लापरवाही की लत

लापरवाही की लत

Jul 16, 2024 - 08:06
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लापरवाही की लत

-विजय गर्ग

आज के हमारे सामान्य जीवन में सब कुछ बस यों ही चलता जा रहा है। चाहे हम घर पर हों या बाहर हों, हम सबका जीवन बदस्तूर जारी है। बात सिर्फ इतनी-सी है कि हमने बस यों ही जीवन जीने की कला सीख ली है। हमारा पूरा जीवन 'चलता है सब ' के आधार पर चल रहा है। हमारे दादा परदादा ने चाहे जैसे भी जिंदगी जी हो, चाहे अपने जीवन में कितने ही नियम- कायदे रखे हों, लेकिन हमारे जीवन में आज कोई नियम - कायदा नहीं है और हम 'चलता है सब' के आधार पर सिर्फ अपने आप को बनाए रखने की कोशिश में लगे रहते हैं ।

बस के ड्राइवर से लेकर दफ्तर के बाबू तक के बीच यह बात अंदर तक बैठ गई है कि हमें बस चलताऊ काम करना है और काम के प्रति ज्यादा गंभीरता हमें नुकसान पहुंचा सकती है। इसी तरह की प्रवृत्ति हमें अपने देश के राजनेताओं में भी नजर आती है । उनके पास भी अगर कोई व्यक्ति अपनी छोटी समस्या लेकर जाता है, तो उनका भी यही जवाब होता है कि आज सब चलता है। चाहे हम कहीं भी किसी भी चीज से जुड़े हों, हमारी प्रकृति में किसी भी काम को हल्के रूप में लेने की सोच जारी है। इसकी बहुत सारी वजहें हो सकती हैं, लेकिन एक मूल वजह यह हो सकती है कि हम सब लापरवाही के शिकार हैं और यही लापरवाही हमें मूल्य विघटन की ओर लेती जा रही है ।

 मूल्य विघटन कोई मामूली बात नहीं है, फिर भी उसको सतही तौर पर लेने की हमारी एक आदत बनती जा रही है । ऐसा क्यों न हो कि हम सब बातों को ऊपरी तौर पर लेना बंद कर दें और उनकी गहराई तक पहुंचें ? समाज में अगर किसान मरता है तो कोई बात नहीं, राजनेता घोटाला करता है तो कोई बात नहीं, भाई अपने भाई को मारता है तो चलता है, गरीब और गरीब होता है तो चलता है, भ्रष्टाचार बढ़ता है तो चलता है आदि। ऐसा क्यों नहीं है कि हम सब अपनी गलती को स्वीकार करें और सही रास्ते पर चलें ? शायद ऐसा इसलिए है कि हम सभी लोग जीवन को एक यों ही चलने वाली अवस्था मानकर चलते हैं । काश ऐसा होता कि हम अपने जीवन को इतना हल्के तौर पर न लेते तो आज भारत की तस्वीर कुछ और ही होती।

यहां अपने लोगों को दोषी ठहराने का इरादा नहीं है, लेकिन क्या हमने कभी देखा कि मेहनती लोग किस तरह से छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने आप को मुसीबतों से बाहर निकाल लेते हैं ? अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? फर्क सिर्फ नजरिए का है। अगर हम चाहें तो पूरी दुनिया बदल सकते हैं। जीवन सरलता और सहजता दोनों का नाम है, लेकिन यही सहजता कभी-कभी हमें वह नहीं सोचने देती जो हमें वाकई सोचना चाहिए। अपने पूरे जीवन का आकलन करते हुए सोचना चाहिए कि जब भी हमने किसी विषय पर गंभीरता से विचार और उस पर अमल किया है तो हमने कितनी उन्नति की है। चाहे वह हमारे स्कूल बोर्ड की परीक्षा हो या फिर नौकरी से जुड़ी कोई बात, जब-जब हमने इस 'चलता है सब' को त्यागा है, तब-तब हमने सफलता और एक कदम बढ़ाया है।

 सफलता केवल व्यक्तिगत सफलता को नहीं कहते, सफलता हमारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों को भी समेटने की ताकत रखती है और सफलता के पीछे कैसी सोच होनी चाहिए, ये तो आप जानते ही हैं । 'चलता है सब' के दोहरे मापदंड के साथ हम कभी भी अपनी पूर्ण सफलता का स्वाद नहीं चख सकते हैं, चाहे वह हमारा अपना जीवन हो या सार्वजनिक जीवन हो । कोशिश यह हो कि आज से और अभी से ही 'चलता है सब' के सतही जीवन को त्याग दिया जाए और अलग दौर की शुरुआत की जाए। जीवन को सकारात्मक परिवर्तन की ओर ले जाया जाए। इस तरह से हम अपने समाज को एक गंभीर चिंतन देने में सफल हो पाएंगे।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारा देश एक विशाल, लेकिन विविधता से भरा देश है। जिसकी अपनी समस्याएं हैं। ऐसे में अगर हम लोग प्रत्येक काम को अच्छे से करें और ध्यान रखें कि किसी काम में कोई लापरवाही न बरती जाए तो हम कहीं न कहीं देश को प्रगति के रास्ते पर लेकर जा सकते हैं । सड़क सुरक्षा का पालन करना हमें असामयिक दुर्घटनाओं से बचा सकता है, राजनेताओं पर पैनी दृष्टि रखने से वे लोग भ्रष्टाचार के रास्ते को भूल सकते हैं, नकल रोकने पर कई लोगों का भविष्य बन सकता है, सड़कों का ध्यान रखने से देश की सड़कें गड्ढा बनने से बच सकती हैं, प्रशासन को लापरवाही से बचाया जा सकता है। साथ ही हमारे व्यक्तिगत जीवन की उन्नति संभव हो सकती है । बात सिर्फ इतनी है कि चलता है किसी भी काम के प्रति हल्के नजरिए से इतर उसे गंभीरता से लिया जाए।

अगर इतना भी कर लिया जाए तो आधी मुसीबत से बाहर निकलने में काफी मदद मिल सकती है। जीवन को खूबसूरती के साथ जीना एक मूल्य होना चाहिए, बस यह याद रखा जाए कि जीवन की गंभीर बातों को गंभीरता से लेकर अपना और राष्ट्र का उत्थान करने का साहस अपने अंदर कायम रखा जाए । अगर इतना काम हमने कर लिया तो 'चलता है सब' के दृष्टिकोण को हम भुला पाएंगे और एक नए युग की ओर कदम बढ़ाने में कामयाब हो पाएंगे।

- विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट