रहें सदैव प्रथम
रहें सदैव प्रथम
आजकल के जीवन का चलन है मुझे हर जगह प्रथम आना हैं । चाहे घर , स्कूल , कॉलेज , खेल आदि सब जगह । मेरे चिन्तन से यह जीवन विकास में प्रेरणा के रूप में हो तो कोई गलत नहीं है लेकिन यह दूसरे अनुचित रूप में है तो गलत है ।
लेकिन इसके साथ - साथ अगर किसी से मतभेद हो जाये तो उसे सुलह करने में भी हम प्रथम रहे । इसी तरह किसी ने अच्छा कार्य किया है तो उसकी प्रशंसा भी होनी चाहिये हमारे द्वारा प्रथम रहकर ।परिवार में आगे बढ़ने के लिये अगर कुछ करना हो तो करने में प्रथम रहे ।
इसी तरह किसी की भूल हो गई तो उसे क्षमा करने में प्रथम रहे । इसी तरह अगर किसी का हमारे द्वारा कुछ करने से भला हो तो हम करने में प्रथम रहे । यह सब गुणों का हमने जीवन में विकास कर लिया तो मानो हम किसी भी परिस्थिति में हो , कही हो , कैसे हो आदि - आदि हम कभी दुखी नहीं होंगे क्योंकि हमने सुख से जीवन जीना सिख लिया है ।
दुनिया में आये हैं तो सज्जनता के कुछ काम कर जीवन को सार्थक बनाएं हम।दुर्भावना पूर्वक न करें किसी की निंदा चुगली हम। गुणी जनों के गुण को देख कर प्रमोद भाव विकसायें हम।परमाणु जितने से परगुण को भी बढ़ा चढ़ा कर बताएं हम।चापलूसी नहीं , पर अन्तरभावों से प्रशंसा कर पाए हम।
सुखी सम्पन्न देख किसीको ईर्ष्या भाव न लाएं हम। तकलीफ में देख किसीको आर्द्रता अपनाएं हम सहायता करने तुरंत तत्पर बन जाएं हम।सहानुभूति दर्शाएं हम।थोड़ा सा भी काम किसीका ,कर के आत्म प्रशंसा के भाव न लाएं हम।नेकी कर दरिया में डाल की नीति सरसायें हम।नैतिकता और न्याय मार्ग पर चलने में नहीं सकुचाएं हम।
नैतिकता के मार्ग पर चलने से ,हो सकता थोड़ा अलाभ पर उससे नहीं घबराएं हम। कोई बोल दे अप्रिय वचन ,उसको मन पर न लाएं हम।ईंट का जवाब पत्थर से न देकर ,फूलों से देने का प्रयास कर पाएं हम। थोड़ी सी उपरोक्त बातें जीवन में अपना कर आत्म तोष पा जाएं हम। इन सबको विकसायें हम तो जीवन में सदैव प्रथम ही प्रथम है । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )