यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
भारतीय संस्कृति में नारी का विशेष सम्मान किया गया है ।जन्म से मृत्यु तक की, सुबह से शाम तक की, हमारी हर मुख्य चर्यायों का नारी आधारित नाम दिया गया है । जैसे समझदार बनने के लिए विद्या की आवश्यकता होती है फिर जीविका के लिए लक्ष्मी की जरूरत होती है आदि - आदि । वैसे तो हज़ारो फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए, हज़ारो दीपक चाहिए एक आरती सजाने के लिए, हज़ारो बून्द चाहिए समुद्र बनाने के लिए पर कितना सही हैं एक स्त्री अकेली ही काफी है घर को स्वर्ग बनाने के लिए ।
महिलाओ ने आज बहुत अपने आपको सफलता की उच्चाइयों तक पहुंचाया है,शिक्षा के क्षेत्र में हो या कोई भी ओर क्षेत्र, लेकिन उसका श्रेय पुरुष वर्ग को भी जाता है,उनका सहयोग भी अपेक्षित है महिला की जिंदगी में।महिला और पुरुष दोनों का सहयोग सोने में सुहागा बनता है ।पुरुष अपनी कुर्बानियां देकर नारी को आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध हुए हैं।
गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी जी के अवदानों को आज हमें स्मृति पटल पर पुनः जीवित करने की अपेक्षा है,शिक्षा के क्षेत्र में,पर्दाप्रथा ,आत्मोत्थान,जागृति आदि सभी क्षेत्रों में उन्होंने नारी जाति के उत्थान में अपना बहुत बड़ा काम किया। औरत जिससे सारा संसार ज्यीतिर्मय है अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि वह जननी है , नारी नहीं तो कुछ भी नहीं।तभी तो कहा है कि सोशल मिडिया का गूगल तो मनुष्य का बनाया हुआ हैं पर धर-परिवार को सहेजने का गूगल नारी के रूप में स्वयं भगवान ने बनाया हैं ।
इसलिये अंत में मैं यही कहूँगा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता:।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )