आचार पवित्रता
आचार पवित्रता
कहते है कि जीवन में विचारों की अगर पवित्रता हैं तो जीवन उज्ज्वल हैं । हमे हर परिस्थिति में सम्भाव में रहकर सही से जीवन जीना चाहिये ।
माना की परिस्थिति पर हमारा नियंत्रण नहीं है लेकिन हमारे विचारो पर तो हमारा नियंत्रण होना ही चाहिये । समस्या की सबसे बड़ी जड़ गलत विचारो का जीवन में आना हैं। कहते है कि भावो भावों से मानव सातवी नारकी का आयुष्य बाँध लेता है और भावों भावों से मानव सर्वत्सिद्ध देवलोक का आयुष्य बाँध लेता हैं । जब जीवन में सही व सकारात्मक हमारे भावों का प्रवाह होता है तो निश्चित ही हमे इस जीवन की सही राह मिल जाती है ।
हमारे मन का चिंतन ही हमारे आचार,विचार का निर्धारण आदि करता है । अगर हमारा चिंतन अच्छा हो तो हमारे आचरण से इस इस जीवन का क्षण क्षण संवर जाता है ।जिसके पास मधुर आचार व सुन्दर व्यवहार का धन होता है ।उसी व्यक्ति का सबसे उजला मन का आँगन व चिंतन होता है ।हमें इस जीवन की कलुषताओं का निर्मल भावधारा से परिस्कार करना है और नये जीवन की दिशा में अपने क़दमों को संभल - संभल कर धरना है ।
क्योंकि पाप शरीर नहीं करता हैं । पाप के मूल कर्ता हमारे अपने विचार हैं । विचार-प्रेरित शरीर पाप-धर्म का आचार करता है ।अतः सुधार की विचारों में आवश्यकता है ।विचार अच्छे होंगे तब स्वतः आचारों मे पवित्रता आ जाएगी। यही है विचार पवित्रता और विचार शुचिता। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )