्यवहार करें,सभी को अपना बनाकर अपने विवेक से शालीनता का परिचय दें।
इंसान के सद्दविचार में वह शक्ती है जिससे जीवन में ऋजु स्वभाव,मधुर संभाषण , निश्छल वृत्ति,अहंकार मुक्ति , संयम-सादगी ,शिष्ट व्यवहार, उच्च विचार ,अनाग्रही चिंतन ,बड़ों के सम्मान ,छोटों की वत्सलता आदि आते है । यह जीवन को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के मुख्य घटक मन एवं विचारों की शुद्धि है क्योंकि हमारी वाणी - -व्यवहार-आचरण जीवन में अनमोल सौग़ात है,अमुल्य मोती है,और इससे जीवन पर सार्थक प्रभाव पड़ता है ।
शांत व सहज जीवन एवं मज़बूत नींव वाली महा शक्ति सी इमारत बनती हैं । इसलिए विचार करने से पहले यह सजगता हो की जो हम सोच रहे है जो हम कर है वह कहीं अहम से ओत - प्रोत तो नही है । हमारा हर विचार व वाक्य,सरल-स्पष्ट-बोधगम्य होना चाहिए । इसलिये किसी ने ठीक ही कहा है कि न वक्त की गर्दिश, न जमाना बदला, पेड़ सूखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला । प्रदीप छाजेड़