मित्र विश्वास घात- मित्रता हुई कलंकित
कहानी=+=+
मित्र विश्वास घात- मित्रता हुई कलंकित
रामपुर ब्लाक में पंडित जयदेव एडियो पंचायत तथा ठाकुर रामाशंकर एडियो सहकारिता दोनों घनिष्ठ मित्र थे। दोनों एक ही मोटरसाइकिल पर क्षेत्र में जाया करते थे। ठाकुर रमाशंकर अपनी सहकारी समितियों का निरीक्षण किया करते थे।प0 जयदेव उसी गांव की पंचायत का निरीक्षण किया करते थे । शाम के समय दोर्नो अपने अपने क्वाटर पर लौट आते थे। साथ साथ एक ही होटल पर भोजन करने जाया करते थे। रमाशंकर के क्वार्टर पर शाम के समय कुछ सहकारिता सचिव आ जाया करते थे ।
जयदेव भी वक्त काटने को रामा शंकर के क्वार्टर पर पहुंच जाया करते थे । सभी मिलकर ताश खेला करते थे ।कभी-कभी सचिवों के साथअंग्रेजी शराब पीने का भी शौक फरमा लेते थे। इस प्रकार प0जयदेव तथाठा0 रमाशंकर दोनों मित्र अपनी जिंदगी को बड़ी ऐसो आराम से कट रहे थे। पंडित जयदेव की उम्र 30 वर्ष की थीऔरशादीशुदा थे ।पिता की मृत्यु होने के कारण पत्नी को गांव में ही माता की सेवा के लिए छोड़ आए थे औरब्लॉक के क्वार्टर में अकेले रह रहे थे। रमाशंकर की उम्र 28 वर्ष की थी लेकिन कुंवारे थे और वह भी ब्लॉक क्वार्टर में अकेले रह रहे थे ।
इसीलिए दोनों मित्रों की आपस में खूब पट रही थी। समय बहुत तेजी से दौड़ रहा था। एक दिन ऐसा हुआ जब दोनों मित्र मोटरसाइकिल से क्षेत्र से लौट रहे थे ।नीलगाय के सामने आ जाने से नीलगाय को बचाने के लिए मोटर साइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और दोनों एक खेत में जाकर गिर पड़े ।इस दुर्घटना में जयदेव के पैर में फ्रैक्चर हो गया लेकिन रमाशंकर बाल-बाल बच गए। लेकिन जब यह खबर है जयदेव के गांव में पहुंची तो उनके बड़े भाई रामदेव जय देव की पत्नी सुषमा को साथ में लेकर आ गए और जयदेव का इलाज एक अच्छे डॉक्टर को दिखाकर कराने लगे ।
जयदेव के बड़े भाई रामदेव ने क्वार्टर पर सभी गृहस्तीकासामान लाकर डाल दिया और क्वार्टर पर ही सभीप्रकार की भोजन व्यवस्था कर दी। 15 दिन के बाद जब जयदेव स्वस्थ हो गए तो उनके बड़े भाई रामदेव जय देव की पत्नीसुषमाको जयदेव के पास छोड़कर गांव लौट गए ।जयदेव ने अपने बड़े भाई से बहुत कहा था कि सुषमा को साथ ले जाए लेकिन बड़े भाई ने यह कह दिया था की माता जी की सेवा तुम्हारी भाभी द्वारा होती रहेगी। तुम चिंता मत करो । बहू पढ़ी-लिखी होशियार है । सब गृहस्थी संभाल लेगी. । तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी । जेठ राम देव के चले जाने के बाद सुषमा ने घर गृहस्थी का काम बड़ी अच्छी तरह से संभाल लिया और जय जयदेव पति की सेवा में लग गई। एक दिन जयदेव ने अपनी पत्नी से कहा -रमाशंकर एडियो उसका बहुत अच्छा मित्र है और उसे बड़े भाई की तरह से मानता है ।
अगर तुम कहो तो उस के खाने की व्यवस्था अपने घर में कर ली जाए ।बेचारा होटल पर खाना खाने जाता है। सुशील धार्मिक पत्नी होने के कारण सुषमा ने पति से कह दिया- जैसा आप उचित समझें वैसा आप करें। मुझे कोई परेशानी नहीं होगी । जयदेव ने अपने मित्र रमाशंकर से अपने साथ खाना खाने के लिए कह दिया । जब रमाशंकर खाना खाने के लिए जयदेव के क्वार्टर पर आया तो उसने जयदेव की 25 वर्षीय अति सुंदर रूपवती पत्नी को जब देखा तो देखता ही रह गया । एडियो रमाशंकर ने भाभी कहते हुए सुषमा के पैर छुए और रसोई घर में जाकर जयदेव के साथ खाना खाया।
इस प्रकार वह प्रतिदिन जयदेव के घर पर आने जाने लगा। एक दिन रमाशंकर बहुत सुंदर सी साड़ी और गले का सोने हार लेकर आया और उसने जयदेव से कहा यह सब उपहार में भावी को लाया हूं ।भाभी जीको देदीजिए। मैं चाहता हूं यह सोने का हार भाभी के गले में मैं ही पहनाऊ। जयदेव बोला- सुषमा तुम्हारी भाभी है ।मुझसे पूछने की क्या जरूरत है? शौक से उसके गले में हार पहन आइए । सुषमा ने पहलेमना किया। लेकिन जयदेव के बार बार कहने पर सुषमा ने रमाशंकर के हाथ से हार पहन लिया ।रामाशंकर ने सुषमा की तारीफ के पुल बांध दिए ।अपनी तारीफ सुनकर सुषमा बहुत खुश हो गई ।
सुषमाऔररमाशंकर का देवर भाभी का रिश्ता और प्रकांड होने लगा ।रमाशंकर कभी-कभी भाभी से मजाक भी करने लगा ।जयदेव यह सब देख कर बड़ा खुश रहने लगा ।रामाशंकर के धीरे-धीरे हौसले बढ़ने लगे । कभी-कभी एकांत में पाकर रमाशंकर सुषमा के साथ काफी छेड़छाड़ करने लगे।एक दिन तो जब जयदेव घर पर नहीं था। सुषमा को अकेले पाकर रमाशंकर ने सुषमा को अपने बाहु पास में लेकर जोरा बरी चुंबन भी ले लिया। सुषमा को यह सब बात बुरी लगी। लेकिन कुछ कह न सकी ।रमाशंकर की रोज की इन इन हरकतों को देखकर सुषमा ने अपने पति से कहा -तुम्हारे मित्र की नियत मुझे अच्छी नहीं लगती है ।
कभी-कभी बहुत गलत हरकत कर जाता है। तुम्हारे कारण मैं उस से कुछ कह नहीं पाती हूं। जयदेव हंसा और बोला -देवर भाभी की हंसी मजाक तो होती ही रहती है। इसमें बुरा मत माना करो ।रमाशंकर मेरा छोटा भाई की तरह से मित्र है। मुझे प्रतिदिन अपनी मोटरसाइकिल से क्षेत्र में ले जाता है । हर तरह से मेरी इज्जत करता है ।पति की बातों को सुनकर सुषमा चुप रह गई। कुछ आगे नहीं कह सकी । एक दिन जयदेव एडियो सरकारी काम से 10 दिन के लिए हेड क्वार्टर जाने लगा तो उसने बुला कर रमाशंकर से कहा -अपनी भाभी का ध्यान रखना और वह इतना कहकर चला गया ।
एक दिन अचानक सुषमा की तबीयत खराब हो गई ।रमाशंकर ने डॉक्टर सेलाकर दवा सुषमा को दी और कहा इसे पी लेना ।तबीयत ठीक हो जाएगी। रमाशंकर की लाई हुई दवा दबा ना होकर अंग्रेजी शराब थी। जब रमाशंकर और सुषमा ने भोजन कर लिया तो सुषमा ने अपने कमरे में जाकर उस दवा को पी लिया। दबा के पीते ही सुषमा को नशा हो गया और वह बेहोश होकर अपने पलंग पर गिर पड़ी ।सुषमा को बेहोश होता देख कर रमाशंकर कामवासना में आकर अपनी सुषमा भाभी से पाप कर बैठा और मित्रता धर्म को कलंकित कर दिया। रात का 1बज रहा था ।सुषमा को जब कुछ होश आया तो उसने अपने वस्त्र को अस्त-व्यस्त पाया और सामने बैठे हुए रमाशंकर को मुस्काते हुए देखा।
तो वह सब समझ गई कि उसके साथ छल कपट के साथ रमाशंकर ने पाप किया है ।अपने वस्त्रों को संभालते हुए सुषमा ने रमाशंकर से कहा -तुम घोर पापी हो ।तुमने देवर भाभी के पवित्र रिश्ते को छोटी सी कामवासना के लिए कलंकित कर दिया है ।अब तुम फौरन ही चले जाओ ।मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहती हूं ।रमाशंकर ने सुषमा के पैरपकड़ते हुए माफी मांग कर कहा -भाभी मुझे क्षमा कर दो ।भाई साहब से मत कुछ कहना । मैंने भी शराब पी ली थी ।इसीलिए ऐसा पाप हो गया । सुषमा बोली- तुमने दवा के नाम पर मुझे शराब क्यों पिलाई? तुम महा पापी हो ।मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी। गलती तो तुम्हारे भाई की थी जो तुम पर इतना विश्वास किया । तुमने मित्रता के विश्वास को खंडित कर दिया ।
तुम यहां से चुपचाप चले जाओ और कभी भी मेरे घर आकर मुंह मत दिखाना ।रमाशंकर उठा लज्जित होकर सिर झुकाए हुए क्वार्टर से बाहर चला गया । सुषमा ने कुंडी लगाई और अपने पलंग पर आकर लेट गई। सुषमा को रामाशंकर के कृति पर क्रोध आ रहा था और घृणा हो रही थी । पाच छै दिनबाद जब जयदेव घर लौटा तब सुषमा ने रोते हुए पति को कोई बात ना छुपा कर सारी बात बता दी और कहा -तुमने अपने मित्र पर जो विश्वास किया था। तुम्हारे उसी विश्वास पर मै कलंकित हो गई हू। अब मैआत्महत्या कर अपने कलंक से मुक्ति पाऊंगी। जयदेव बोला- तुमने कोई पाप नहीं किया ।पाप तो मेरे मित्र ने कियाहै। जिसने मित्र धर्म के विश्वास को तोड़ा है। आज मैं जान गया हूं ।कलयुग में मनुष्य का कोई धर्म नहीं होता है ।इसीलिए किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।
तुम जो जो भी हो गया है उसे भूल जाओ। अब मेरे क्वार्टर पर रमाशंकर कभी नहीं आएगा और ना मैं उससे कोई अपना व्यवहार नहीं रखूंगा । तुम मेरी पवित्र पत्नी हो । मै जल्दी अपना किसी दूसरे ब्लॉक मेट्रांसफर करा लूंगा। कुछ दिनों के बाद जयदेव का दूसरे ब्लॉक पर ट्रांसफर हो गया और मित्र के कलंक कहानी अतीत हो गई। सुषमा और जयदेव का दांपत्य जीवन सुख मय पहले की तरह बीतने लगा । बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी- मैनपुरी