चिंता और चिंतन
चिंता और चिंतन
कहते है कि चिंता दुःख देने वाली होती है और सही चिंतन जीवन को प्राणवान बनाता हैं । कोई भी समस्या के समाधान के लिए अपेक्षित है कि हम चिंतन करके समस्या का समाधान निकालने की और अग्रसर हो क्योंकि चिंता तो और ज्यादा समस्या को बढ़ाती है।
व्यर्थ में व्यथा और चिंता हमें नकारात्मक बनाती है,चिंतन हमें सकारात्मकता प्रदान करवाता है तो हम हमेशा चिंतन और व्यवस्था करें ,जरूर कामयाब होंगे मंजिल पाने में,चाहे कोई भी परिस्थिति हो जीत हमारी निश्चित होगी ।
चिंतन बहुत अच्छी चीज है,लेकिन हम सजग रहकर कोई भी समस्या का चिंतन करे और पॉजिटिव सोचते हुए उसका समाधान खोजे तो निश्चित ही हम सफलता पाते हैं,धीरज भी हमें रखना होता है ,समय की अपनी महत्ता है,समस्या को सुलझने में समय तो कुछ कम बेसी लग सकता है। चिंता और चिता में कहा गया है कि एक बिंदी का अंतर होता है लेकिन चिता से आदमी एक बार जलता है और चिंता आदमी को हर पल दीमक की तरह घूनती है।आदतन ही आदमी चिंता के समुन्द्र में गोता लगाता है,दिमाग पर स्ट्रेस लाता है,शांत रखके दिमाग को विवेकवान व्यक्ति हर समस्या का समाधान पा लेता है।
समस्या बड़ी नहीं होती,हम अपनी नासमझी और नकारात्मक सोच से क्या होगा आदि कि हायतोबा मचाकर उसे बड़ा बना देते हैं।असम्भव शब्द हमारे शब्दकोश में नहीं हो तो हम आसानी से हर चिंतन को समझने में सफल हो सकते है। हम अपनी असीम क्षमताओं को,नए विश्वास के साथ संवर्धित करें ।
हम जीवन की बगिया मे सुरभित सुमनों को,फिर से सृजित करें । जो केवल प्रवाह पाती होते हैं,वे अपनी सही पहचान खो देते है । हम नए शिखर छूने के लिए दृढ़ विश्वास,नूतन सामर्थ्य अर्जित करें । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )