उत्तर प्रदेश पुस्तकालय अधिनियम एवं पुस्तकों के उपयोग” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
“उत्तर प्रदेश पुस्तकालय अधिनियम एवं पुस्तकों के उपयोग” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय (बीबीएयू), लखनऊ के सूचना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष और पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग के प्रोफेसर, डॉ. एम. पी. सिंह ने नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा रिवर फ्रंट प्रांगण में आयोजित गोमती पुस्तक महोत्सव के अवसर पर उत्तर प्रदेश पुस्तकालय एसोसिएशन, लखनऊ शाखा और नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में “उत्तर प्रदेश पुस्तकालय अधिनियम एवं पुस्तकों के उपयोग” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया।
संगोष्ठी में अन्य वक्ताओं के रूप में डॉ. मनीष कुमार बाजपेई, पुस्तकालय प्रभारी, डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ, श्री विनोद कुमार मिश्र, पुस्तकालयाध्यक्ष, पॉलिटेक्निक शामिल हुए, जबकि मंच का संचालन श्री सतीश यादव ने किया। डॉ. एम. पी. सिंह ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि ज्ञान से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं होती और पुस्तकें ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत हैं। उन्होंने पुस्तकालयों को शिक्षा का मंदिर और लोकतंत्र का स्तंभ बताते हुए कहा कि ये न केवल ज्ञान का भंडार हैं बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव और राष्ट्र निर्माण में सहायक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पुस्तकालयों की भूमिका केवल अध्ययन और शिक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्तियों और समाज को नैतिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाने में सहायक हैं।
डॉ. एम. पी. सिंह ने उत्तर प्रदेश पुस्तकालय अधिनियम, 2006 के महत्व पर चर्चा करते हुए बताया कि इस अधिनियम का उद्देश्य राज्य में सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना, प्रबंधन और उनके रखरखाव को सुनिश्चित करना था, परंतु 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह अधिनियम लागू नहीं हुआ है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जी से आग्रह किया कि इस अधिनियम को लागू कर इसे एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम बनाया जाए, जो शिक्षा और ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने में सहायक होगा। इसके साथ ही उन्होंने “एक राष्ट्र, एक पुस्तकालय कानून” (One Nation, One Library Legislation) बनाने की सिफारिश भारत सरकार से की। उन्होंने कहा कि पुस्तकें न केवल ज्ञान का भंडार होती हैं, बल्कि वे सोच को विकसित करने, नई दिशाओं में मार्गदर्शन देने और समाज को प्रगति के लिए प्रेरित करने का भी कार्य करती हैं। पुस्तकालयों का विस्तार और विकास समाज में शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा दे सकता है।
उन्होंने पढ़ने की संस्कृति को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि आज का पाठक कल का नेता होता है, और पढ़ाई की आदत समाज और व्यक्तित्व के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के नायकों जैसे डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और शहीद भगत सिंह के उदाहरण देकर यह बताया कि अध्ययन और पुस्तकों के प्रति प्रेम ने उनके जीवन में क्रांति ला दी। डॉ. एम. पी. सिंह ने संगोष्ठी में उपस्थित सभी पुस्तकालय समाज, शोधार्थियों और छात्रों का धन्यवाद किया। उन्होंने आयोजन समिति के सदस्यों, विशेषकर श्री विनोद कुमार मिश्र, श्री अमित सिंह, और कुंवर अभिषेक सिंह के प्रति भी आभार व्यक्त किया। इस संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश और अन्य प्रांतों से पधारे पुस्तकालय पेशेवरों और बुद्धिजीवियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।