भगवान की चिट्ठी

Oct 28, 2024 - 20:25
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भगवान की चिट्ठी
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भगवान की चिट्ठी

एक घर में मां बेटी रहती थी रात का समय था। दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई मां और बेटी बहुत गरीब थे। छोटे से घर में रहते थे बेटे ने दरवाजा खोला तो वहां पर कोई नहीं था नीचे देखा तो चिट्ठी पड़ी हुई थी बेटी ने चिट्ठी खोलकर पढ़ी तो हाथ कांपने लगा और जोर से चिल्लाई मां इधर आओ चिट्ठी में लिखा था बेटी मैं तुम्हारे घर आऊंगा तुमसे और तुम्हारी मां से मिलने और नाम की जगह नीचे लिखा था भगवान। मां ने कहा यह शायद हमारी गली के किसी लड़के ने तुम्हें छेड़ने के लिए बहुत ही गंदी शरारत की है लेकिन बेटी को मां की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था बेटी बोली मां पता नहीं क्यों मुझे यह सच लग रहा है मां को मना कर बेटी और मां दोनों तैयारी में लग गई घर भले ही छोटा सा था लेकिन दिल बहुत अमीर। घर पर एक चटाई थी मेहमानों के लिए थे निकाल कर बिछा दी और रसोई घर में जाकर देखा तो खाने का एक दाना नहीं था। बेटी और मां दोनों गहरी सोच में पड़ गए हैं यदि भगवान सच में आ गए तो खाने में कुछ नहीं दे पाएंगे।

आगे पीछे का कुछ नहीं सोचा बचत के 300 रुपए बेटी के पास थे पैसे लेकर वे दोनों छाता और कंबल लेकर किराने की दुकान के लिए निकल पड़े बारिश होने वाली थी और ठंड भी बहुत ज्यादा थी एक पैकेट दूध एक मिठाई का बॉक्स और कुल 200 रुपये की चीजें खरीद कर वापस लौट आए। क्योंकि उन्हें लगा शायद भगवान घर पर पहुंच गए होंगे घर से थोड़ी दूर पहुंची तो देखा कि जोर से बारिश शुरू हो गई और सड़क किनारे एक पति-पत्नी खड़े थे और ऑटो पास से गुजरा तो लड़की ने देखा उनके हाथ में छोटा बच्चा रो रहा था स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी है ऑटो घर के दरवाजे पर पहुंचा मां ऑटो से उतरी थी की बेटी से रहा नहीं गया बोली ऑटो वाले भैया जरा ऑटो को उनके पास ले लो पास जाकर देखा तो बच्चे को तेज बुखार था और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था एक तरफ भगवान घर पर आने वाले हैं और दूसरी तरफ यह समस्या बेटी ने सोचा भगवान को मना लूंगी लेकिन यदि इन्हें ऐसे ही हाल में छोड़ दिया गया तो भगवान बिल्कुल भी माफ नहीं करेंगे। बेटी ने जो-जो खरीदा था सब उनके हाथ में थमा दिया और तो और बचे हुए पचास रुपए भी दे दिए और बोली अभी मेरे पास इतना ही है इसलिए रख लीजिए बारिश हो रही थी तो छाता भी दे दिया और बच्चे को ठंड न लगे इसलिए कंबल भी दे दिया।

वहां से फटाफट घर पहुंचे यह सोचकर कि भगवान आ गए होंगे लेकिन दरवाजे पर मां खड़ी थी बोली आने में इतनी देर क्यों लगा दी बेटी और यह देख एक और चिट्ठी आई है। पता नहीं किसकी है बेटी ने पढ़ना शुरू किया उसमें लिखा था बेटी आज तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई पहले से दुबली हो गई हो लेकिन आज भी उतनी ही सुंदर हो मिठाई बहुत अच्छी थी और तुम्हारे दिए हुए कंबल से बहुत आराम मिला छाता देने के लिए धन्यवाद बेटी। अगली बार मिलते ही लौटा दूंगा बेटी के तो होश उड़ गए निशब्द होकर पीछे मुड़कर सड़क किनारे देखा तो वहां कोई नहीं था चिट्ठी में आगे लिखा था इधर उधर मत ढूंढो मुझे मैं तो कण-कण में हूं जहां पवित्र सोच हो मैं हर उस मन में हूं यदि दिखे कोई जरूरतमंद तो मैं उस हर जरूरतमंद मे हूं बेटी जोर से रो पड़ी और मां को सब बताया दोनों बहुत भावुक हो गए और पूरी रात सो नहीं पाए दोस्तों अब आप सभी से एक प्रश्न है यह बेटी सच में गरीब थी जरा सोचिए और अपने दिल से इस सवाल का जवाब दीजिएगा क्योंकि व्यक्ति मरने के बाद अपने साथ पैसे नहीं बल्कि कर्म लेकर जाता है और जरूरी नहीं कि हर पैसे वाला व्यक्ति अच्छे कर्म लेकर जा रहा हो इसीलिए कोशिश करें कि पैसों से अमीर हो या गरीब लेकिन कर्मों से अमीर जरूर बने..

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट