मर्यादा ज़ुबान की

Mar 4, 2024 - 09:40
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मर्यादा ज़ुबान की
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मर्यादा ज़ुबान की

जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है । दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं क्योकि वो कठोर होते है |पूरे ब्रह्माण्ड में जबान ही एक ऐसी चीज़ है जहाँ पर जहर और अमृत एक साथ रहतें है |

अतः हम तोल कर सोच कर बोलें ओछा खाये पर ओछा बोलें नही। दाँतों में नहीं, जबान में है जहर ज़बान को वश में रखना हर किसी के बस की बात नही । शिशुपाल ने शब्दों की मर्यादा तोडी और सुदर्शन चक्र के भेंट चढ़ गया ।दुनिया में काँटों और चाकू का तो नाम ही बदनाम है | वैसे चुभती तो निगाहें भी है और काटती तो जुबान भी है | कहते हैं दिल की बात जुबान पर आ ही जाती है ।

अच्छाई,बुराई जो भी भीतर होती है वो कहाँ छुप पाती है। हमे जरूरत है मन को पवित्र भावों से आप्लावित करने की अगर चिंतन सात्विक हो तो अप्रियता की दुर्गंध नहीं आती है । जवान के दो विष है बेवक्त कहना और वक्त पर नहीं कहना इसलिए हमें विवेक सुनने में, विवेक कहने में विनोद भाव मन में, विनोद वचनों में रखना चाहिए ।

कहते है की किसी व्यक्ति को व्यवहार के अलावा समझना हो उसे और तो उसे बोलने दो। अपनी जबान से अपना मन खोलने दो। उसकी सारी सोच बाहर आ जाएगी। सामने वाले को उसकी वास्तविक मानसिकता समझ में आ जाएगी। सार में हम यों कह सकते हैं कि हर इन्सान अपनी ज़ुबान के पीछे छुपा हुआ है। वहीं उसका मन लुका हुआ है। अतः जरूरी है मर्यादा को सहर्ष दिमाग से स्वीकार करना। प्रदीप छाजेड़