सु प्र भा त
सु प्र भा त
सूरज,रौशनी बिखेरता,नयी सुबह की नई उम्मीदें जगाता- एक ऊर्जा का गोला है । सुप्रभात का अर्थ मेरे चिन्तन से यह है की सुबह से शाम तक हम प्रसन्न रहे । प्रसन्नता ऐसी जो कभी खत्म ही नहीं हो । नया सूरज उग आया हैं । मानो नव जीवन मुस्काया हैं ।नये - नये सपनो को जीने के लिये निद्रा से जाग जाना है ।
धरा को प्रणाम कर, नभ का आभार कर, सुंदर सजीली छवि, प्रकृति को हमको निहारना है ।माँ ,पिता की पद रज, चाप गुरु के पंकज, ईश्वर स्मरण कर हमको प्रातः सबका आभार जताना हैं । सभी जन के प्रति मन में नेह भाव जगाना है । है सार्थक सुबह जो सत्य का सूरज उगाए । दीप्ति धैर्य की बढ़ा जो ज़िंदगी रोशन बनाए ।माना कि ये मन बड़ा चंचल है कैसे धीरज ये धरे ।
जितना इसे समझाऊँ उतना ही मचलता हैं ।बहुत ज़रूरी है नियंत्रण इस पर इसके लिए करे हम अभ्यास आवेश पर अंकुश और लक्ष्य के प्रति एकाग्र चित्त अपने अंदर जो संस्कारों के निहित बीज है । उन्हें अंकुरित होने, पल्लवित-पुष्पित होने और फलित होने के लिए व्यक्ति तेजस्वी , कर्तृत्व यशस्वी, वक्तृत्व वर्चस्वी आदि बनना है तो ध्यान से-स्थिरता से-एकाग्रता आदि से - हमको साहस की मशाल बनना है । धैर्य की मिसाल बनना है ।
हमे सफलता से ख़ुशहाल बनना है । इस तरह हम प्रातः उठते ही ये भाव मन ही मन उच्चारे और मन में गहरे धारे । जिससे हर भोर हमारी अच्छी होगी और हर रोज हमारा अच्छा होगा। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )