प्रभावी संदेश

Apr 5, 2024 - 10:41
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आज के समय में हम देखते है कि सोश्यल मीडिया के माध्यम से प्रभावी व उपदेशात्मक ज्ञान की बाते विश्व में पहुँच जाती है लेकिन इसके साथ में यह महत्वपूर्ण होता है की यह बाते भेजने वाले के जीवन में सही से आचरण में है क्या ? क्योंकि उसके जीवन में होने पर ही यह सबके लिये प्रभावी होता है ।

अच्छाई और बुराई हर युग मे रही है और यह बात बहुत अंशों मे सही है। महावीर के समय भी क्या दासप्रथा, भूखमरी,राज्यलिप्शा,सत्ता संघर्ष,स्त्रीके प्रति क्रूरता,अकाल,शोषण,छलना, अकाल मृत्यु आदि नहीं थे?क्या आज जैसी विकसित स्वास्थ्य, शिक्षा,आवास व्यवस्था,न्याय व्यवस्था,

 यातायात की सुलभता आम जनता के लिए सुलभ रहे थे? राम राज्य को भी पूरी तरह निरापद नही कहा जा सकता है। आदमी अपने कृत कर्मों से स्वयं को सर्वथा नहीं बचा सकता है। अभी दुषमआरा चल रहा है पर यह भी सच्चाई है की आज जैसी शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा, आवास, यातायात, खाने-पीने की सुलभता,भौतिक सम्पन्नता सामान्य जनमानस को कभी सुलभ नहीं रही है ।

गुणवत्ता का ह्रास हुआ है,विश्वास का भी विनाश हुआ है,संस्कार भी जीर्ण हुए हैं ,निस्वार्थ के भाव क्षीण हुए हैं पर इसके बावजूद इसे ऐकांत कलयुग, दुषम आरा (दुखःमय) इस आधार पर नही कहा जा सकता है? आज की अच्छाईयों को पुरी तरह नजर से अन्दाज नहीं किया जा सकता है? इस संदर्भ मे श्रीमद् रायचंद का यह मंतव्य ज्यादा यौक्तिक लगता है |

इस समय वीतराग की वाणी का मिलना दुष्कर है अगर योग मिल भी जाए तो उस वाणी पर श्रद्धा का होना दुष्कर है और अगर श्रद्धा हो भी जाऐ तो उस मार्ग पर चलना महादुष्कर है इस लिए यह दुषम आरा है।कलयुग की काली धारा है।इस जीवन के बाद मृत्यु आने पर आख़िर होगा हमारा जाना तो कोई भी हमारा साथ नहीं निभाएगा क्योंकि साथ में अपने कर्मों का फल ही जायेगा इसलिये अगर हम इस बात का सही से चिंतन कर ले तो हमारा जन्म सफल हो जाएगा । प्रदीप छाजेड़