कहीं आपको तो नहीं सोशल मीडिया - रील्स देखने का एडिक्शन
कहीं आपको तो नहीं सोशल मीडिया - रील्स देखने का एडिक्शन
विजय गर्ग रामी को जैसे ही घर के कामों से फुर्सत मिली, उसने अपना मोबाइल उठाया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जाकर रील्स देखना शुरू कर दिया। रील्स देखते-देखते कब एक घंटा गुजर गया, उसे पता ही नहीं चला। उसने सोचा था, बस दो चार रोल्स देखकर फिर अपने जरूरी काम करेगी। लेकिन एक घंटे से ज्यादा समय रोल्स देखते-देखते निकल गया। ईशानी को बहुत बुरा लगा कि उसने अपना इतना समय रील्स देखकर खराब कर दिया। लेकिन फिर शाम के वक्त थोड़ा खाली समय मिलने पर वह दोबारा रील्स देखने में मशगूल हो गई। वैसे इस तरह की समस्या से दो चार होने वाली सिर्फ हो नहीं है। आजकल हर दूसरा व्यक्ति सोशल मीडिया और रोल्स देखने के एडिक्शन के जाल में फँस गया है।
आखिर क्या है, सोशल मीडिया और रील्स का एडिक्शन ? इसका शिकार होने पर किस तरह की समस्याएं लोगों के जीवन में आती है? इससे कैसे बचा जा सकता है? हमें जरूर जानना चाहिए। क्या है सोशल मीडिया रील्स का एडिक्शन आज दुनिया पूरी तरह से हाईटेक हो चुकी है। फोन के जरिए ही हम अपने बहुत से काम घर बैठे-बैठे कर लेते हैं। जैसे शॉपिंग करना, विल्स भरना। ऐसे जरूरी और समय लेने वाले काम आसानी से फोन के जरिए हो जाते हैं, जिससे लोगों के पास बहुत सारा समय बचता है। ऐसे में इस बचे हुए समय में वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव हो जाते हैं। शुरुआत में थोड़ा ही समय इन प्लेटफॉर्म पर लोग बिताते हैं, लेकिन वक्त के साथ उन्हें सोशल मीडिया कंटेंट और रोल्स देखने का चस्का सा लग जाता है। रोल्स देखते-देखते, वे भूल जाते हैं कि अपना कितना समय बर्बाद कर चुके हैं। घर हो या ऑफिस, जरा सा खाली समय मिलते ही लोग रोल्स देखने में बिजी हो जाते हैं।
धीरे-धीरे यह आदत कब एडिक्शन में बदल जाती है, लोगों को पता भी नहीं चलता है। क्या कहती है स्टडी पिछले साल सामने आई एक स्टडी के अनुसार छह में से एक भारतीय हर रोज लगभग डेढ़ घंटा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गुजारता है, इसमें भी अधिक समय वह रोल्स देखने में गुजार देता है। सोचने और चिंता करने वाली बात है कि सिर्फ रील्स देखने में ही हर रोज एक घंटे से अधिक का समय लोग सोशल मीडिया पर बर्बाद करते हैं और इसके बदले में कोई पॉजिटिव रिजल्ट भी उनको नहीं मिलता है। #ऐसे करें एडिक्शन को कंट्रोल - सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और रील्स का एडिक्शन अगर किसी को भी है तो ऐसा नहीं है कि वह इससे छुटकारा नहीं पा सकता है। इससे छुटकारा पाना या सोशल मीडिया एडिक्शन को बहुत हद तक कंट्रोल करना मुमकिन है। बस लोगों को थोड़ा जागरूक होना होगा। उन्हें खुद के समय की और जिंदगी की अहमियत को समझना होगा। साथ ही कुछ छोटी-छोटी बातों को महत्व भी देना होगा, जिससे वे सोशल मीडिया कंटेंट और रील्स के एडिक्शन से बाहर आ सकें। जैसे आपको सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना ही है, रील्स देखनी ही है तो टाइम लिमिट सेट करके देखें। कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बाँच टाइम को आप फिक्स कर सकती हैं। तय किए गए समय के बाद आपके सामने मैसेज आता है. कि आप आगे रील्स देखना चाहते हैं या नहीं?
इस मैसेज के आने पर आपको तुरंत ही फोन बंद कर देना चाहिए। आपको रील्स कुछ घंटों के लिए देखनी भी है तो नॉलेज देने वाली रील्स देखें। रील्स या कंटेंट ऐसा हो, जो आपकी जिंदगी को बेहतर बनाने का काम करें। वरना बेकार कंटेंट से दूरी ही बनाकर रखें। हॉबीज को अहमियत दीजिए सोशल मीडिया पर एक्टिव ना रहने पर आप शुरुआती दौर में बोरियत महसूस कर सकती हैं। लेकिन इस बोरियत को दूर करने के लिए आप क्रिएटिव कामों में खुद को बिजी रखना सीखें। इसके लिए बुक रीडिंग की आदत डालें, इससे आपकी नॉलेज और क्रिएटिविटी दोनों बढ़ेगी। इसके अलावा आप गार्डनिंग, पेंटिंग जैसी हॉबीज भी अपनाएं। साथ ही अपनी फैमिली, फ्रेंड्स के संग क्वालिटी टाइम बिताएं, उनसे अपने मन की बातें साझा करें। उनके साथ खुशी भरे पल बिताएं। इन सभी बातों को फॉलो करके आप रोल्स या सोशल मीडिया एडिक्शन से बच पाएंगी और अपने बचे हुए कीमती समय में कुछ बेहतर और अच्छा काम कर पाएंगी • एक्सपर्ट की राय लें अगर आप रील्स या सोशल मीडिया पर बहुत टाइम बिता रही है और इसे कंट्रोल करने में नाकामयाब हो रही है तो आखिर में उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को फोन से डिलीट हो कर दें।
अगर आपका रील्स और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का एडिक्शन अधिक बढ़ गया है और आप उसे कंट्रोल करने में असफल हो रही हैं तो एक्सपर्ट की राय लें। वह आपको इस एडिक्शन से बाहर आने में मदद करेंगे।
■ भूख और कुपोषण से जूझते लोग-
दुनिया की आबादी के साथ भूख की समस्या भी बढ़ रही है। ऐसे कई राष्ट्र हैं, जो इस समस्या से बुरी तरह जूझ रहे हैं। मानवता के लिए भुखमरी एक गंभीर समस्या है, न केवल जीवन को प्रभावित करती, बल्कि सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता को भी जन्म देती है। यह विडंबना ही है कि तकनीकी और आर्थिक प्रगति के बावजूद इक्कीसवीं सदी में भी वैश्विक भुखमरी बड़ी चुनौती बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार दुनिया भर में बयासी करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं। विश्वभर में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जिन्हें दो समय का भोजन नसीब नहीं होता। पोषण पाषण युक्त और पर्याप्त भोजन न मिल पाने के कारण दुनिया की बड़ी आबादी कुपोषण की चपेट में है। भोजन को बुनियादी और मौलिक मानवाधिकार माना गया है, लेकिन पूरी दुनिया में खाद्यान्न की कमी और कुपोषण के कारण प्रतिवर्ष लाखों लोग जान गंवा देते हैं। भोजन, हवा और पानी के बाद तीसरा सबसे बुनियादी अधिकार हर किसी को पर्याप्त भोजन है। जबकि दुनिया भर के किसान वैश्विक आबादी से ज्यादा लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन बनी रहती है। दुनिया से भुखमरी मिटाने के प्रयासों में जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय तनाव और आर्थिक समस्याएं सबसे बड़ी बाधा बन रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, बार-बार मौसम में होने वाले बदलावों, संघर्षों, आर्थिक मंदी, असमानता और महामारी कारण विश्व में करीब 73 करोड़ 30 लाख लोग भूख का सामना कर रहे हैं, जिसका सर्वाधिक असर गरीब तबके पर पड़ता है, जिनमें से कई कृषक परिवार हैं। कोरोना काल के बाद लंबे समय से चल रहे रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध जैसी विकट परिस्थितियां भी भूख की समस्या को और विकराल बना रही हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना कि भूख और कुपोषण लंबे समय तक चलने वाले संकटों से और बढ़ जाते हैं। आज दुनिया में करोड़ों लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं।‘एफएओ' के मुताबिक विश्व में 2.8 अरब से ज्यादा लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं और अस्वास्थ्यकर आहार ही सभी प्रकार के कुपोषण का प्रमुख कारण है। कमजोर लोगों को प्रायः मुख्य खाद्य पदार्थों या कम महंगे खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहने के लिए विवश होना पड़ता है, जो अस्वास्थ्यकर हो सकते हैं, जबकि अन्य लोग ताजे या विविध खाद्य पदार्थों की अनुपलब्धता से पीड़ित हैं। उन्हें स्वस्थ आहार चुनने के लिए जरूरी जानकारी की कमी है या फिर वे केवल सुविधा लिए विकल्प चुनते हैं। । दुनिया भर में प्रतिवर्ष हर दस में से एक व्यक्ति दूषित भोजन के कारण बीमार हो जाता है और हर साल 4.2 लाख लोगों की मौत का कारण दूषित भोजन ही है, जिनमें करीब सवा लाख बच्चे भी होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के 'खाद्य एवं कृषि संगठन' के अनुसार 2021 दुनिया भर में पांच लाख लोगों की मौत भूख से हुई। थी।
हालांकि पृथ्वी पर इतना अनाज पैदा हो रहा, जिससे दुनिया के हर व्यक्ति को पर्याप्त भोजन मिल सके, पर सबसे बड़ी समस्या सभी तक पोषणयुक्त आहार और उपलब्धता है। भुखमरी मानवता की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली गंभीर वैश्विक चुनौती है, जिसे समाप्त करने के लिए स्थायी नीतियों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र का 2030 तक सतत विकास लक्ष्य भुखमरी को समाप्त करने की दिशा में एक मजबूत प्रयास है, जिसके तहत सभी के लिए पोषणयुक्त, सुरक्षित और पर्याप्त भोजन सुनिश्चित । करने पर जोर दिया गया है। यदि समुचित प्रयास किए जाएं तो 2030 तक भुखमरी मुक्त दुनिया का सपना साकार हो सकता है। बहरहाल, भुखमरी केवल भोजन की कमी नहीं, एक सामाजिक और नैतिक संकट है, जिसे समाप्त करना केवल सरकारों का कर्तव्य नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। एक संगठित प्रयास के माध्यम से हम सभी मिलकर एक ऐसी दुनिया बना सकते हैं, जहां कोई भी भूखा न सोए।
■ सेवा बनाम मेवा
सम्मान अच्छे कार्यों की स्वीकृति होकर व्यक्ति की प्रशंसा का परिचायक है। अच्छी उपलब्धि और हितकारी कार्य करनेवाले के कार्य का एक सकारात्मक मूल्यांकन होता है । अपने-अपने क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल करने या विशिष्ट कार्य करने पर सभी प्रकार की संबंधित संस्थाएं, संगठन या प्रकल्प उपलब्धि प्राप्तकर्ता का व्यक्तिगत या उससे जुड़े समूह का सम्मान - अभिनंदन करते हैं । जैसा कि हम आए दिन देखते हैं। सार्वजनिक या सामाजिक रूप से यह सम्मान दोनों ओर के वातावरण में एक प्रकार से उत्साह का संचार करता है। सम्मान देने वाला जितना महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, उससे अधिक सम्मान प्राप्त करने वाले का उत्साहवर्धन होता है। उसने जो कार्य किया है, सम्मान देने वालों की उसके प्रति निष्ठा और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रकट होता है जो अन्य के लिए भी प्रेरक होता है। उनमें भी अपने कार्य के प्रति लगन और उत्साह पैदा करता है । सम्मान, दोनों पक्षों में आत्मविश्वास बढ़ाता है, इसलिए सम्मान करना हमारे यहां की संस्कृति और परंपरा है। सामाजिक हित, राष्ट्रहित, विशेष क्षेत्र या विशेष सेवा के क्षेत्र में किए गए कार्य, प्राप्त की गई उपलब्धि या किए गए त्याग, जो समाज, देश और उस क्षेत्र को गौरव प्रदान करे, मानव जाति का भला करे, मार्गदर्शन करे, अन्य के लिए आदर्श और प्रेरक बने ऐसे व्यक्तित्व को चुनकर संस्था, संगठन, समाज, देश स्तर से लेकर विश्व स्तर तक सम्मान की परंपरा है और विशेष अवसरों पर सार्वजनिक रूप से सम्मान के लिए सम्मान समारोहों का आयोजन किया जाता है । समाज सेवा के क्षेत्र में कुछ व्यक्ति मौन रहकर कार्य करते हैं।
ऐसे व्यक्ति जो उचित होता है, वैसा करते हैं, करते जाते हैं, वे किसी को बताते नहीं । अपने कार्य के अतिरिक्त समय में से समय निकाल कर भला कर सकने योग्य होते हैं। भले लोग भला करने में लग जाते हैं तो कुछ जीवनपर्यंत भले कार्य को अपना लेते हैं । जो ऐसे लोगों और उनके कार्य व्यक्तित्व की परख करते हैं, वे उन्हें प्रकाश में लाते हैं। मीडिया के माध्यम से या अन्य सम्मान करने योग्य संस्था को बताकर उनके महत्त्व को प्रकट करते हैं, सम्मान प्रदान करने के माध्यम से। मगर इसमें अगर किसी कोण से स्वार्थ घुसता है तो व्यक्ति के चुनाव पर असर पड़ता है और फिर इसके बाद सम्मान की गरिमा भी प्रभावित होती है, क्योंकि जिस आम जनता को कई बार मासूम और निरपेक्ष समझ लिया जाता है, उसकी नजर सधी हुई होती है। कुछ व्यक्ति या संस्थाएं मेवा के लिए सेवा करते हैं, ताकि अधिसंख्य लोग उनकी सेवा को ध्यान में रखकर उसको जानें- पहचानें और राजनीति में पद प्राप्ति का अवसर आने पर सेवा कार्य को भुनाकर पद प्राप्त कर सकें और सेवा का स्थायी पारिश्रमिक प्राप्त कर सकें।
ऐसे में दूसरे भी उनकी सिफारिश कर सकें कि ये समाज सेवक हैं। ऐसे व्यक्ति सेवा के माध्यम से अपना निवेश करते हैं और अवसर आते ही कई गुना ज्यादा भुनाने की व्यवस्था कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति या ऐसी संस्थाएं लोकप्रियता के मामले में उच्च दर्जे पर बने रहते हैं । इस श्रेणी में अधिकांश स्वयंसेवी संगठन और सेवा के बदले लाभ का पद प्राप्त करने वाले लोग आते हैं। उनके कानों में इस तरह की लोकोक्तियां गूंजती रहती हैं, 'करेंगे सेवा तो मिलेगा मेवा । ' उनके लिए यह जरूरी भी होता है कि वे बताएं कि सेवा के क्षेत्र में उन्होंने किया क्या है ! या फिर यों ही वित्त पोषण प्राप्त करते रहते हैं और अपने लोगों या खुद को सम्मान दिलवाते रहते हैं । कुछ लोग लोकप्रियता की चर्चा या सुर्खियों में बने रहने के लिए भी सेवा कार्य करते हैं। उन्हें उसी में मजा आता है। यह उनकी जिजीविषा होती है और उनके लिए इतना ही पर्याप्त होता है । इसमें कोई दोराय नहीं कि सम्मान मानव समाज की गरिमा को बढ़ाते हैं। सच्चे और भले लोगों का सम्मान मानवीयता और इंसानियत का सम्मान है।
बुद्धिजीवी और सहृदय लोग और समाजों की यही पहचान है । निस्वार्थ भाव से की गई सेवा को समाज याद रखता है। हां, अगर सेवा के बदले मेवा प्राप्त करने की इच्छा हो या फिर शर्त हो तो उसे सेवा नहीं माना जाता। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि निस्वार्थ भाव से सेवा करने वालों को भी कभी-कभी शंका की दृष्टि से देखने लगे जाते हैं और उन पर अंगुली उठाने लग जाते हैं। हालांकि इसके लिए कुछ वैसे लोग जिम्मेदार होते हैं, जो स्वार्थ के मकसद से सेवा करने का ढोंग करते हैं। ऐसे में यह बहुत जरूरी होता है कि पूरी बात जान ली जाए, उसकी तह तक जाया जाए, परखा जाए और तब उसके बाद धारणाएं बनाई जाएं। अनुचित धारणा बनाने से मानवीय भावना कुंद होती है, उसे हानि पहुंचती है। इन सबसे हटकर सुलक्ष्य की प्राप्ति के लिए सुपथ पर चलकर अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति, जो अपनी और सबकी गरिमा बढ़ाए, जो समाज में उत्साह जागृत कर प्रेरणा प्रदान करे, सम्माननीय होता है। दबंगई और ताकत के बल पर सम्मान पाना अलग बात है और विनय के भाव में रह कर और दूसरों का निस्वार्थ भाव से भला कर, उपलब्धि प्राप्त कर सम्मान पाना अलग बात है । सम्मान, उत्साह, ऊर्जा, गरिमा और सकारात्मकता का प्रेरक होता है। इसलिए सम्मान की परंपराओं से विरत नहीं हुआ जा सकता। इससे अच्छी बात भला क्या होगी कि भले और अच्छे लोगों का सम्मान होता रहे, निस्वार्थ और सच्चे लोगों का सम्मान होता रहे ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब