जीवन को आनन्दमय बनाना पड़ता है
जीवन को आनन्दमय बनाना पड़ता है
जीवन की बहुत लम्बी यात्रा होती है ।कभी असफलता का दुःख तो कभी अप्रत्याशित घटनाओं के कारण मन व्यथित होता है । बहुत कौशिश करने के बाद भी ना भुलाये जाने वाली दुःख भरी जीवन की दास्तान है ।
जीवन की प्रगति और मानसिक शकुन में यह बाधक बन जाती है।इसलिए जो अप्रत्याशित घटित हुआ या मिली असफलता तो उसे भुलाने का प्रयास करो और जीवन में आगे का सोच कर खुश मन से बढ़ने का प्रयास करते रहो ।
सही सोच सदैव अलौकिक सुख देने वाली है । निराकांक्षी होकर सरलता की राह पर चलना - लाता ख़ुशहाली की हरियाली है ।क्यों कि ; उसके लिए न ही रख-रखाव का तनाव है ,न ही परिग्रह की सोच ।न ही चोरी का डर और न ही कलह-द्वेष का भय ।बस है तो केवल मन: संतोष, एक सुकून भरा मानसिक तोष ।वैभव-विलास से दूर रहकर हम अपने-आपको समय दे सकते हैं ।
अपनी आत्मा के क़रीब जाकर ; स्वनिहित ज्ञान की परतें खोल सकते हैं । जिस ऊर्जा का अपव्यय व्यर्थ विषयों के आकर्षण में हो रहा था ।उसका व्यय नये ज्ञान को सीखने में कर सकते हैं । जिसने आशाओं-निराशाओं से परे हटकर ,अपने विवेक का उपयोग किया ,उसीने सदा अपने जीवन को सार्थक किया ।
हमारे संत-महात्माओं के जीवन चरित्र - हैं इसके ज्वलंत उदाहरण हम भी कर सकते हैं अपने जीवन को उच्च, कर उनके जीवन का सही से अनुकरण । अपने जीवन को आनन्दमय निरंतर बेहतर बना सकते है । प्रदीप छाजेड़ (बोरावड़)