विषय आमंत्रित रचना - बच्चो को मोटिवेशन करना क्यों जरूरी

Oct 9, 2023 - 21:29
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विषय आमंत्रित रचना - बच्चो को मोटिवेशन करना क्यों जरूरी
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विषय आमंत्रित रचना - बच्चो को मोटिवेशन करना क्यों जरूरी

आज के समय के हिसाब से बच्चों को जीवन में आगे बढ़ाने के लिये मोटिवेट करना जरुरी है । अगर हम बच्चों को सही से मोटिवेट नहीं करेंगे तो वो अपने जीवन में हर तरीके से आगे बढ़ने के लिये उत्सुक कैसे होंगे । (motivation) का अर्थ किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है।

 मोटिवेशन का सीधा संबंध उत्तेजना (Stimulus) से हैं। क्योंकि किसी भी कार्य को करने से पहले किसी भी व्यक्ति के अंदर या बाहर उस कार्य को करने की उत्तेजना उत्पन्न होती है तभी वह व्यक्ति मोटिवेशन या अभिप्रेरित या प्रेरणा पाकर उस कार्य को करने में सफल होता है । सीधे तौर पर हम कह सकते हैं कि मनुष्य का हर एक प्रतिक्रिया या व्यवहार का कारण कोई न कोई उत्तेजना से है ।

संबंध आवश्यक होता है चाहे वह आंतरिक अभिप्रेरणा हो या बाह्य अभिप्रेरणा। इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। एक कवि कविता लिखने के लिए हाथ में कलम लिए बैठा है, मौसम भी अच्छा है, लिखने का विषय भी स्पष्ट है, सभी सामग्री तैयार हैं, पर वह लिख नहीं पा रहा है क्योंकि उसे उस विषय पर लिखने के लिए वह प्रेरित नहीं हो पा रहा है उसके अंदर किसी भी प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न ही नहीं हो पा रही है ये उत्तेजना उसे किसी भी प्रकार से प्राप्त हो सकती है जैसे- कर्तव्य बोध से, अपनों के प्रति स्नेह के कारण या किसी प्रेमिका की आंखों में चढ़ जाने की आकांक्षा के कारण या अपने मन की शांति व सुख के लिये किसी भी प्रकार से उसके अंदर उत्तेजना या अभिप्रेरणा जागृत होने पर उसका हाथ खुद ब खुद चलने लगेगा। या फिर इसलिए भी वह नहीं लिख पा रहा है क्योंकि अकेले मनुष्य ऊब जाता है ।

जीवन बोझ लगने लगता है ।संसार की झंझटों से तंग आ जाता है। वह चाहता है कि कोई उसे प्रेरणा दें ।कोई कंधे पर हाथ रखे या पीठ ठोंके ताकि वह उत्तेजित होकर फिर से खड़ा हो सके। कार्य सरल हो या कठिन बिना प्रेरणा के नहीं हो सकता। जिस व्यक्ति के व्यवहार में जितना ज्यादा उत्तेजना या प्रेरणा उत्पन्न होगा वह उतनी ही तेजी से उस कार्य को करने लगेगा। जीवन के समस्त व्यवहारों में आंतरिक या बाह्य प्रेरणा (motivation) का हाथ अवश्य रहता है।

मां बालक के पालन पोषण में दिन रात लगी रहती है । उसे नहलाती-धुलाती है । बालक बीमार होने पर रात-रात भर जागती है। यह बच्चे के प्रति मां का व्यवहार प्रेरणा का ही परिणाम है। परीक्षा से पहले विद्यार्थी सारी-सारी रात पढ़ता है इसके पीछे का कारण प्रेरणा ही है। अध्यापक छात्र को कक्षा में बैठने के लिए तो मजबूर कर सकता है लेकिन उसे पढ़ने के लिए तब तक बाध्य नहीं कर सकता जब तक कि उसमें स्वयं ही पढ़ने के प्रति रुचि उत्पन्न ना हो जाए। जैसे आप घोड़े को तलाब तक खींच कर ले तो जा सकते हैं पर उसे पानी पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

अतः हम कह सकते हैं कि motivation या अभिप्रेरणा मानव के अंदर या बाहर उत्पन्न होने वाली उत्तेजना है जो उसे प्रेरित करती है । किसी भी कार्य को करने या ना करने के लिए ।motivation अंग्रेजी भाषा का शब्द है। जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा की शब्द मोटम (motum) से हुई है। जिसका अर्थ है मूव (move), मोटर(motor), या मोशन (motion)। प्रेरणा का शाब्दिक अर्थ गति का बोध कराना है । मूलतः अभिप्रेरणा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए होती है तथा यह लोगों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

अभिप्रेरणा को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है- 1. सकारात्मक प्रेरणा (positive motivation) या आंतरिक अभिप्रेरणा (intrinsic motivation) -आंतरिक अभिप्रेरणा से तात्पर्य मनुष्य के शारीरिक तथा जैविक अभिप्रेरणा से हैं जैसे भूख, प्यास, आत्मरक्षा एवं काम से हैं। इस प्रेरणा में बालक किसी भी काम को अपने स्वयं की इच्छा से ही करता है तथा इस प्रकार के कार्य को करने में उसे सुख शांति और संतोष प्राप्त होता है। कोई भी शिक्षक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन तथा स्थितियों का निर्माण करके बालक के अंदर सकारात्मक अभिप्रेरणा उत्पन्न करता है। सकारात्मक प्रेरणा को आंतरिक प्रेरणा (intrinsic motivation) भी कहते हैं।

 2. नकारात्मक प्रेरणा (negative motivation) या बाह्या अभिप्रेरणा (exintrinsic motivation) - बाह्य अभिप्रेरणा से तात्पर्य मनुष्य के पर्यावरणीय अथवा मनोसामाजिक अभिप्रेरणा से है जिसमें बालक के अंदर से नहीं बल्कि किसी बाह्य प्रेरणा से प्रभावित होकर वह किसी भी काम को करने में सफल होता है जैसे आत्म सम्मान सामाजिक स्तर एवं इंजीनियर डॉक्टर वकील नेता यह अभिनेता आदि बनने की इच्छा। इस प्रकार की सही प्रेरणा से बालक किसी कार्य को अपनी मर्जी से या स्वयं से ना करके किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है इस कार्य को करने से उसे वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती हैं। एक शिक्षक किसी भी बालक की प्रशंसा, निंदा, पुरस्कार, प्रतिद्वंदिता आदि का प्रयोग करके बालक को नकारात्मक प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रेरणा को बाह्य अभिप्रेरणा (exintrinsic motivation) भी कहते हैं। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )

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