जहाज डूबता है पानी अंदर आने से

Nov 2, 2023 - 12:05
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जहाज डूबता है  पानी अंदर आने से
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जहाज डूबता है पानी अंदर आने से

जिस तरह जहाज बिना पानी भीतर आये पानी में चलकर अपने गंतव्य तक पहुँच जाता हैं और ठीक इसके विपरीत जहाज में पानी आते ही जहाज पानी के बीच में ही पानी में डूब जाता हैं ।

उसी तरह हम अपने जीवन रूपी परिवेश को चारो तरफ जो फैल रहा है दूषित वातावरण उससे बचाये रखेंगे और आध्यात्मिकता से ओत - प्रोत रखेंगे तो हमारा जीवन भी जहाज कि तरह संसार रूपी समुद्र में तैरकर आत्मा का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष के गंतव्य तक पहुँच जायेगा ।

 इसके विपरीत मलिनता हमारे मन में आयी तो हमारा जीवन रूपी जहाज इस संसार रूपी समुद्र में डूबने लगेगा व जन्म मरण की श्रृंखला में रच बस जायेगा । भले ही कुछ समय तक स्वार्थ का वाना पहनकर किए गए कार्य स्वयं को खुशियां प्रदान करें, लेकिन लंबे समय तक यह संभव नहीं। भगवान कृष्ण ने गीता में संदेश दिया है कि अवसर मिले तो सारथी बनना, स्वार्थी नहीं।

आत्म अवलोकन करने पर स्वार्थी व्यक्ति को कुंठा के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं होता। जबकि अपनत्व, प्रेम व स्नेहवश किया गया नि:स्वार्थ कार्य, व्यवहार स्थाई सम्मान, प्रसन्नता प्रदान करने वाला होता है। नि:स्वार्थ भावना प्रेम से जन्मती है और प्रेम ईश्वर द्वारा मानव को दिया हुआ सर्वोत्तम उपहार है। हम सब अपने को ईश्वर की संतान तो कहते हैं लेकिन उनके दिए गुणों को आत्मसात कर उन्हें अहंकार व स्वार्थपरता से ढक देते हैं।

 इसी कारण हमारे चारों और दूषित वातावरण हो रहा है। सर्वविदित है कि संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं। कहते हैं कि खाशियत मत पूछो इंसान की बल्कि जांच लीजिये उसके संस्कार। कैसा है इंसान यह वस्त्र नहीं यह तय करता है उसका व्यवहार।दूषित वस्त्र केवल स्वयं अथवा पड़ोस तक ही दुर्गंध फैलाने की ताकत रखता है।

परन्तु दूषित विचार सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र को दूषित और प्रदूषित कर सकता है।अतः वस्त्र की स्वच्छता से अधिक वैचारिक स्वच्छता के प्रति सजगता जरूरी है।अपने जीवन में हो स्वच्छता भरे विचारों की शृंखला जो हम ऐसे रखे की जिसके लिए मन में भाव हो सिर्फ़ अर्पण और समर्पण का। अतः जरूरी है हम सदा सतर्क रहे ताकि दूषित होने से अपना जीवन हरदम बचाए रख सकें । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )