व्यंग्य। "कान वाले मच्छर"

व्यंग्य। "कान वाले मच्छर"
डॉ. सतीश "बब्बा"
पता नहीं इन मच्छरों की कहानी युगों पहले क्या थी, कश्यप ने इनको पैदा किया या आज के मच्छरों से वह अलग मच्छर रहे होंगे! मेरे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि, मच्छरों की सारी प्रजाति का वर्णन जीव विज्ञानी ने क्यों नहीं किया है! सभी मच्छरों से कान वाले मच्छर पर चर्चा करते तो हम भी कुछ समझते! मुझे तो एक कान वाले मच्छर ने तंग करके रखा है। पहले मेरे गांव के मच्छर ललकारते हुए कह देते थे, 'सावधान हम आ गए हैं या मैं आ गया हूं!' गांव के उस क्षत्रिय मच्छर से हम रात भर लड़ते रहते थे; कभी हम हारते कभी वह हारकर जान गंवा बैठता था। हां जीवित रहते वह हार नहीं मानने वाला था।
अब आधुनिक डिजिटल युग के मच्छर से हम आज तीन दिन से लड़ रहे हैं, फिर भी वह हार नहीं मान रहा है! हमें ऐसा लगता है वह गूगल से हम मनुष्यों के सभी दांव-पेंच जानकर आया है। वह कान वाले मच्छर को क्या कहूं, पहले कान वाले मच्छर कान में मधुर संगीत सुनाने के बाद हमला किया करते थे। अब तो कान वाले मच्छर चुपचाप कान में ही अपना अस्त्र-शस्त्र घुसा दिया करते हैं। कोई आवाज नहीं करते हैं, सारे बेईमानी के दांव - पेंच हम मनुष्यों के सीख गए हैं; शायद यह गूगल काका से ही सीखे होंगे! हम तमाम उपाय करते हैं, आल आउट, मोंटी, तमाम प्रकार की मच्छर वाली अगरबत्तियों का उपयोग करके हार गया फिर भी वह नहीं मानते! अब मुझे पक्का विश्वास हो गया था कि, यह मच्छर नहीं कोई दूसरा प्राणी है। क्योंकि मच्छर तो क्षत्रिय है, बिना ललकारे वार नहीं करता है। मैं आइना के सामने बैठा था कि, दिन में ही कान वाले मच्छर ने हमला किया, कोई ललकार नहीं, कोई आवाज नहीं! नहीं चाहते हुए भी मैं सब्र करके आइने में देखा, वह एक मच्छर ही था।
मैंने यह संकल्प करके कि, यह आज नहीं बचेगा, चूंकि वह दाहिने कान में था, इसलिए मैंने अपने दाहिने हाथ की हथेली का मजबूत थप्पड़ बनाया था। तेजी से, क्योंकि दुश्मन पर वार थी, जरा भी संकोच करना ठीक नहीं था। हमने अपना थप्पड़ अपने ही कानपर यूं जड़ा की चटाक की आवाज ऐसी हुई जैसे कोई चट्टान टूट गई हो! मच्छर तो गूगल का पढ़ा था। मच्छर चुपचाप निकल लिया था। कान वाले मच्छर ने मौन व्रत धारण कर लिया था, कहां गया पता नहीं चला, हां मेरे कान का दर्द एक हजार रुपए की दवा कराने के बाद ही ठीक हुआ था। मच्छर पुराण खोज रहा हूं, गूगल से भी पूछ रहा हूं; गूगल से मैं पूछता कुछ हूं, वह बताता कुछ है। ऐसा लगता है कि, कान वाले मच्छर की पहुंच बहुत ज्यादा है वह गूगल को भी खरीद लिया है या धमकी आदि से किसी प्रकार से अपने वश में कर लिया है। वैसे यह कान वाले मच्छर का रूप - रंग सब पहले वाले मच्छर की तरह ही है, फिर यह चुप क्यों रहने लगा है? अब पूरा-पूरा भरोसा हो गया है कि, इसमें गूगल काका की ही बेइमानी है। क्या कहूं, क्या करूं, किससे कहूं कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। हम इनसे कैसे लड़ सकते हैं हमारे आकाओं का कहना है कि, "आबादी बढ़ रही है, जनसंख्या विस्फोट हो जाएगा!" मच्छर विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों का मानना है कि, कान वाले मच्छर की प्रजनन क्षमता एक लाख प्रतिदिन है।
भला बताओ मैं कहां जाऊं, क्या करूं? काश! कान वाले मच्छर को भी फैमिली प्लानिंग के तहत जनसंख्या नियंत्रण, निवारण अधिनियम के तहत रखा गया होता तो शायद हमें कुछ राहत मिली होती! अभी दो बच्चों पर सीमित मनुष्य प्रजाति को रखा गया है, तो दस बच्चों पर सीमित कान वाले मच्छर को भी रख सकते थे। फिर भी इनकी जनसंख्या वृद्धि जारी रहती क्योंकि इनको रोज - रोज बनना नसाना होता है। मैं सुझाव नहीं देता अगर यह कान वाले मच्छर मेरी नाक में दम नहीं किया होता! मैंने एक रात सोचा इन कान वाले मच्छर के आतंक से हम सो वैसे नहीं पाते हैं, चलो आज रात को जाग कर इनसे युद्ध लड़ा जाए! हम जाग रहे थे। कभी कनपटी में, कभी कनपटी के नीचे, कभी दाहिने कान में, कभी बाएं कान में यह कान वाले मच्छर चुपचाप अपना अस्त्र-शस्त्र घुसा रहे थे। हम शालीनतापूर्वक धीरे से कभी तर्जनी से, कभी चारों उंगलियों के समूह से, कभी अंगूठे से दाबकर मसलने की कोशिश कर रहे थे। फिर भी इनके हमले को हम रोक नहीं पाए थे। थप्पड़ मार नहीं सकता था क्योंकि, मैं पहले वाले थप्पड़ को कैसे भूल सकता था।
आभास होता था कि, हमने अबकी कान वाले मच्छर को मसलकर रख दिया है लेकिन, ऐसा सिर्फ आभास था, हकीकत नहीं! रात भर कान वाले मच्छर से लड़ते-लड़ते सुबह हो गई थी। दिन में कुछ काम करना था, लिखना - पढ़ना भी था। यह क्या ऐसी नींद आ रही थी कि, दिमाग खराब हो रहा था, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अब क्या करता दिन में सोने के लिए लुढ़क तो गया था; नींद नहीं आई थी बेहोशी आई थी। बेहोशी में भी हम मच्छर मसल रहे थे। सरकार को चाहिए कि, कान वाले मच्छर नियंत्रण बोर्ड की स्थापना करे, जिसमें एक ठोस कदम के तहत मच्छर नियंत्रित करने के उपाय किए जा सकें! हमको पता चला है कि, कान वाले मच्छर के वीडियो, पोस्ट, यू ट्यूब चैनल को लाइक, सब्सक्राइब, शेयर करने से इन कान वाले मच्छर के मुखिया खुश हो जाते हैं तो, मनुष्यों को जरूर राहत पहुंचाते हैं। अब पैसों की किल्लत है, फिर भी कर्ज लेकर या किस्त में एक स्मार्टफोन ले रहा हूं, जिसमें कान वाले मच्छर के सभी वीडियो, यू ट्यूब चैनल, फेसबुक पोस्ट को लाइक, सब्सक्राइब, शेयर करता रहूंगा! कान वाले मच्छर को हम अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजेंगे, अगर कान वाले मच्छर की फ्रैंड रिक्वेस्ट आ गई तो तुरंत स्वीकार कर लेंगे! आखिर कोई तो हमें कान वाले मच्छर से राहत दिलाएगा! सभी मार्ग कठिन हैं, फिर भी प्रयास जारी रहेगी। कभी तो हमें राहत मिलेगी। इसी आशा में सभी जीते हैं, हमें भी आशाओं में जीने की आदत डालनी होगी!
डॉ. सतीश "बब्बा" हस्ताक्षर
पता - डॉ. सतीश चन्द्र मिश्र, ग्राम + पोस्ट = कोबरा, जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश