एटा जनपद में खुलेआम हो रहा है बालश्रम, विभाग बना मूकदर्शक
एटा जनपद में खुलेआम हो रहा है बालश्रम, विभाग बना मूकदर्शक

एटा जनपद में खुलेआम हो रहा है बालश्रम, विभाग बना मूकदर्शक
एटा (उत्तर प्रदेश)। देशभर में जहाँ एक ओर बालश्रम के विरुद्ध कड़े कानून बनाए गए हैं, वहीं एटा जनपद में यह कानून केवल कागजों तक ही सीमित रह गया है। जनपद के कई इलाकों में खुलेआम नाबालिग बच्चों से मजदूरी करवाई जा रही है, लेकिन श्रम विभाग इस गंभीर समस्या पर कोई सख्त कार्यवाही करता नहीं दिख रहा। शहर के प्रमुख बाजारों, ढाबों, कारखानों और मैकेनिक की दुकानों पर 10 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे दिनभर काम करते देखे जा सकते हैं।
कुछ बच्चे तो स्कूल जाने की उम्र में भारी भरकम काम करने को मजबूर हैं। इन मासूम हाथों में किताबों की जगह औज़ार, झाड़ू और बर्तन थमा दिए गए हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक ढाबा मालिक ने बताया कि बच्चों को काम पर रखने में खर्च कम आता है और वे बिना किसी शिकायत के लंबे समय तक काम करते हैं। इसके अलावा, कई माता-पिता खुद ही अपने बच्चों को काम पर भेजते हैं ताकि घर का खर्च चल सके। न तो किसी ढाबे पर छापेमारी होती है, न ही दुकानों और वर्कशॉप्स पर कोई रोकटोक दिखाई देती है। जनपद के सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रशासन की निष्क्रियता के कारण बालश्रम बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बालश्रम केवल बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं है, बल्कि यह उनके मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
इसके अलावा, यह शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) का भी सीधा उल्लंघन है, जो 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन और श्रम विभाग कब जागता है और इन बच्चों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाता है। जब तक जिम्मेदार विभाग कार्रवाई नहीं करता, तब तक एटा जैसे जनपदों में बालश्रम की यह काली सच्चाई ऐसे ही चलती रहेगी।