एक महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने की संभावनाएं - लक्ष्मी पुरी
 
                                एक महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने की संभावनाएं - लक्ष्मी पुरी
जब से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2047 तक भारत के लिए विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है और इसके महाशक्ति बनने का विश्वास व्यक्त किया है, तब से इसकी गति और क्षमता के बारे में अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि भारत एक अग्रणी देश बनने या महाशक्ति का दर्जा हासिल करने के कठिन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है या नहीं।
इस बारे में नवीनतम चर्चा एक प्रसिद्ध पत्रकार मार्टिन वुल्फ की है, जिन्हें मैं जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) के दिनों से फॉलो करता रहा हूं। इन्होंने 9 जुलाई 2024 को फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित अपने लेख ‘वाई इंडिया विल बिकम ए सुपरपॉवर’ शीर्षक नामक एक लेख लिखा है। आलंकारिक भाषा में, उन्होंने जोर देकर कहा है कि भारत के अपनी आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर एक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा व्यावहारिक तो नजर आती है, लेकिन यह संभाव्य नहीं है।”
व्यवहार्यता बनाम संभाव्यता वुल्फ की सोच को सबसे अच्छी तरह से व्यक्त करने वाली पंक्ति यह है कि "भारत एक महाशक्ति तो बनेगा, परन्तु उसका स्तर पूरी तरह से चीन और अमेरिका के बराबर का नहीं होगा, लेकिन निस्संदेह रूप से एक मजबूत राष्ट्र होगा" और एक "बाकी दुनिया को जोड़ने वाला देश" होने के नाते, भारत वैश्विक आर्थिक नतीजों को आकार दे सकता है और जरूर दे सकता है।
अमेरिका जहां अभी भी "तकनीकी रूप से बहुत अधिक उन्नत देश बना रहेगा और उसकी उत्पादकता भी कहीं अधिक रहेगी", वहीं "भारत की विनिर्माण क्षमता कभी भी चीन के स्तर तक नहीं पहुंचेगी।" इस आकलन से कोई भी तब तक असहमत नहीं हो सकता, बशर्ते भारत वैश्विक व्यापार, निवेश और तेज गति से तकनीकी विकास में पिछड़ने की वजह से होने वाले नुकसान से उबरते हुए विकास की दिशा में लंबी छलांग लगाने का कोई चमत्कार न दिखा दे।
भारत की 'महाशक्ति' बनने की संभावनाओं पर सवाल खड़ा करने का एक प्रमुख कारक यह है कि सबसे तेज़ विकास दर और सर्वोच्च प्रयासों के बावजूद, भारत की प्रति व्यक्ति आय (पीसीआई), वर्ष 2047 तक ग्रीस के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी) के केवल 60 प्रतिशत तक ही पहुंच सकती है, जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा 'विकसित देश' के रूप में वर्गीकृत किया गया सबसे गरीब राष्ट्र है और यह चीन के वर्तमान पीसीआई के आसपास ही है। चीन 'उच्च आय' वाला देश नहीं है (विश्व बैंक), बल्कि यह 'विकसित' अर्थव्यवस्था से बहुत कम है (आईएमएफ)। फिर भी, इसके महाशक्ति होने को लेकर न सही है, लेकिन एक बड़ी आर्थिक शक्ति होने को लेकर क्या किसी को कोई संदेह हो सकता है?
विकास के मानदंड भारत कुछ प्रमुख पूर्व अपेक्षाओं को पूरा करने की राह पर है, जिसकी उसने पहचान की है। यह सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है, जिसने वित्त वर्ष 2023- 2024 में वैश्विक उत्पादन में 8.2 प्रतिशत की शानदार वृद्धि दर्ज की है, जो वैश्विक उत्पादन वृद्धि के लगभग दो गुनी है और जिसके निकट भविष्य में लगभग 7 प्रतिशत (आईएमएफ) होने का अनुमान है। भारत आवश्यक आर्थिक उपलब्धि और इच्छाशक्ति अर्जित कर रहा है और विशेष रूप से मोदी सरकार के पिछले दस वर्षों के शासन में प्रगति और परिवर्तन का उल्लेखनीय रिकॉर्ड रहा है।
विविध उत्पादन आधार और उत्पादकता वैश्विक औसत से दोगुनी दर से बढ़ रही है। वुल्फ ने यह सही ही कहा है कि विकास की गति इसके समावेशी होने पर आधारित है, जिसमें बेरोजगारी और गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है (पिछले दस वर्षों में लगभग 250 मिलियन भारतीय एमडीपी से बाहर निकले हैं) और श्रम बल भागीदारी में वृद्धि का योगदान रहा है। अप्रत्याशित रूप से भू-राजनीतिक और वैश्विक आर्थिक संकटों या मानवीय आपदाओं के बावजूद, यह व्यापक-आधार वाला उच्च विकास संभव हुआ है। निर्यात में वृद्धि यह सही है कि यदि व्यापार अनुपात (50 प्रतिशत) में गिरावट नहीं आनी है, तो भारतीय निर्यात को कम से कम दोगुनी गति से आगे बढ़ना चाहिए।
उन्होंने भारत को व्यापारिक संकट के किसी नए दौर के विरुद्ध चेताया है। उन्होंने वैश्विक निर्यात में भारत की छोटी हिस्सेदारी और ऐतिहासिक रूप से कम प्रदर्शन को निर्यात से हटकर एक देश के भीतर देखने वाले बदलाव को एक लक्षण के रूप में माना है। भारत निर्यात के मामले में बेहतर कर सकता है और अपने संसाधनों–किफायती लागत, कुशल श्रम की बहुलता, एक ओर सबसे तेजी से बढ़ते हुए बाजार और दूसरी ओर व्यापार अनुकूल नीतियों के माध्यम से निर्यात परिणामों के बीच के अंतर को कम कर सकता है।
इसके लिए सरकार और उद्योग को अधिक सक्रिय रूप से काम करना चाहिए। निर्यात संबंधी जड़ता या निराशावाद के संकेत से हटकर, भारत ने टेक 4.0 क्षेत्रों सहित अपनी विनिर्माण प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है और माल एवं सेवा दोनों के निर्यात में उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर हासिल की है- जो केवल वियतनाम और चीन से पीछे है, लेकिन वैश्विक औसत से काफी ऊपर है। भारत ने निर्यात के लिए घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं लागू की हैं। भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला केंद्र बनने के लिए एफटीए को समाप्त करने सहित अत्याधुनिक व्यापार नीतियों को विकसित करना जारी रखना चाहिए।
महामारी के बाद आपूर्ति श्रृंखलाओं में वैश्विक व्यवधान पैदा करने वाले रणनीतिक और महत्वपूर्ण क्षेत्रों और आवश्यक वस्तुओं के लिए 'आत्मनिर्भरता' हासिल करने का भारत का संकल्प, एक अंतर्मुखी 'व्यापार रुख' के बराबर नहीं है। जैसा कि जी-7 पश्चिमी देशों ने स्वयं घोषित किया है, भारत अलगाव या अंदर की ओर देखने की कोशिश नहीं कर रहा है, "यह आपूर्ति श्रृंखलाओं में जोखिम को कम कर रहा है और विविधता ला रहा है, अधिक क्षमता के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण निर्भरताओं को कम कर रहा है और आर्थिक दबाव पर काबू पाने के लिए लचीलापन अपना रहा है" और मित्रता से लाभ उठा रहा है।
अनूठी शक्तियां वुल्फ भारत की अनूठी शक्तियों और बुनियादी सिद्धांतों को भी पूरी तरह से ध्यान में नहीं रखते हैं। पीपीपी के संदर्भ में पहले ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका भारत, 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ने को तैयार है। दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले इस देश के पास ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ा युवा समूह है, जो संभावित रूप से मानव संसाधन का एक मजबूत भंडार और मध्यम वर्ग के विस्तार के साथ महत्वपूर्ण एवं बढ़ती क्रय शक्ति से लैस है।
प्रजनन दर में गिरावट और युवकों व युवतियों को सोच-समझकर तथा निरंतर शिक्षा एवं कौशल प्रदान करते हुए, यह देश एक बड़ा जनसांख्यिकीय लाभ हासिल करने और पर्याप्त रूप से मान्यता प्राप्त अपनी तुलनात्मक खूबियों का लाभ उठाने के लिए तैयार है। स्थिरता का कारक वुल्फ उन आंतरिक एवं बाहरी परिस्थितिजन्य व नीतिगत कमियों की ओर भी इशारा करते हैं, जो लक्ष्य तक पहुंचने की भारत की राह में बाधक हो सकते हैं। उनका यह सही मानना है कि भारत को “स्थिरता को बनाए रखने”; शिक्षा में सुधार; कानून के शासन की रक्षा करने; बुनियादी ढांचे का उन्नयन; निवेश के लिए सर्वोत्तम श्रेणी का वातावरण प्रदान करने; आवक निवेश को प्रोत्साहित करने; और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में अपने बदलाव को तेज करने जैसी विभिन्न ‘आंतरिक चुनौतियों’ पर काबू पाने की जरूरत है”।
सौभाग्य से, मोदी के भारत ने इन पहलुओं पर उल्लेखनीय एवं कुछ मामलों में तो जबरदस्त सुधार दिखाया है और इन सुधारों को आगे भी जारी रखना चाहिए। दक्षिण एशिया में हमारे चारों ओर घटित हो रही घटनाओं के आलोक में, स्थिरता का अनुपात वास्तव में जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अहम क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, नागरिक राष्ट्रवाद का निर्माण करने और हमारे उदार लोकतंत्र एवं आवश्यक सुधारों को अस्थिरता, अराजकता एवं आतंकवाद के उभार और स्वयं जी-7 ने जिसके खिलाफ लड़ने की कसम खाई है- सभी स्रोतों से दूसरे देशों द्वारा सूचनाओं में हेरफेर एवं हस्तक्षेप (एफआईएमआई)- से मुक्त रखने की हमारी क्षमता भी है।
महत्वपूर्ण रूप से अब जबकि प्रधानमंत्री ने अपना ऐतिहासिक तीसरा कार्यकाल शुरू किया है, यह याद करना प्रासंगिक है कि एशले टेलिस ने अपनी यादगार पुस्तक “ग्रास्पिंग ग्रेटनेस: मेकिंग इंडिया ए ग्रेट पावर” में वैसी निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति, फोकस और आत्मविश्वास की आवश्यकता की ओर इशारा किया है, जिसे अकेले पीएम मोदी ने भारत की महानता की कल्पना करने और उसे आगे बढ़ाने में दिखाया है। यह पुस्तक घरेलू वीटो धारकों और विशेष हितों वाले विवादास्पद लोकतंत्र, अदूरदर्शी विपक्ष और महत्वपूर्ण सुधारों को अवरुद्ध करने वाले क्षेत्रीय नेताओं के बारे में भी चिंता व्यक्त करती है।
मार्टिन वुल्फ की यह रूढ़िवादी सलाह कि भाजपा सरकार को “भारत के अपने सांस्कृतिक संघर्षों के बजाय अर्थव्यवस्था एवं कल्याण से संबंधित अपने प्रयासों को फिर से व्यवस्थित करना चाहिए" अनुचित है। मोदी सरकार के ‘सबका विकास’ का फोकस हमेशा सबके लिए, सबका, सबके द्वारा और सबके साथ आर्थिक विकास एवं कल्याण पर रहा है। वर्ष 2014 के बाद से, इस सरकार ने आजाद भारत के इतिहास में किसी भी पिछली सरकार की तुलना में ज्यादा कल्याणकारी लाभ प्रदान करने की दिशा में काम किया है।
कुल 800 मिलियन लोगों को मुफ्त भोजन प्रदान करने से लेकर रियायती आवास, स्वच्छता, स्वास्थ्य बीमा, शिक्षा एवं कौशल, ऊर्जा सुलभता एवं वित्तीय व डिजिटल समावेशन संबंधी सामर्थ्य, आजीविका, रोजगार और ग्रामीण विकास तक, कल्याण के क्षेत्र में मोदी के भारत ने नए मानक स्थापित किए हैं। बड़े आर्थिक सुधार जीएसटी का कार्यान्वयन; दिवाला एवं बैंकिंग कोड (आईबीसी); परिसंपत्ति मुद्रीकरण; श्रम कानून सुधार; स्टार्ट-अप इंडिया; तथा उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसे बड़े आर्थिक सुधार भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में परिवर्तनकारी साबित हुए हैं।
निवेश के प्रति अनुकूल रूख रखने वाली मोदी सरकार ने 25,000 अनावश्यक अनुपालनों को समाप्त कर दिया है तथा 1,400 से अधिक पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया है, जो व्यापार, उद्योग और एफडीआई के लिए एक अनुकूल नीतिगत वातावरण का संकेत है। चुनौतियों पर काबू यह सारी उपलब्धियां ‘कमजोर पांच अर्थव्यवस्था’ के विरासत में मिलने और विभिन्न वैश्विक आर्थिक झंझावतों व अनिश्चितताओं, घरेलू उठापटक से जूझने के बावजूद हासिल की गईं हैं। एकजुटता के साथ अन्य विकासशील देशों का समर्थन करते हुए, भारत द्वारा आपदाकारी कोविड-19 महामारी से निपटना अनुकरणीय रहा है। ऐसा करने में अन्य महाशक्तियां विफल रहीं।
रूस-यूक्रेन तथा अन्य संघर्षों के बावजूद, भारत कुशलता से ग्लोबल साउथ को प्रभावित करने वाले ईंधन, भोजन, उर्वरक एवं वित्तीय संकट को टालने में कामयाब रहा। चुनौतियां बनी हुई हैं और भारत को अपेक्षित संरचनात्मक बदलाव हासिल करने के लिए आगे और काम करना होगा, बुनियादी ढांचे में भारी निवेश जारी रखना होगा, अपनी विशाल श्रमशक्ति को उचित रूप से कौशल से लैस करना होगा तथा विशेष रूप से श्रम-केंद्रित उद्योगों में उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियां प्रदान करनी होंगी; समावेशी शहरीकरण करना होगा; डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना क्रांति को गति देनी होगी, कृषि उत्पादकता को बढ़ाना होगा, हरित बदलाव को संभव बनाना होगा; और सालाना 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करना होगा।
भारत को लाभान्वित करने वाली प्रगति एक अग्रणी शक्ति के तौर पर भारत का उदय चीन से अलग होगा। यह नरम और हितकर होगा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत ने एक विभाजित दुनिया को एकजुट करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण 2023 में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन है, जहां भारत ने आम सहमति बनाने, साथ मिलकर काम करने और पारस्परिक लाभ के अपने स्वभाव की चमक बिखेरी। यह उन महान शक्तियों के विपरीत है जो दूसरों की भारी कीमत पर अपने राष्ट्रीय हितों को बलपूर्वक आगे बढ़ाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को जीरो-सम गेम्स में बदल देते हैं।
महाशक्ति तमाम महान शक्तियों में सर्वोपरि होती है और वह वैश्विक व्यवस्था का एक मजबूत एवं अभिन्न हिस्सा होती है। मगर ऐसे समय में जब बहुध्रुवीय दुनिया आकार ले रही है जहां अधिक से अधिक देश अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को महत्व दे रहे हैं, तो यह अंतर कम महत्वपूर्ण हो सकता है। भारत अपना एक सहयोगी एवं सतत विकास मॉडल स्थापित करना चाहता है क्योंकि एक नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए विचारों एवं व्यवस्थाओं की लड़ाई एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुकी है। ग्लोबल साउथ पहले ही इस दृष्टिकोण से लाभ उठा चुका है और वह उम्मीद करता है कि भारत वैश्विक शासन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका जारी रखेगा।
सतत विकास के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए एक महान शक्ति के रूप में भरत के उदय में पश्चिमी लोकतंत्रों का सबसे अधिक व्यवस्थागत हित है। अगर भारत सफल होता है तो दुनिया जीत जाएगी। भारत सतत विकास लक्ष्यों और पेरिस जलवायु समझौते के लिए देश के लक्ष्य निर्धारित करने में अधिकतर देशों से काफी आगे है। इसने अधिकतम उत्सर्जन और नेट जीरो की स्थिति के बीच सबसे कम समयावधि का प्रस्ताव दिया है। इसके लिए उसने कई पहल किए हैं, जैसे दमदार सौर ऊर्जा परिवेश की स्थापना, इथेनॉल सम्मिश्रण को प्रभावी तरीके से लागू करना, अन्य जैव ईंधन एवं ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाया जाना और प्रधानमंत्री का 'लाइफ मूवमेंट'।
ये सभी भारत के व्यापक हरित दृष्टिकोण और उसके अनुरूप की गई कार्रवाई के प्रमाण हैं। भारत के विकास का यूटोपिया पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा परिभाषित धारणाओं या आय सीमाओं का पालन नहीं कर सकता है। मगर चीन का उदाहरण उन देशों की तरह है जिनके पास बुनियादी सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक स्वतंत्रता का अभाव है। इससे पता चलता है कि विकास अथवा महानता के मूल तत्व को पकड़ने में इन मानदंडों को नजरअंदाज कर दिया गया। आर्थिक महाशक्ति बनने का भारत का तरीका घरेलू स्तर पर समग्र मानव विकास सुनिश्चित करना है ताकि सभी भारतीयों के पास भरपूर विकल्प उपलब्ध हों और वे वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर नए सिरे से मानव केंद्रित वैश्वीकरण को आगे बढ़ाने में समर्थ हों।
विश्वसनीय संस्थाओं और विशेषज्ञों का मानना है कि भारत 2047 तक 26 से 55 लाख करोड़ डॉलर की जीडीपी तक पहुंच जाएगा और तब तक पीसीआई का 6 से 10 गुना हो जाएगा। आज की दूसरी सबसे बड़ी, तकनीकी रूप से विकसित अर्थव्यवस्था एवं बाजार के रूप में भारत आज की अन्य महाशक्तियों से काफी आगे होगा। ऐसे में कल्पना कीजिए कि वैश्विक कल्याण के लिए एक ताकत बनने के लिए भारत को कितनी व्यापक आर्थिक ताकत की जरूरत होगी! इस दर्जा के बारे में कौन बहस करना चाहता है?
लेखक के बारे में: लक्ष्मी पुरी संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव एवं यूएन विमेन की उप कार्यकारी निदेशक और भारत की पूर्व राजदूत हैं।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            