विषय आमंत्रित रचना -दाम्पत्य जीवन
विषय आमंत्रित रचना -दाम्पत्य जीवन
हर मानव अपना दाम्पत्य जीवन खुशहाल जीना चाहता है । पर उसके लिये आपस में सही से सामंजस्य भी होना अपेक्षित है । वैसे तो सभी जीवन जीते हैं लेकिन कुछ लोगों का जीवन बन जाता है प्रेरणास्पद ऐसा की उसको युगों-युगों तक याद रख सके हम जैसा।
जीवन के रंगमंच पर हम सबको निभाने पड़ते हैं अनेक चरित्र जिनमें प्रथम होता है हमारा पारिवारिक चित्र। परिवार में भी भिन्न-भिन्न रिश्तों का है भिन्न-भिन्न प्रकार ।होना पड़ता है जहाँ पिता-पुत्र, पति-पत्नी, नाती-पोतों संग रोल का भिन्न-भिन्न आकार। निभाते हुए सब पारिवारिक कर्तव्य हमारा विकसित होता है सामाजिक संबंधों का दायरा । जहाँ हमारा व्यक्तित्व लेता है एक नया मुहावरा सामाजिकता। हम इन पारिवारिकता, सामाजिकता में लेते है जन्म अपनी अलग-अलग आकांक्षाएँ , अभिलाषाएँ लेकर ।
जिन्हें पूर्ण करने के प्रयत्न में हमें उलझाए रखती हैं कई नई-नई व्यस्तताएँ। इस तरह भिन्न-भिन्न रोल निभाते हुए जीवन जीना बन जाता है एक कठिन साधना। कुशलता इसी में है कि किसी भी संबंध को हमारे द्वारा चोट न पहुँचे। साथ ही सभी आपको ऊँची नजरों से देखें।खास बात यह है कि इन सबके साथ-साथ जीवन के मुख्य ध्येय आत्मिक उन्नयन की उपेक्षा न करना। तदर्थ जितना श्रम हम अपने जीवन-यापन व सामाजिकता के लिए करते हैं उससे अधिक यत्न हमें आत्मशुद्धि के लिए करना है ।
जब अंतर निर्मल होगा तभी वह मानवीय गुणों से भावित होगा। तभी उसमें संयम, संतोष, करुणा,प्रेम आदि गुणों का गहरा स्थान होगा और वह अमानवीय दोष यथा काम, क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह,अहं आदि से रहित होता जाएगा । और उसका जीवन सफलता के सोपान चढ़ता जाएगा। प्रेम की स्नेहिल नींव पर ही टिका है माँ व शिशु का आत्मिक संबंध । चाहे पति पत्नी का हो संबंध । वास्तव में मानव वही है जिसके हृदय में है समस्त सृष्टि से है प्रेम का स्वाभाविक अनुबंध।
किसी कवि की ये पंक्तियाँ कितनी सार्थक हैं: प्रेम बीज जो पड़े न होत मन के बंजर रहते खेत।प्रेम रंग जो भरे न होते ।पृष्ठ हृदय के रहते श्वेत।इसलिए जिसका हृदय जितने निर्मल प्रेम भाव से है भरा-भरा वह महानता में है उतना ही खरा -खरा। रिश्तों की नाजुकता कोई नहीं जानता । पता नहीं कब कौनसी बात लग जाती ख़राब ।कई बार शुद्ध मन भाव से की गई प्रशंसा भी दिखाती उल्टा प्रभाव ।कई बार की गई समालोचना बढ़ा देती रिश्तों के भाव ।रिश्ते एक दूसरे की आंतरिक समझ से निभते हैं । हो अगर आपस की अंडरस्टैंडिंग तो कटु शब्द नहीं करता घाव ।अगर नहीं है समझ आपस की तो कोई शब्द भी ला सकता अलगाव ।
अतः रिश्ते बड़े नाजुक व कोमल होते हैं ।उनको निभाना है खांडे की धार ।पर है अगर समत्त्व भाव विकसित ,ज्ञाता द्रष्टा भाव प्रसरित और सभी तरह की प्रतिक्रियाओं रहित जिसका जीवन उसके लिए सब रिश्तें हैं एक समान । मध्यस्थ भावों का बहता हो निर्झर अपेक्षा रहित हो जहाँ वर्तन वहाँ कोई नहीं पड़ सकती दरार ।रिश्तों में हरदम छाई रहती बहार । दाम्पत्य जीवन के रिश्तों को खूबसूरत बनाइए, और आत्मनंद के साथ संग भी खुशी से जीते जाइए ।जीते तो दुनियां में सब हैं पर हमारे जीने में खूबसूरती का समावेश हो ।शांत भाव से चले जीने का अभ्यास हो ना कोई आक्रोश होऔर न ही किसी प्रकार का तनाव और आवेश हो । दाम्पत्य जीवन में रिश्तो की अहमियत को गहराई से पहचानिए। जिन्दगी मे उसकी महत्ता को मन से जानिए। हो सकता है कुछ कमजोर कङियां हो रिश्ता निभाने मे पर वे टूट जाएं उतना भी उन्हें मत टानिए। रिश्ता निभाने के लिए कुछ त्याग भी जरूरी है। अगर हम अकेले हैं तो ये जिन्दगी अधूरी है।
दूरियां मिट सकती है फासला कितना ही क्यूं न हो बस पाटने के लिए प्रेम का एक सेतु होना जरूरी है।दाम्पत्य जीवन में कोशिश करो कि कोई हम से न रुठे जिंदगी में साथ न छूटे । रिश्ते कोई ऐसे निभाओ कि उस रिश्ते की डोर जिंदगी भर न छूटे । यही जीने की वास्तविकता व सलीका है। दाम्पत्य जीवन के रिश्ते की खूबसूरती आपसी समझ से ही बनती है । इस संसार में कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता इसलिए अनेकांत सिद्धांत की बहुत ज़रूरत है क्योंकि आज हर एक खुद को अहमियत ज्यादा देता है । उसका नजरिया ही सही है उसकी यह सोच रहती है ।
मनुष्य यह सोचे कि वह अकेला ही सब कुछ कर सकता है, यह संभव नहीं है। मनुष्यता को जीवित रखना है तो रिश्ते नातों को जीवित रखना जरूरी है। बदलते युग में रिश्तों में अपनापन नहीं रहा पर आज वसुधैव कुटुंबकम की भावना से पोषित भारतीय संस्कृति बहुत जरूरी है । दाम्पत्य जीवन के रिश्ते को खूबसूरत बनाने के लिए सहनशीलता, आदर विश्वास की संजीवनी ,स्नेह प्रेम की उष्मा ,आत्मीयता एवं प्रतिबद्धता जरूरी हैं । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )