विषय आमंत्रित रचना - रिश्ते

Apr 29, 2024 - 16:22
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विषय आमंत्रित रचना - रिश्ते

पहले समाज में रिश्ते अहम् महत्व रखते थे पर आज चाचा- चाची, फूफा -फूफी, मामा, मामी आदि जैसे सारगर्भित रिश्तो पर अंकल-आंटी शब्द का लेबल लग गया है । इस कारण नजदीक और दूर के रिश्तों को पहचानना मुश्किल हो गया हैं ।

भारतीय संस्कृति द्वारा वर्णित सुसंस्कार जिनके अनुसार बड़ों को समुचित आदर एवं छोटों को स्नेह पाठ पढ़ाया जाता है उससे आज हम विमुख होते जा रहे हैं । सच्चाई, प्रेम, सहिष्णुता, परोपकार की भावना, कर्तव्यनिष्ठा, संयम, सादा जीवन -उच्च विचार देशभक्ति करुणा इत्यादि मानवीय गुण मात्र पुस्तकीय बातें या फिर भाषण बनकर रह गए हैं।

हेलो, हाय के संस्कृति के मायाजाल में नमस्कार या प्रणाम करने में झिझक महसूस होने लगी है । टीवी व मोबाइल पर प्रसारित कार्यक्रमों से भी चरित्र निर्माण में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पहले संयुक्त परिवार में सभी बच्चे मिलजुल कर हर चीज बॉंटकर इस्तेमाल करते थे, आजकल एकल परिवार के होने के कारण सामाजिक नहीं रहे और उनकी सोच स्वयं तक ही सीमित रहती है।

पहले घर के बाहर के खेल ज्यादा थे, खानपान भी शुद्ध था , शारिरिक श्रम भी था जिससे वे तंदुरुस्त रहते थे पर आजकल टेलीविजन -मोबाइल में ज्यादा समय,अशुद्ध खानपान व शारीरिक श्रम कम होने से ज्यादा बीमारियां होने लगी हैं। आज हमें अविलंब अपना विवेक जगाना होगा इसी में हमारा,समाज,और देश का हित है।

सबसे पहली बात हम जीवन भर याद रखें कि इस जगत में कई दफ़ा कुछ बातों से हमारा मन व्यथित हो जाता है और आपसी रिश्तों में खटास भर जाती है।गलती किसी की भी हो उसे विस्मृत करके एक दूसरे से क्षमा-याचना करके रिश्ते वापिस जोड़ना सीखो।तोड़ना आसान है जोड़ना मुश्किल। कहते है कि सितारे टूटते हैं पर उनके वियोग मे आसमान कब रोता है? क्योंकि आत्मा के सिवाय दूसरा कोई भी अपना सगा नहीं होता है?

स्वार्थ की कमजोर दीवारों पर टिके हुए सारे रिश्ते हैं ।रिश्तों की सच्चाई के साथ जीने वाला हताशा का कभी भार नहीं ढोता है। हमारे जीवन स्तर के गिरने पर भी हम इसे कहां मान रहे है ।हम तो अपने आप को बहुत ही काबिल व एडवांस जान रहे है ।आज सारे रिश्ते नाते धन के हाथों इस कदर बिक रहे हैं जैसे हम इस सोसियल मीडिया के सहारे ही टिक रहे है ।सुधार के लिए हमें अपनी गलतियों का भान करना होगा ।

अपने से बड़े हो या छोटे सब पारिवारिक जनो का मान व सम्मान करना होगा ।हमें करनी है अपने संस्कृति व संस्कारों को समुचित रक्षा, व पूर्णतः उतीर्ण करनी है अपने जीवन से जुड़ी हर परीक्षा । रिश्तों की नाजुकता को हर कोई सही से नहीं जानता हैं । पता नहीं कब कौनसी बात ख़राब रिश्तों में लग जाती हैं ।रिश्तों में कई बार शुद्ध मन भाव से की गई प्रशंसा भी दिखाती है अपना उल्टा प्रभाव ।

कई बार की गई समालोचना भी बढ़ा देती रिश्तों के भाव । रिश्ते एक दूसरे की आंतरिक समझ से निभते हैं । हो अगर आपस की अंडरस्टैंडिंग तो कटु शब्द भी घाव नहीं करते हैं । अगर नहीं है समझ आपस की तो कोई शब्द भी अलगाव ला सकता हैं । अतः रिश्ते बड़े नाजुक व कोमल होते हैं ।

उनको निभाना बहुत खांडे की धार हैं । अगर समत्त्व भाव विकसित ,ज्ञाता द्रष्टा भाव प्रसरित और प्रतिक्रियाओं रहित आदि जिसका जीवन है उसके लिए सब रिश्तें एक समान हैं । कहते है की जहाँ मध्यस्थ भावों का बहता हो निर्झर , अपेक्षा रहित हो जहाँ वर्तन वहाँ कोई नहीं पड़ सकती दरार । रिश्तों में हरदम छाई रहती बहार । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)