कहानी : * बहू का काम

Mar 16, 2025 - 08:53
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कहानी : *  बहू का काम

कहानी :  बहू का काम 

ऑफिस से आने के बाद मैंने अभी घर में प्रवेश किया ही था कि देखा तो सामने सोफे पर सासू मां और ननद दिक्षा मुंह फुला कर बैठी हुई थी, जबकि पति समर का चेहरा भी गुस्से में तिल मिला रहा था। और तीनों ही मुझे घूर रहे थे। जैसे पता नहीं मैं क्या कर दिया हो। पर किया तो सचमुच मैंने ही था। मुझे मन ही मन समझ में आ गया कि आखिर आग लग ही गई, जो कि मैं सचमुच लगाना चाहती थी। लेकिन इतनी जल्दी आग लगेगी, इसका अंदाजा मुझे नहीं था। अभी एक घंटे पहले ही तो मैंने अपना काम किया था। और उसका असर इतनी तेज हुआ।

मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था। खैर, मैं अपनी तरफ से कोई बात शुरू नहीं करना चाहती थी। मैं तो चाहती थी कि शुरुआत ये लोग खुद करें। इसलिए बिना कुछ कहे अभी मैं कमरे में जा ही रही थी कि सासू मां ने मुझे रोक दिया, " कहां जा रही है? पहले हमें जवाब देकर जा " मैंने अपने कदम वही रोक दिए और उनकी तरफ पलट कर देखा। और फिर अनजान बनते हुए कहा, " क्या हुआ मम्मी जी? कोई बात हो गई है क्या? आज आप बड़ी गुस्से में लग रही हो " मेरी बात सुनकर सासू मां और ज्यादा चिढ़ गई। और फिर गुस्से में बोली, " आहा! देखो तो इसे। कैसे अनजान बन रही है। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। सारी दुनिया में हमारी बुराई करती फिर रही है और कह रही है कि आखिर क्या हुआ। सारी दुनिया भर में ढिंढोरा पिटते फिर रही है कि हम इसकी कमाई खाते हैं। हमारा घर का खर्चा ही इसके पैसों से चलता है। सारी दुनिया में हमारी जग हंसाई करती फिर रही है " उनकी बात सुनकर मैंने हैरान होते हुए कहा, " पर मम्मी जी, मैंने तो किसी से कुछ भी नहीं कहा। भला आपको किसने क्या कह दिया " " अच्छा! भाभी आपने अभी एक घंटे पहले बुआ जी से फोन करके नहीं कहा कि इस घर की ईएमआई आपकी सैलरी से जाती है। यहां तक कि कई बार मम्मी की दवाई भी आपके पैसों से आती है। घर के खर्चों में आप भी अपनी सैलरी से हिस्सा देती हो " ननद दिक्षा ने तमतमाते हुए कहा।

 इससे पहले कि मैं ननद को जवाब देती, तभी पति समर भी बीच में तमक कर बोले, " अरे, मैं भी कमाता हूं। इस घर में बराबर पैसा खर्च करता हूं। लेकिन एहसान नहीं जताता हूं कि मैंने इतना कुछ किया है। सच ही कहा है किसी ने। एक आदमी अपनी पूरी कमाई घर में लगा दे तो ये उसकी जिम्मेदारी है। वो इसका ढिंढोरा भी नहीं पिटता। लेकिन एक बहू अगर थोड़े से भी पैसे खर्च कर दे तो एहसान हो जाता है। और फिर वो सबको बताती और फिरती है " समर की बात सुनकर मैंने कहा, " पर मैंने तो बुआ जी से सिर्फ इतना ही कहा था कि मेरी सैलरी का कुछ हिस्सा मैं घर में खर्च करती हूं। तो इसमें गलत क्या है? अब करती हूं तो करती हूं। झूठ तो कुछ भी नहीं बोला था मैंने। और वैसे भी फोन मैंने नहीं किया था। बुआ जी ने हाल-चाल पूछने के लिए फोन किया था तो बातों ही बातों में ये बात बोली थी मैंने " मैंने इतने आराम से कहा कि सामने वाला इंसान और ज्यादा गुस्से में हो गया, " अच्छा! ये गलत नहीं है? ये महारानी सब को कहती फिर रही है कि ये हमारे खर्चे उठाती है। जैसे इसके आने से पहले हमारे घर में तो खर्चे नहीं होते थे। और ऊपर से अब भोली बन रही है। घर सबका है। सब मिलकर अपना अपना योगदान देते हैं घर के खर्चो को पूरा करने में। तो एहसान जताने की जरूरत क्या है " सासू मां हाथ नचाते हुए बोली।

 " अच्छा मम्मी जी। आपको मेरा कहना बुरा लग रहा है? तो फिर एक बात बताइए। जब मैं कमाने जाती हूं तो घर का सारा काम करके जाती हूं। उससे मुझे कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब कोई काम घर में रह जाता है। और वो घर के छोटे-मोटे काम आप लोग कर देते हो। तो फिर आप लोग मुझ पर एहसान क्यों जताते हो। और फिर सबको कहते फिरते हो कि ये काम हमने किया, वो काम हमने किया। बहु तो काम छोड़ कर चली गई। जब घर सबका है तो काम की जिम्मेदारी भी सबकी है। फिर मुझ पर ऐसा एहसान क्यों। क्या ये गलत नहीं है?" मेरे ऐसा कहते ही तीनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। पर मैंने बोलना जारी रखा, " क्या कह रहे थे आप? एक आदमी अपनी कमाई पूरी घर में लगा देता है लेकिन उसका ढिंढोरा नहीं पिटता। लेकिन अगर पत्नी के काम में थोड़ी सी मदद कर देता है तो उसका ढिंढोरा हर तरफ पीट देता है। तो फिर उसे तो बुरा मानना ही नहीं चाहिए जब पत्नी ये कहती है कि मैं भी कमा कर घर में खर्च करती हूं। मैंने तो एक बार कहा उसमें आप लोग चिढ़ गए। सोचो आप लोग तो अक्सर मेरे बारे में इस तरह की बातें करते हो। मुझे कैसा लगता होगा" अब तीनों बिल्कुल चुप थे। उन लोगों को ऐसे ही छोड़कर मैं अपने कमरे में आ गई।

 अक्सर यही होता था मेरे साथ। मेरी जॉब भी सुबह 9:00 से 5:00 की थी लेकिन ऑफिस जाने से पहले सुबह जल्दी उठकर मैं घर का सारा काम करके जाती थी। जिस समय मैं काम कर रही होती थी, उस समय घर में कोई भी किसी काम को हाथ तक नहीं लगाता था। मतलब सारा काम मेरी जिम्मेदारी थी। लेकिन हूं तो इंसान ही। कई बार कुछ काम रह जाते थे। ऑफिस टाइम पर पहुंचना होता था। इस कारण उन काम को मैं छोड़ देती थी। लेकिन समस्या उसके बाद शुरू होती थी। सासू मां और ननद पीछे से वो काम कर तो देती थी, लेकिन उसके बाद आस पड़ोस में, मौसी सास, मामी सास सबको जरूर बोल देती थी। और फिर वो लोग जब मुझसे मिलती तो मुझसे दस सवाल करती। " अरे तुम्हारी सास की आराम करने की उम्र है। उन्होंने तो अपने टाइम पर बहुत काम कर लिया। अब तो उन्हें आराम दो। बहू के होते हुए वो घर का काम करें अच्छा लगता है क्या। अगर नौकरी करने का इतना ही शौक है तो घर का पूरा काम करके जाया करो। आखिर वो काम भी तुम्हारी पहली जिम्मेदारी है" सुनकर बुरा तो लगता है लेकिन क्या ही कहती। ये लोग तो बेचारे बन जाते थे और मैं अत्याचारी। जब इस बारे में समर से बात करती तो समर उल्टा मुझे ही डांट देते, " इतना ही बुरा लगता है तो घर के काम करके जाया करो। क्यों काम छोड़ कर जाती हो" सासू मां से कहती तो वो और चिढ़ जाती, " अब तुम काम छोड़ जाती हो तो मुझे तो करना ही पड़ता है। जो सच है वही तो कह रही हूं। अगर लोगों के सामने इतना शर्मिंदगी लगती है तो सुबह जल्दी उठकर काम कर लिया करो" अब कैसे समझाऊं? सुबह पांच बजे तो उठती हूं। और कितना जल्दी उठूं? इंसान हूं, कोई मशीन थोड़ी ना हो कि काम में ही लगी रहूं।

आखिर मशीन को भी आराम चाहिए होता है। अब आज की ही बात लो। सुबह मैं रसोई में काम में लगी हुई थी। सबके लिए खाना और नाश्ता बना लेने के बाद रसोई को साफ कर सबको नाश्ता करने के लिए बोलकर मैं ऑफिस के लिए तैयार होने अपने कमरे में चली गई। जब तैयार होकर अपना टिफिन लेने वापस रसोई में आई तो तुम मेरे पैर वही ठिठक गए। देखा रसोई फैली पड़ी थी। मुझे ऐसे खड़ी देखकर सासु मां ने कहा, " हमें पोहे नहीं खाना। आज मेरी और दीक्षा की उपमा खाने की इच्छा हो रही थी। तो सोचा अच्छे से सब्जियां डालकर उपमा ही बना लूं " अरे उपमा बनाना था तो शौक से बनाती। पर पहले पोहे क्यों बनवाएं। अब बनवाए जो बनवाए लेकिन कम से कम रसोई तो साफ कर देती। मैंने मन ही मन सोचा। पर मेरा टाइम हो चुका था। तो रसोई को ऐसे ही छोड़कर मैं अपना टिफिन लेकर ऑफिस के लिए रवाना हो गयी। मुझे पता था कि इस बारे में भी बातें जरूर होगी। और मेरा अंदाजा बिल्कुल सही निकला, जब कुछ देर पहले बुआ सास का फोन आया। मेरे फोन उठाते ही उन्होंने कहा, " अरे बहू, कैसी हो तुम? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?" " हां बुआ जी, मेरी तबीयत तो बिल्कुल ठीक है। आप ऐसा क्यों पूछ रही है " मैंने उल्टा उनसे ही सवाल किया। " वो दरअसल मैंने आज फोन लगाया था। तब भाभी कह रही थी कि तुम आज भी अपना घर का काम छोड़ कर आ गई थी। और तुम्हारी मम्मी जी अकेले काम कर रही थी तो मुझे लगा कि तुम्हारी तबीयत तो खराब नहीं है। इसलिए तुम्हारे हाल-चाल पूछने के लिए फोन लगाया था " सुनकर मुझे बुरा लगा। सोचा कि क्या जवाब दूं। पर ये तो हमेशा का ही था। तभी बुआ जी ने कहा, " देखो बहु, तुम कमा रही हो। पैसा सेव कर रही हो। अच्छी बात है।

लेकिन कम से कम उनकी उम्र का भी तो ख्याल रखो। आखिर लोग बहु लाते किस लिए है कि बुढ़ापे में उनका सहारा हो जाए" सचमुच ऐसा लगा कि वाकई मैं तो बहुत ही बड़ी अत्याचारी हूं। सारा काम करने के बावजूद अगर सिर्फ रसोई साफ नहीं की। तो उसे साफ कर वो बेचारी बन गई। पता नहीं आज मुझे क्या हुआ। हर बार परिवार की इज्जत का सोच कर चुप रह जाती थी। लेकिन ये लोग तो मेरे सिर पर ही चढ़कर नाचने लगे थे। मैंने बुआ जी से कहा, " बुआ जी कहां पैसे सेव कर पाती हूं मैं। आप तो घर की हो। आपको तो पता ही है कि विराट की इनकम से घर खर्च, दीक्षा की पढ़ाई, कोचिंग का खर्चा, कार की ईएमआई चली जाती है। बचता ही क्या है उनके पास। फिर मकान लोन लेकर हम लोगों ने बनाया था। तो उसकी किस्त के सारे पैसे मैं ही तो देती हूं। फिर मम्मी जी की दवाई के खर्चे भी मुझे ही करने पड़ते हैं। दीक्षा की शादी के लिए अलग से आर डी भी करवा रखी है तो हर महीने उसके पैसे भी कटते हैं। सेविंग तो नाम मात्र की ही होती है" इसके आगे तो बुआ जी ने कुछ नहीं कहा। बस हाल-चाल पूछ कर फोन रख दिया। पर मुझे अब पक्का पता था कि वो अब घर पर फोन लगाएगी और इस बारे में अपनी भाभी से बात जरूर करेगी। और मेरा अंदाजा सही भी निकला। और उसके बाद ही ये सारा हंगामा हुआ। फिर उसके बाद सब लोग मुंह खुल कर ही रहे। तीन-चार दिन तक तो किसी ने मुझसे बात भी नहीं की। कोई बात नहीं। ना करें। मुझे क्या फर्क पड़ता है। आखिर कब तक बर्दाश्त करती रहती। जब उन लोगों ने देखा कि ये तो आप माफी भी नहीं मांग रही तो अपने आप ही सब लोग नॉर्मल हो गए। पर उसके बाद अब कोई मुझे काम का एहसान नहीं जताता। आखिर पता था कि जैसे ही काम का एहसान जताएंगे, वैसे ही मैं भी बोलना शुरू कर दूंगी। आखिर जबान तो मेरी भी अब खुल चुकी थी।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब