नेकी का फल
नेकी का फल
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गांव भीकमपुर में पंडित दीनदयाल प्राइमरी के प्रधानाध्यापक रहते थे।उन के दो कन्या एक पुत्र था। बड़ी पुत्री की उम्र 20 साल थी। छोटी की उम्र 18 साल की थी।पुत्र की उम्र 16 साल की थी ।बड़ी लड़की का नाम उषा था जो इंटर में पढ़ रही थी।छोटी लड़की का नाम रश्मि था जो हाई स्कूल में पढ़ रही थी। लड़के का नाम उमाकांत था जो कक्षा आठ का छात्र था ।पंडित दीनदयाल की पत्नी का नाम मौलश्री था जो स्वभाव से बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी ।
जिनकी उम्र 45 वर्ष की थी। पंडित दीनदयाल अपने स्वभाव से बड़े दयालु धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जो 50 वर्ष के हो चुके थे ।इस उम्र में वह ज्यादा समय पूजा पाठ धार्मिक कार्यक्रमों तथा सामाजिक कार्यक्रमों में व्यतीत करते थे ।प्रतिदिन ठीक समय पर अपनी पुरानी साइकिल से ही स्कूल पहुंचा करते थे । पंडित जी छात्रों से जितना स्नेह करते थे। छात्र भी उनके प्रति बहुतआदर सम्मान श्रद्धा रखते थे। स्कूल का गांव हो या पंडित जी का अपना गांव हो लोगों के सभी पंचायत फैसले भी खुद किया करते थे। उनके फैसलों को लोग बड़े सम्मान से देखा करते थे । सर्दियों के दिनों में सर्दी से ठिठुरते बच्चों के लिए अपने वेतन से पंडित जी स्वयं गर्म कपड़े लाकर बच्चों को दिया करते थे। बच्चों की फीस अपने वेतन से भर दिया करते थे।
पंडित जी के आदर्श जीवन पर गांव वालों से ज्यादा अधिकारी वर्ग उनका सम्मान किया करते थे ।गर्मियों में खादी कुर्ता धोती पहना करते थे और सर्दियों के दिनों में धोती कुर्ता खादी का बहुत पुराना कोट से पूरी सर्दी काट लेते थे । गांव के लोगों को शादी विवाह दाह संस्कार के समय आर्थिक सहायता भी देते रहते थे । पंडित जी अपने धार्मिक विचारों आदर्श परोपकारी जीवन के कारण आर्थिक संकटों से हमेशा ग्रसित रहते थे। बजरंगबली पर श्रद्धा रखने के कारण कभी वह नहीं घबराते थे। पंडित जी जब 60 वर्ष की उम्र में शिक्षक कार्य से सेवानिवृत्त हुए उस समय उनकी बड़ी लड़की उषा एमबीबीएस होकर एक कुशल चिकित्सक हो गई थी।
छोटी लड़की रश्मि एम.ए कर के नौकरी की तलाश कर रही थी । लड़का उमाकांत नौकरी ढूंढ रहा था । पढ़ लिख कर लड़का लड़की सभी पिता की तरह से एक शिक्षित अच्छा परिवार हो गया था लेकिन लड़कियों की शादी के लिए पंडित दीनदयाल हमेशा चिंतित रहा करते थे ।जहां भी रिश्ता तय करने जाया करते थे । वहां दहेज के नाम पर 8 -10 लाख की मांग सभी जगह हुआ करती थी। नाते रिश्तेदार पंडित जी से कहा करते थे । तुमने लड़कियों को ज्यादा पढ़ा लिखा कर अपने लिए संकट खड़ा कर लिया है ।अब लड़कियों की योग्यता के अनुसार लड़का मिलना बिना दहेज के कठिन है ।
लड़कियों की शादी की चिंता मे पंडित जी रोग ग्रसित हो गए ।लड़कियों की उम्र बढ़ रही थी और कोईअच्छा लड़का नहीं मिल रहा था । पंडित जी की पत्नीमौलश्री भी काफी चिंतित हो रही थी । बिना दहेज के कोई रिश्तेदार लड़का बताने को तैयार नहीं था। लड़कियों की शादी की समस्या को लेकर पति पत्नी दोनों परेशान हो रहे थे। इसीलिए दोनों रोग से ग्रसित हो रहेथे। पंडित जी तथा उनकी पत्नी सुबह नहा धोकर मंदिर में जाकर हनुमान जी की आराधना पूजा करके लड़कियों की शादी के संकट से उधार होने की मनौती करते रहते थे ।
पति-पत्नी को केवल हनुमान जी ईश्वर पर ही श्रद्धा विश्वास था कि वह नैया पार करेंगे । गांव वाले भी पंडित जी की आर्थिक सहायता करना चाहते थे लेकिन दहेज के इतनी बड़ी 20- 30 लाखकी धन राशि नहीं जुटा पा रहे थे । एक दिन अचानक पंडित जी तथा उन की पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो गई ।यह बात बड़ी लड़की चिकित्सक ऊषा से गांव वालों ने ऊषा क्लीनिक पर जाकर बताई तो बड़ी लड़की ऊषा अपना चिकित्सक बैग लेकर अपनी साइकिल से घर को चल दी। जब वह घर आ रही थी तो उसने देखा सड़क के किनारे एक आदमी बेहोश हालत में पड़ा हुआ है।
डा ऊषा साइकिल से उतरी और उस ने वेग से इंजेक्शन निकाला और बेहोश पड़े आदमी को लगाया । थोड़ी देर में बेहोश पड़े आदमी को होश आगया। बेहोश पड़े आदमी ने चिकित्सक लड़की को देखा और बोला -- तुमने समय रहते हमें इलाज दिया और मुझे मौत से बचा लिया । चिकित्सक लड़की ऊषा ने कहा अबआप हमारे साइकिल के पीछे बैठिए ।मेरे घर चलिए खतरा अभी टला नहीं है ।घर पर चलकर इलाज करूंगी ।अच्छे होने पर तब चले जाना। बेहोश पड़े आदमी ने बताया वह सेठ जोगिंदर दास तीन मिल का मालिक है । अपनी मोटरसाइकिल से मिल को जा रहा था ।तभी वह बेहोश हो गया और गिर पड़ा उस की कोई मोटर साइकिल भी कोई उठा ले गया ।
चिकित्सक लड़की बोली -आपकी जान बच गई यही बहुत बड़ी ईश्वर की कृपा है । चिकित्सक लड़की बेहोश पड़े हुए सेठ जोगिंदर दास कोअपने घर लाई और घर परपलंग पर लिटा कर उनका इलाज शुरू कर कर दिया ।इसके बाद चिकित्सक उषा अपने मां-बाप को इलाज दिया और माता-पिता से बोली -तुम हमारी शादी की चिंता छोड़ दो । मैं जीवन भर कुंवारी रहूंगी । जब धन दौलत कमा लूंगी तब अपनी तथा अपनी बहन की शादी तभी करूंगी ।सेठ जोगिंदर दास पलंग पर लेटे हुए यह सब बातें सुन रहे थे ।जब वह अच्छे हुए तो उन्होंने पंडित दीनदयाल के पास जाकर कहा- -लड़कियों की शादी की चिंता आप छोड़ दीजिए ।
20- 30लाख जितना खर्च होगा मैं खुद उठाऊगा और लड़कियों की शादी धूमधाम से करूंगा । मैं शहर का सेठ जोगिंदर दास हूं ।मेरे तीन मिले हैं। पैसे की कोई कमी नहीं है। इस चिकित्सक लड़की ने मेरी जान बचाई है । इस पर मैं जितना भी पैसा खर्च होगा मै करूंगा ।गांव वालों ने जब यह बात सुनी तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । कुछ दिनों के बाद सेठ जोगिंदर दास अपने मुनीम बृजमोहन के साथ भीकमपुर गांव में आए और उन्होंने गांव में पंडित दीनानाथ के नाम पर एक अस्पताल बनवाया और उस अस्पताल को डॉ उषा जी को खुसी से समर्पित कर दिया ।
सेठ जी नेबड़ी लड़की डॉ उष की शादी एक कुशल सर्जन डॉक्टर नंदन किशोर से तथा छोटी लड़की रश्मि की शादी हृदय रोग डॉक्टर मोहन चंद से बड़े धूमधाम से की । पंडित दीनानाथ के लड़के को अपनी फैक्ट्री में प्रशासनिक अधिकारी की नौकरी देकर पंडित दीनानाथ को हर चिंता से मुक्त कर दिया । पंडित दीनानाथ कोअपनी हनुमान बजरंगबली की भक्ति श्रद्धा आस्था का फल मिल गया। बेटी उषा की नेकी का फल पूरे परिवार तथा गांव को मिल गया। भीकमपुर गांव खुशहाल हो गया।
बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी उत्तर प्रदेश