Editorial: समाज नहीं , गिरोह बचे हुए हैं।
केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस घिनौनी सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों की ...
समाज नहीं , गिरोह बचे हुए हैं।
-शिवानंद मिश्रा
जब समाज गिरोहों में बटा होता है तब योग्यता नकार दी जाती है। आज यह यथार्थ है कि समाज नहीं बचा हुआ है, गिरोह बचे हुए हैं। कोई गिरोह जाति का है, कोई गिरोह क्षेत्र का है तो कोई गिरोह विचारधारा के नाम पर है, जबकि यथार्थ यह है कि उसमें अधिकांश लोगों में न कोई विचार है और न ही कोई धारा है।
कहीं जातियों के नाम पर भयादोहन हो रहा है, तो कहीं क्षेत्र के नाम पर और कहीं विचारधारा, दल और संगठन के नाम पर।
कोई कह रहा है अल्पसंख्यकों की चिन्ता होनी चाहिए, कोई कह रहा है जातियों की चिन्ता होनी चाहिए, तो कोई कह रहा है हमारे संगठन के कार्यकर्ताओं की चिन्ता होनी चाहिए और इस हर चिन्ता से एक अनियमितता उत्पन्न हो रही है, क्योंकि मनुष्य और उसकी योग्यता की चिन्ता पर ये सभी चिन्ताएं भारी पड़ रही हैं। ऐसी स्थिति मे योग्यता तो निरीह होकर केवल मूक है।
आपने म्यांमार में भी एक बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा। केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस घिनौनी सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों की हत्या किया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता का विनाश कर दिया।
परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ी..।
बलात्कार के रूप में ।
आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद और नराधमों के अनवरत कुसंग के चलते समय बीतने के साथ धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी।
जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी.. दुधमुंही.. देवी जैसी बच्चियों तक का बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये भयानक रूप हमें देखने को मिल रहा है।
शिवानंद मिश्रा