विजयदशमी ( दशहरा )

Oct 23, 2023 - 12:59
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विजयदशमी ( दशहरा )
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विजयदशमी ( दशहरा )

कोई समय ऐसा नहीं होता , जब नैतिकता और चरित्र की अपेक्षा न होती हो । ऐसा न अतीत में हुआ हैं , न वर्तमान में है और न भविष्य में होगा । नैतिकता और चरित्र की अपेक्षा तीनों काल में रही हैं और रहेगी । जहाँ दो है , वहाँ नैतिकता अनिवार्य हो जाती है ।

 जहाँ एक है , वहाँ नैतिकता की अपेक्षा नहीं होती , अध्यात्म की अपेक्षा होती हैं , क्योंकि एक का दूसरे के प्रति व्यवहार अनिवार्य हो जाता है । आचार व्यक्तिगत हो सकता है , किंतु व्यवहार व्यक्तिगत नहीं हो सकता । वह दो के साथ होता है । आज आदमी के व्यवहार में नैतिकता की कमी दिखाई दे रही है ।चारों और शिष्टाचार की कमी दिखाई दे रही है । दशहरा पर्व हमें यह प्रेरणा दे रहा है की हम हमारी कमी आदि को जाने व बुराइयों आदि को छोड़े ।

हो चुका होगा अब तक उस रावण का अंत कब तक जलाओगे उसे ता उम्र पर्यंत ? जलाना हो तो उस रावण को जलाओ जो हैं काम क्रोध द्वेष रूप आदि में हमारे भितर । हम युगों से शरीर में जीने के आदी हो गए हैं अतः चेतना के तल पर कुछ भी करना बहुत कठिन मालूम पड़ता है ।इसलिये रावण भी हम बाहर ही बना कर मार लेते हैं ।भीतरी दशहरा मनाना आसान काम नहीं है ।साधु-सन्त भी शुरू तो करते हैं किन्तु सम्पन्न नहीं कर पाते हैं ।

 आज दशहरा अर्थात स्वयं के भीतर रावण बनकर बैठे दस अवगुणों आदि को हरा तत्पश्चात दशहरा मना। सदियों से रावण का पुतला जलाकर बस प्रदूषण ही बढ़ाया सदैव बाहर ही भ्रमण करते रहे अंतर्मन में झांक कर देखा ही नहीं रावण पुतले में नहीं भीतर ही कहीं वृहद या आंशिक रूप से स्वयं में मौजूद है ।

अपने भीतर के रावण को जो खुद आग लगाएंगे सही मायने में वे ही आज दशहरा मनाएंगे।इन्ही शुभ भावों से विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! भुवाल माता सबकी सभी इच्छाओं को पूरा करें और सबको अच्छे स्वास्थ्य, प्रसिद्धि सफलता और खुशी आदि का आशीर्वाद दें। यही मंगलकामना। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)