राजस्थान द्वारा रोका हुआ है, आगरा का पानी : सुखी हुई हैं आगरा की दो नदियाँ.

Apr 6, 2025 - 19:15
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राजस्थान  द्वारा रोका हुआ है,  आगरा का पानी : सुखी हुई हैं आगरा की दो नदियाँ.

-लखनऊ में उठाया मुख्य मुद्दा - राजस्थान  द्वारा रोका हुआ है,  आगरा का पानी : सुखी हुई हैं आगरा की दो नदियाँ.

मुख्य मुद्दा 

- राजस्थान द्वारा रोका हुआ है, आगरा का पानी : सुखी हुई हैं आगरा की दो नदियाँ. कांग्रेस के प्रमुख नेता सुरेंद्र सिंह राजपूत ने आगरा जनपद की दो प्रमुख नदियों (उटंगन और खरी) के जल शून्य हो जाने पर गंभीर चिंता जताई . उन्होंने कहा उत्तर प्रदेश सरकार को इस सम्बन्ध में राजस्थान सरकार से वार्ता कर , कावेरी जल बटवारा पैटर्न पर उत्तर प्रदेश के लिए पानी की मांग रखनी चाहिए. श्री राजपूत ने राणा सांगा स्मारक के अभिन्न भाग खनुआ बांध के जल शून्य सितिही हो जाने पर आक्रोश जताया. आगरा में पिछले तीन दशक से बने चल रहे पानी के संकट को सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा और छांव फाउंडेशन लगातार उठाते रहे हैं।

सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा की चिंता यह है कि जनप्रतिनिधि और उ प्र शासन आगरा जनपद की उटंगन और खारी नदियों के जल शून्य स्थिति में पहुंच जाने को लेकर उदासीन है। ये दोनो ही इंटर स्टेट नदियां हैं,इनकी आगरा के भूगर्भ जल के रिचार्ज में खास उपयोगिता है,जब तक इनमें जलप्रवाह अविरल रहा जनपद के अधिकांश विकास खंडों में हैंडपंप सुचारू रहे। लेकिन जब से राजस्थान सरकार ने इनका पानी बिना उ प्र शासन की मंजूरी या सहमति के रोक लिया तब से आगरा अभूतपूर्व जल संकट के दौर में फंसा हुआ है।इन नदियों में पानी आना रोक देने से आगरा जनपद के 15 विकास खंडों में से फतेहपुर सीकरी अछनेरा,अकोला,खेरागढ,शमशाबाद, फतेहाबाद ,पिनाहट आदि विकास खंडों में तो हैंडपंप बीस साल पूर्व ही काम करना बंद कर चुके हैं।

नलकूप सहित सबमर्सिबल पंपों के लिए बोरिंग अनुमति अत्यंत मुश्किल भरी आवश्यक औपचारिकता हो चुकी है। उपरोक्त दोनों नदियां राजस्थान के करौली जनपद की विद्य पहाड़ी की निचली श्रंखलाओं से निकलने वाली जलधाराओं से पोषित अंतर्राज्यीय नदियां हैं ।चूंकि इन नदियों का एक बड़ा जलग्राही क्षेत्र आगरा जनपद की सीमा से लगा हुआ है अत:फलस्वरूप आगरा जनपद परोक्ष रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित है। आगरा में सिंचाई विभाग के समक्ष यह मुद्दा लगातार उठाते रहे हैं।जनप्रतिनिधियों को भी इसकी जानकारी दी किंतु शासन तक यह मामला नहीं पहुंचा।

★--उ प्र सरकार करे राजस्थान से बात* अंतर्रजिये जल विवाद और गैर कानूनी रूप से नदी का पानी रोकने के मामले में नागरिको और नागरिक संगठनों की एक सीमित भूमिका ही होती है, सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा ने इस मामले में सिंचाई विभाग के स्थानीय अधिकारियों ,प्रशासन तंत्र को अपनी चिंता से अवगत करवाती रही है। लेकिन जनप्रतिनिधियों ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। सिंचाई विभाग पानी की किल्लत का मुख्य कारण राजस्थान के द्वारा जनपद की उटंगन और खारी नदी का पानी रोक लेने को मानती है।लेकिन इस मामले में शासन स्तर से ही कार्रवाई संभव है। उपरोक्त मुद्दे को प्रदेश के मुख्यालय पर आकर उठाने का कारण है कि आगरा के हितचिंतक ,शासन के पदस्थ ,जनप्रतिनिधि तथा पर्यावरण एक्टिविस्टों के साथ भी अपनी चिंता साझा कर सकें।

★--शीरोज हैंग आउट सहभागी* लखनऊ में यह आयोजन इस अभियान में सहभागी शीरोज हैंग आऊट संगठन के सहयोग से आयोजित करना संभव हो सका है।इसके लिये शीरोज हैंगआउट कैफे में 6-4-25 को संगोष्ठी /परिचर्चा का आयोजन किया गया।सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा को उम्मीद है कि इस मुद्दे को राज्य की राजधानी में उठाने का नीति निर्माताओं के हमारी चिंताओं को जरूर गंभीरता से लिया जायेगा। ★ मुख्य मुद्दे:-

● संगोष्ठी एवं प्रेस मित्रों के माध्यम से जिन बिंदुओं को उठाने का प्रयास किया है,उनमें मुख्य हैं:-* (1) उ प्र शासन के प्रमुख सचिव सिंचाई विभाग से उटंगन और खारी नदी के विषय में रिपोर्ट मांगे। (2) राजस्थान सरकार के द्वारा इन नदियों का पानी अनधिकृत रूप से रोके जाने को गंभीरता से लेकर राजस्थान सरकार से वार्ता करें। (3) अगर जरूरी हो तो अंतरराज्यीय नदियों के जल बंटवारे की नीति का अनुपालन करवाने को केन्द्र से वार्ता करे। (4) खारी नदी से फतेहपुर सीकरी स्मारक समूह का अभिन्न भाग तेरह मोरी बांध भी पोषित होता है जो कि यह उ प्र का अकेला हेरिटेज डैम है। इसकी बदहाली दूर कर जलयुक्त पर सिंचाई विभाग से कार्ययोजना बनाये जाने को कहा जाये। (5) खनुआ बांध जो कि उटंगन नदी का हेड है,बदहाली का शिकार है,यहां मेवाड़ के राजा राणा सांगा और उनके तमाम वीर साथियों की स्मृति में भव्य स्मारक बना हुआ है।बांध में अब पानी नहीं भरता ।यह स्मारक उ प्र की सीमा से महज 900 मीटर दूर है और इसका जलाशय आगरा जनपद के भूजल स्तर पर अनुकूल प्रभाव डालता है।अत:राजस्थान सरकार से स्मारक के अभिन्न भाग खनुआ बांध (भरतपुर रियासत कालीन नाम:-बावन मोरा)को पुन:जलयुक्त करने पर वार्ता की जाये।

★--पी पी टी प्रजेंटेशन* चर्चा की शुरुआत ड्रोन मैपिंग आधारित पीपीटी प्रेजेंटेशन से हुई ।उटंगन नदी के हैड पर स्थित खानवा के मैदान में बना राणा सांगा स्मारक,उसकी पृष्ठ भूमि में स्थित खनुआ बांध,फतेहपुर सीकरी स्मारक समूह के अभिन्न भाग एवं हेरिटेज ‘तरह मोरी बांध’ की ड्रोन मैपिंग पी पी टी में समाहित हैं। अपनी बात को अधिक स्पष्ट करने के लिये सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा ने 15 मिनट के वॉयस ओवर के साथ पीपीटी तैयार की है ।जिसके माध्यम से यह वर्तमान स्थिति को दर्शाने का प्रयास किया है। यह पहली बार है कि दोनों नदियों और नदियों के आसपास के क्षेत्र का कोई भी प्रलेखन किया गया है। इस पीपीटी को प्रशासन और निर्णय करने वालों के समक्ष तो प्रस्तुत की, साथ ही जब भी उपयुक्त अवसर होगा नागरिकों के समक्ष भी तथ्यात्मक जानकारी रखेंगे। इस पी पी टी को बनाने में अनिल शर्मा-सचिव, राजीव सक्सेना-वरिष्ठ सदस्य और पत्रकार; फोटोग्राफी ललित राजोरा- सरकारी फोटोग्राफर और स्थापित वन्यजीव फोटोग्राफर, वॉइस ओवर अंतर्राष्ट्रीय गजल गायक सुधीर नारायण द्वारा और संपादन यथार्थ अग्निहोत्री- अंतर्राष्ट्रीय अभिनेता, निर्देशक और कोरियोग्राफर का सक्रिय योगदान रहा है।जबकि अभियान में सहयोगी प्रेस फोटोग्राफर असलम सलीमी हैं।

★ -प्रयास* सिविल सोसाइटी ऑफ़ आगरा जिला पंचायत अध्यक्ष डा मंजू भदौरिया जो कि जिला स्तरीय जल प्रबंधन संबधी सबसे महत्वपूर्ण निकाय ‘ सिंचाई बंधू’ की अध्यक्ष भी हैं। प्रयासों से कई सकारात्मक स्थितियां भी बनीं किंतु फिर स्थिर हो गई हैं। उटंगन नदी पर रेहावली गांव में बांध बनाने को हुआ सर्वेक्षण इन्हीं प्रयासों में है। डॉ. मंजू भदौरिया ने व्यक्तिगत रूप से यूपी के सीएम को एक पत्र और तथ्यात्मक जानकारियों की रिपोर्ट दे चुकी हैं। लेकिन अब सिंचाई विभाग से अगले कदम की प्रतीक्षा है। एक नागरिक समूह के रूप में आगरा के पानी संबधी मुद्दे को राजधानी में लाए जाने के लिये एसिड अटैक सर्वाइवर्स और उनके संगठन शीरोज हैंग आउट के आभारी हैं।

 ● जनपद का जलसंकट - जनपद के 15 विकास खंडों में जितने भी नगर निकाय हैं, एक में भी नदी जल या झील आधारित जलापूर्ति के लिये वाटर वर्क्स नहीं है।केवल ट्यूब वैल से भूजल सप्लाई होती है।जलप्रदाय प्रतिष्ठान के रूप में जल निगम को जलस्तर गिरने से अपने ट्यूब वैलों का सुचारू संचालन बनाये रखने के लिये हरसाल बोरिंगों का गहरा करवाना पडता है। जलभित्ती तंत्र के पहले स्तर जल शून्य हो चुके हैं। केन्द्रीय द्रीय भूमि जल बोर्ड जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय उत्तरी क्षेत्र, लखनऊ ,के साइंटिस्ट Sujatro Ray Chowdhury, Scientist-B Ajai Vir Singh, Scientist-D की AQUIFER MAPPING AND MANAGEMENT PLAN AGRA DISTRICT, U.P. (A.A.P.: 2018-19) की रिपोर्ट अत्यंत महत्वपूर्ण है।इसमें अत्यधिक भूजल दोहन से जनित की स्थिति का सबसे नवीन उपलब्ध आकलन है। लेकिन लगता है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों के द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया गया है।शायद यही कारण है कि यमुना एक्सप्रेस वे और लखनऊ एक्सप्रेस वे को जोड़ने वाले आगरा विकास प्राधिकरण के टोल रोड पर स्थित रहनकलां गांव में यमुना नदी के किनारे पांच रैनीवैल बनाये जा रहे हैं।

यमुना नदी पर प्रशासनिक इकाई के रूप में अधिकृत अधीक्षण अभियंता तृतीय वृत्त, सिंचाई वृत्त कार्य, आगरा के आधीन कार्यरत अधिशासी अभियंता लोअर खंड आगरा नहर प्रतापपुर आगरा यह बताने की स्थिति में नहीं है कि दो -दो करोड़ लि. प्रतिदिन क्षमता से जल दोहन करने वाले बनाये जा रहे पांच रेनी वैलों के सक्रिय हो जाने के बाद यमुना में अविरल बहाव की स्थिति रह भी जायेगी या नहीं। *--महानगर का पानी संकट* आगरा एक बड़े जल संकट के दौर में है,महानगर की आबादी और सीमा क्षेत्र काफी बढ़ चुके हैं।भूजल खारा है साथ ही जल दोहन को अनुमति मिलना अब आसान नहीं रह गया है।पूरे महानगर की जलापूर्ति गंगा जल पाइप लाइन से मिलने वाली 140 क्यूसेक जलराशि पर निर्भर है। नगर निगम प्रशासन के तहत संचालित जल संस्थान के द्वारा उपलब्ध करवायी जाती रही जानकारी के अनुसार वर्तमान में आगरा की पानी की मांग 394 एमएलडी है जबकि आपूर्ति 270 एमएलडी है। यदि जल संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास किये जायें तो भी वर्षा जल को इकट्ठा करके एक वर्ष में आगरा के लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आपूर्ति में लगभग 75% अंतर कम करने का योगदान संभव है।जो अपने आप में असंभव सा लगता है, जो तालाब नगर क्षेत्र में बनाये गये हैं,उनमें से अधिकांश में जल योगदान देने के लिए न तो माइक्रो वाटर शेड तंत्र विकसित किया गया है और नहीं गाद निकासी की व्यवस्था कर भूजल रिचार्ज का ही इंतजाम है। वर्तमान में आगरा के पहले से ही दो जलभृतों(aquiferous systems ) में से एक समाप्त हो चुका है और यदि इसी तीव्रता और दर से पानी निकाला जाता रहा तो दूसरा जलभृत सूख जाएगा।

आगरा के लोग अपनी पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पाइप से पानी की आपूर्ति, सरकार द्वारा साइट पर उपलब्ध कराए गए सबमर्सिबल, टैंक और बोतलबंद पानी पर निर्भर हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण पानी की गुणवत्ता पिछले कुछ वर्षों में खराब हो गई है जिससे पानी खारा और पीने योग्य नहीं रह गया है। जी बोरवेल के कारण उच्च भूजल निष्कर्षण में योगदान दे रही है। नीति आयोग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, आगरा 2020 तक भूजल समाप्त होने वाले 21 शहरों में से एक था,कमोवेश इसमें अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है। *(आंकलन की सुलभता के लिये:- one millions of liter 1,000,000. , 1 cusec unit equals mens :-28.317 liters of liquid flow per second )* राणा सांगा स्मारक* जिस प्रकार गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (सरदार सरोवर की प्रतिमा ) की पृष्ठभूमि में नर्मदा नदी पर स्थित सरदार सरोवर अपने आप में एक विशिष्ठ आकर्षण है ठीक वैसी ही परिकल्पना ऐतिहासिक प्रेरक चरित्र महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) का स्मारक बनाते समय राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने की थी।यह बात अलग है कि वसुंधरा जी की यह परिकल्पना सरदार सरोवर परियोजना के जमीनी क्रियान्वयन(2017) से कही पूर्व 2007-8 में इसे स्थापित कर दिया गया था।

20फ़रवरी 2015 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक डा. मोहनराव जी भागवत (मोहन भागवत ) ने यहां आकर अपने एतिहासि भाषण में राणा सांगा की वीर गाथा का स्मरण कर कहा था कि स्मारक विदेशी आक्रांता के बनाए बुलंद दरवाजे(फतेहपुर सीकरी ) का जवाब। विंध्य पहाडी पर राणासांगा स्मारक राजस्थान के पर्यटन आकर्षण में बढोत्तरी करने वाली संरचना के रूप में निर्मित किया गया।जिस पहाड़ी पर यह बनाया गया उसकी दाहिनी ओर खनुआ बांध है।इस बांध में करौली जनपद से शुरू होने वाली गंभीर नदी का पानी संग्रहित होता है।भौतिक दृष्टि से खनुआ,वोकोली आदि सहित पांच ग्राम पंचायत क्षेत्रों की 22 वर्ग कि मी जमीन बांध का जल विस्तार/आच्छादन क्षेत्र है। जब तक बांध में गंभीर नदी का पानी आता रहा तब तक राणा सांगा स्मारक पर्यटकों के लिये अपने आप में एक विशिष्ट आकर्षण बना रहा।यहां पहुंचने वालों में भरतपुर,केवलादेव पक्षी सेंचुरी पार्क देखने वाले पर्यटकों के अलावा फतेहपुर सीकरी स्मारक समूह देख कर पहुंचने वाले पर्यटक भी बडी संख्या में होते थे।खनुआ बांध में वोटिंग( नौका विहार) की व्यवस्था कभी नहीं हो सकी लेकिन स्मारक प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन होने के पूर्व तक यह विचाराधीन जरूर रही।

 राणा सांगा का स्मारक अधिक आकर्षण युक्त करने की बात राजस्थान सरकार कर रही है,अगर वह कुछ अन्य नहीं करे और केवल खनुआ बांध में 10फुट जलस्तर बनाये रखना सुनिश्चित करदे तो स्वत:ही बडी संख्या में पर्यटक वहां पहुंचने लगेंगे। वर्तमान में राणा सांगा स्मारक पर टूरिस्टों का फुटफॉल 50 व्यक्ति भी प्रतिदिन नहीं है,जबकि पहले दो से ढाई हजार पर्यटकों का यहां आना जाना रहा है। खनुआ बांध पूर्व में बाबन मोरा के नाम से जाना जाता था।इसका जल डूब क्षेत्र अनियंत्रित था,लार्ड कर्जन ने इसे व्यवस्थित करवाया और इसके स्ट्रैक्चर को सैलूस गेट युक्त करवाया ।खनुआ के गेट से निकलने वाली जलधारा को उ प्र में उटंगन नदी के नाम से जाना जाता है।सिरौली गांव से यह उ प्र में प्रवेश करती है।डाउन में डाबर गांव में खनुआ के वोकोली एस्केप से निकलने वाली जलधारा इसमें डाबर गांव में मिलती है।भगर्भ जल रिचार्ज और ताज ट्रिपेजियम क्षेत्र (TTZA)में धूल के कण (Suspended Particulate Matter-SPM )नियंत्रित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण जल संचय संरचना है।