यूपी पुलिस में जूनियर दरोगाओं पर थानों की जिम्मेदारी, सीनियर कर रहे सलाम – अनुभवहीन चला रहे थाना/कोतवाली
यूपी पुलिस में जूनियर दरोगाओं पर थानों की जिम्मेदारी, सीनियर कर रहे सलाम – अनुभवहीन चला रहे थाना/कोतवाली

यूपी पुलिस में जूनियर दरोगाओं पर थानों की जिम्मेदारी, सीनियर कर रहे सलाम – अनुभवहीन चला रहे थाना/कोतवाली
■ बिना अनुभव के मिल रही थाना प्रभारी की पोस्टिंग, विभागीय संतुलन पर उठे सवाल*
● रामप्रसाद माथुर
लखनऊ। उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में इन दिनों एक अजीब स्थिति सामने आ रही है। सीनियर और अनुभवी दरोगा जिनके कंधे पर सेवा के वर्षों का अनुभव है, वे आज भी लाइन ड्यूटी या किसी सीनियर के मातहत काम करने को मजबूर हैं, जबकि हाल ही में प्रमोट या सीधे भर्ती होकर आए जूनियर सब-इंस्पेक्टर थानों की कमान संभाल रहे हैं। इससे न केवल विभागीय संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि जमीनी स्तर पर पुलिसिंग की गुणवत्ता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
★ अनुभवहीन हाथों में थाना, और सीनियर कर रहे सलाम-
एक तरफ कई जिलों में 15-20 साल का अनुभव रखने वाले सीनियर दरोगा सिर्फ बीट ड्यूटी या स्टाफ ऑफिसर बनकर रह गए हैं, तो दूसरी तरफ महज दो-तीन साल की नौकरी करने वाले जूनियर अफसरों को थाना इंचार्ज की जिम्मेदारी दी जा रही है। इन नए अधिकारियों को फील्ड और जनता से संवाद का अनुभव बेहद सीमित होता है, जिससे जटिल मामलों की सही ढंग से विवेचना कर पाना और टीम को लीड करना चुनौती बन जाता है।
★ प्रशिक्षण और जमीनी हकीकत में अंतर -
बेशक प्रशिक्षिण के दौरान सभी दरोगाओं को कानून, विवेचना और व्यवहार का पाठ पढ़ाया जाता है, लेकिन वास्तविकता में थाना चलाना सिर्फ किताबों से नहीं सीखा जा सकता। इसमें सामाजिक समझ, अपराध की प्रकृति को पहचानने की क्षमता और फील्ड के अनुभव की जरूरत होती है। कई मामलों में देखा गया है कि थाना प्रभारी बनने वाले नए दरोगा अपने ही अधीनस्थ सिपाहियों से केस डायरी भरवाते हैं या वरिष्ठों से दिशा-निर्देश मांगते हैं।
★राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव के चलते हो रही पोस्टिंग? -
सूत्रों की मानें तो कई जगहों पर जूनियर दरोगाओं की पोस्टिंग खास सिफारिशों या प्रशासनिक दबाव के चलते की जा रही है। इससे विभाग में मनोबल और संतुलन बिगड़ रहा है। वरिष्ठ दरोगा खुलेआम इस बात को स्वीकार करते हैं कि आज ‘काम से ज्यादा नाम और संपर्क’ देखकर पोस्टिंग मिल रही है।
★ पुलिसिंग पर पड़ रहा असर -
थाने की जिम्मेदारी महज चार दीवारी तक सीमित नहीं होती। वहां पर जनता की शिकायतों को सुनना, अपराधियों से सख्ती से निपटना, स्टाफ को अनुशासित रखना और उच्च अधिकारियों को संतुष्ट करना – इन सबका अनुभव एकाएक नहीं आता। जब अनुभवहीन अफसरों को इन सबकी जिम्मेदारी दी जाती है तो कई बार न तो जनता को न्याय मिल पाता है और न ही अपराधों पर नियंत्रण हो पाता है।
★ वरिष्ठ अफसर मौन, लेकिन असंतोष गहराता जा रहा -
बात करें पुलिस मुख्यालय की तो वहां से स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि पोस्टिंग योग्यता और क्षमता के आधार पर होनी चाहिए, लेकिन जमीनी स्तर पर तस्वीर कुछ और ही है। वरिष्ठ अधिकारी इस मुद्दे पर खुलकर कुछ नहीं कहते, लेकिन विभाग के अंदरूनी हलकों में यह चर्चा अब आम हो चली है कि कहीं न कहीं सिस्टम में ‘अनदेखा संतुलन’ बनता जा रहा है।
★ जरूरत है पारदर्शी व्यवस्था की -
अगर यूपी पुलिस को बेहतर बनाना है और जनता का भरोसा कायम रखना है, तो थानों की जिम्मेदारी सही हाथों में देना जरूरी है। सीनियर अधिकारियों को उनके अनुभव और योग्यता के आधार पर मौके मिलने चाहिए, जबकि जूनियरों को फिल्ड में काम करने का मौका देकर उन्हें सीखने का समय देना चाहिए। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब अनुभवी अफसर हतोत्साहित हो जाएंगे और पुलिसिंग की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ेगा।