Adani Vs OCCRP - अमेरिका का भारत विरोधी गुप्त एजेंडा

Adani Vs OCCRP - ओसीसीआरपी अमेरिका से भारी फंडिंग लेता है।  वही अमेरिकी एजेंसियाँ उसे पैसा देती हैं जो भारत विरोधी कामों में लिप्त रही हैं। यह सारा खुलासा एक फ्रांसीसी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में किया है।

Dec 4, 2024 - 15:21
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हाल ही में भारत के बड़े कारोबारी समूह अडानी ग्रुप को ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट ( ओसीसीआरपी) ने निशाना बनाया। इसके निशाने पर अडानी ही नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था है। ओसीसीआरपी अमेरिका से भारी फंडिंग लेता है।  वही अमेरिकी एजेंसियाँ उसे पैसा देती हैं जो भारत विरोधी कामों में लिप्त रही हैं। यह सारा खुलासा एक फ्रांसीसी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में किया है।

 रिपोर्ट के अनुसार ओसीसीआरपी को 2007 में स्थापित किया गया था। यह दावा करता है कि विश्व के 6 महाद्वीपों में पत्रकारों का एक नेटवर्क है जो इस अपराध और भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग में एक्सपर्ट हैं। ओसीसीआरपी का दावा है कि वह पूरी तरह स्वतंत्र संस्थान है लेकिन अब फ्रांसीसी अखबार मीडियापार्ट ने खुलासा किया है कि यह अमेरिका के विदेश विभाग और एजेंसी यूएसएआईडी से पैसा लेते हैं।

मीडियापार्ट ने 2 दिसम्बर, 2024 को इस संबंध में एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की है। ‘द हिडेन लिंक्स बिटवीन जायंट ऑफ़ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म एंड यूएस गवर्मेंट’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में मीडियापार्ट ने बताया है कि कैसे ओसीसीआरपी पर अमेरिका की सरकार का बड़ा प्रभाव है। मीडियापार्ट के अनुसार जहाँ ओसीसीआरपी खुद को पूरी तरह से स्वतंत्र बताता है, इसके मैनेजमेंट ने अमेरिका पर पूरी तरह से निर्भर कर दिया है। यह जानकारी इस जाँच में पता चली है। मीडियापार्ट ने बताया है कि ओसीसीआरपी का गठन ही अमेरिकी सरकार के पैसे से हुआ था ।

 मीडियापार्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अभी भी ओसीसीआरपी की फंडिंग का लगभग 50 प्रतिशत  से अधिक अमेरिकी एजेंसियाँ देती हैं। यह एजेंसियाँ ओसीसीआरपी में अपने लोगों को नियुक्त करती हैं। ड्रियू सुलिवान इनमें से एक हैं। मीडियापार्ट ने यह भी बताया कि ओसीसीआरपी जहाँ अमेरिकी एजेंसियों से फंडिंग लेने की बात स्वीकारती है, वहीं यह नहीं बताती कि इसको कितनी फंडिंग मिलती है। मीडियापार्ट ने यह भी बताया कि ओसीसीआरपी  अपने लेखों में भी कभी यह जानकारी नहीं दी कि उन्हें अमेरिका से फंडिंग मिलती है। यूएसएआईडी का ओसीसीआरपी में दखल कितना अधिक है, इसका अंदाजा यूएसएआईडी के एक अधिकारी की एक बात से लगाया जा सकता है।

 यूएसएआईडी के यूरोप और यूरेशिया के सीनियर एडवाइजर माइक हेनिंग ने ओसीसीआरपी को यूएसएआईडी की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक बताया था। ओसीसीआरपी ने अपने रिकॉर्ड से भी यह बात हटा दी है कि अमेरिकी सरकार ने उसकी स्थापना में क्या रोल निभाया था। इस रिपोर्ट में केवल यूनाइटेड नेशन द्वारा पैसे दिए जाने का उल्लेख किया है। ड्रयू सुलिवन ने दावा किया है कि यूनाइटेड नेशंस से मिला पैसा असल में ओसीसीआरपी को मिला पहला फंड था। ओसीसीआरपी को स्थापना के बाद से अब तक अमेरिकी सरकार से कम से कम 47 मिलियन डॉलर, यूरोपियन देशों (ब्रिटेन, स्वीडन, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, स्लोवाकिया और फ्रांस) से 14 मिलियन डॉलर तथा यूरोपियन यूनियन से 1.1 मिलियन डॉलर मिल चुके हैं। यह धनराशि ओसीसीआरपी ने अपनी वेबसाइट पर नहीं बताई है।

 मीडियापार्ट के अनुसार, ओसीसीआरपी ने एक और प्रोजेक्ट को भी चलाया है जिसके अंतर्गत यह उन रिपोर्ट के आधार पर कानूनी कार्रवाई करता है जिनकी इसने जाँच की है। दिलचस्प बात यह है कि तथाकथित ‘स्वतंत्र संगठन’ अमेरिकी सरकार की कभी आलोचना नहीं करता है। इसकी अधिकांश रिपोर्ट रूस, माल्टा, साइप्रस और वेनेजुएला जैसे देशों के बारे में खूब एक्टिविज्म करता है। मीडियापार्ट ने खुलासा किया है कि अमेरिका के विदेश विभाग ने वेनेजुएला के भ्रष्टाचार को उजागर करने और उसका मुकाबला करने के मिशन के लिए ओसीसीआरपी को 173,324 डॉलर भी दिए है। वेनेजुएला पर अमेरिका ने सैंक्शन लाद रखे हैं। मीडियापार्ट ने कहा, ‘एक पत्रकार संगठन द्वारा अमेरिका की पहल पर और उससे पैसे लेकर ऐसी गतिविधियों का नेतृत्व करना, यहाँ तक कि एक उचित कारण के लिए भी महत्वपूर्ण नैतिक प्रश्न उठाता है।‘

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ओएसएफ ने संगठन की क्रॉस-बॉर्डर रिपोर्टिंग को ‘मजबूत’ करने और प्रभाव बढ़ाने के लिए संगठित ओसीसीआरपी को 8,00,000 (6.61 करोड़) का अनुदान भी दिया। ‘पत्रकारों के नेटवर्क’ ने अब तक दो हिट लेख प्रकाशित किए हैं, एक अगस्त 2023 में और दूसरा मई 2024 में। अडानी समूह और मॉरीशस स्थित फंड ‘360 वन’ द्वारा ओसीसीआरपी के इन दावों को खारिज कर दिया गया।

 यहाँ तक कि भारत के सर्वाच्च न्यायालय ने भी फैसला सुनाया था कि ओसीसीआरपी की रिपोर्ट का इस्तेमाल सेबी द्वारा चल रही जाँच पर संदेह जताने के लिए नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी सत्यापन के किसी संगठन की रिपोर्ट पर सबूत के तौर पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मीडियापार्ट के खुलासे ऐसे समय में हुए हैं जब गौतम अडानी को रिश्वतखोरी के कथित आरोपों को लेकर अमेरिका में परेशान किया जा रहा है। गौरतलब है कि जिस यूएसएआईडी से ओसीसीआरपी पैसा लेता है, वह कई देशों में सरकारें बदलने के लिए ज़िम्मेदार रहा है।

 जानकारों का कहना है कि यूएसएआईडी हाल ही में बांग्लादेश भी सत्ता परिवर्तन के खेल में शामिल था। यूएसएआईडी ने यहाँ ऐसी एजेंसियों को मदद दी थी जो शेख हसीना की सत्ता को अस्थिर करने के लिए लगी हुई थीं। बांग्लादेश में यह योजना अमेरिका ने 2019 से ही चालू कर दी थी। यूएसएआईडी ने यहाँ आईआरआई नाम की एक संस्था को पैसा दिया था। आईआरआई ने इसके लिए एक कार्यक्रम चलाया और यह जनवरी 2021 तक चला। आईआरआई ने कहा इस कायर्क्रम का उद्देश्य बांग्लादेश के भीतर उन लोगों को आवाज देना है, जो हसीना की दमनकारी सत्ता के विरुद्ध खड़े हो सकें। आईआरआई ने अपने इस कार्यक्रम में एलजीबीटी, बिहारी और बाकी समुदायों के लोगों के समूहों को समर्थन दिया।

 इसके तहत 77 ‘एक्टिविस्ट’ को ट्रेनिंग भी दी गई। इन लोगों को बड़ी धनराशि भी दी गई। इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि अमेरिका उन लोगों को अपने पक्ष में बोलने के लिए तैयार कर रहा था जो हसीना का विरोध कर सकें। आईआरआई ने 2021 में एक और प्रोग्राम चलाया था। इसके लिए उसे अमेरिकी एजेंसी एनईडी से 9 लाख डॉलर की मदद मिली थी। इस कार्यक्रम के तहत आईआरआई ने उन नेताओं को तैयार करने का लक्ष्य रखा था जो आगे जाकर उनके हित के लिए बड़ी आवाज बन सकें। जानकारों का कहना है कि बांगलादेश में वे अपने मिशन में सफल भी रहे है।

-रामस्वरूप रावतसरे