कहाँ बसती है खुशी
कहाँ बसती है खुशी
मन में एक जिज्ञासा हो सकती है कि कहाँ बसती है खुशी ? इसका उतर मेरे दृष्टिकोण से यह होगा कि असली खुशी तो हमारे भीतर बसती हैं । हम अपेक्षाएँ छोड़ वर्तमान में जिएँ , असफलता में सफलता में को देखे आदि तो परिणाम इसके खुशी के आयेंगे ।
खुशमिजाजी आदमी का बेशकीमती गहना हैं क्योंकि बाहरी खुशी तो क्षणिक होती है लेकिन भीतर की खुशी बहुत - बहुत आनन्द सुकून देने वाली होती हैं । जीवन को खुश मनाएँ । यह बहुत ही सार्थक बात है ।सत्य को खोजने की नई राह भी दिखलाती हैं ।अब मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि कैसे जीवन को खुश मनाएँ ।
इधर-उधर बहुत देखा और दुनिया के रंगमंच आदि पर भी नज़रें डाली । परंतु कहीं से भी उत्तर की खोज नहीं हो पाई ।फिर मन में सोचने लगा कि भगवान महावीर ने अनेकांत का सिद्धांत दिया । तो क्यों नहीं इसी को अपनाकर मैं अपने उतर का जवाब पाऊँ । हर आत्मा की ख़ुशी एक दूसरे से अलग होती है । अपनी ख़ुशी के अनुसार सबको जीने का हक़ होता है । अतः जीवन को खुश बनाने की कोशिश भी स्वयं को करनी होगी ।बस अपनी आत्मा के जुनून को पहचानना ज़रूरी है ।
वह जुनून ऐसा होता है जिसके पूरे होने से आपकी आत्मा को सुकून ही सुकून मिलता है । वह ऐसा कोई भी पल जो दें शान्ति हो जाये उसे पाने के लिये रहे सदैव तत्पर ।फिर देखें जीवन स्वयं खुश बन जायेगा जहाँ होगा सिर्फ़ आनन्द ही आनन्द । नहीं होगी ज़रूरत इसमें किसी दूसरों की भीतर ही भीतर जीवन को खुश बनाये । प्रदीप छाजेड़ (बोरावड़ )