आगम व वेद बनाम सार्थक ज्ञान

Mar 10, 2024 - 13:44
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आगम व वेद बनाम सार्थक ज्ञान
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आगम व वेद बनाम सार्थक ज्ञान

आगम व वेद में धर्म का अखूट खजाना भरा है । आशा के दीप जलते रहे इसके अनेक सूत्र है। 1 महापुरुषों की जीवनी 2 रात कितनी ही लंबी हो प्रभात आयेगा 3 सकारात्मक सोच जैसा चिंतन 4 सत्साहित्य का पठन और सत्संगत आदि । यह सब एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है और आत्मा के अंधकार को चीरकर उजाला प्रकट करने में सहायक होता है ।

हमारी आशा व विश्वास की दिशा सदा सकारात्मक हो, उसके साथ पुरुषार्थ का योग भी हो, सुयोग भी हो व ना कोई गति किसी दृष्टि से निराश करने वाली व भ्रामक हो। मानव मन में जब भी सकारात्मक परिवर्तन आता है वह उसका दूसरा जन्म हैं। वह अद्भुत अकल्पनीय क्षण होता है जिसमें जिन्दगी बदलती है। जैसे बदली अंगुलिमाल की विचारों में अपने कृत कर्मों में अपने कषायों में बदलाव आया वाल्मीकि जैसे ऋषि महात्मा बन गए।

इसी संदर्भ में रोहिणेय चोर को देखा जा सकता हैं। भगवान महावीर की वाणी कानों में पड़ते ही उस क्षण को पकड़ नवजीवन में छलाँग लगा दी और तो और अभी वर्तमान परिस्थिति में हम देख रहे हैं कि ये कैसा 'समय' आया कि.. दूरियाँ ही दवा बन गईं...ना मोह है ना माया ना लोभ ना राग-द्वेष आदि - आदि ।

केवल अपने जीवन का आत्मचिंतन.. अभी हम जो जीवन जी रहे वह दूसरे जन्म से कम नही हैं यही सावधानी हमारे आगे तक रहे व अपना मन कषाय रहित हो और जीवन आनंदमय हो।ऐसा सार्थक ज्ञान ही सुज्ञान है जो हमे सिखा रहा है शालीन और विनम्र आदि होना । ऐसे ही पुरुष आगे जाकर इतिहास के पन्नों में अजर अमर हो जाते हैं । प्रदीप छाजेड़