राष्ट्रीय पुस्तक प्रेमी दिवस :बदलते युग में किताबों का बढ़ता महत्व

राष्ट्रीय पुस्तक प्रेमी दिवस :बदलते युग में किताबों का बढ़ता महत्व
हर वर्ष 9 अगस्त को राष्ट्रीय पुस्तक प्रेमी दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन लोगों के लिए समर्पित है, जिन्हें पढ़ने से प्रेम है, जिनके लिए पुस्तकें सिर्फ ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि आत्मिक संतुलन और मानसिक यात्रा की दिशा होती हैं। लेकिन आज के समय में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हम वास्तव में अभी भी ‘पुस्तक प्रेमी’ समाज रह गए हैं? कुछ दशक पहले तक पुस्तकें ज्ञान, मनोरंजन और जीवन मूल्यों का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत थीं। घर में एक छोटी-सी लाइब्रेरी होना गर्व की बात होती थी। जो लोग पुस्तकें खरीद नहीं पाते थे, वे नगर पालिकाओं या संस्थागत पुस्तकालयों का सहारा लेते थे। वहां एक अकाउंट खुलता था, किताबें इश्यू होती थीं, और पढ़कर वापस कर दी जाती थीं। यह एक संस्कार था, ज्ञान साझा करने का संस्कार। मगर डिजिटल युग के आगमन के बाद यह परंपरा धीरे-धीरे सिमटती चली गई।
आज स्मार्टफोन, टैबलेट और इंटरनेट ने न सिर्फ पुस्तकों की जगह ले ली है, बल्कि लोगों की एकाग्रता, धैर्य और अध्ययनशीलता को भी प्रभावित किया है। कई ऐतिहासिक और प्रमुख पुस्तकालयों पर ताले लग चुके हैं या अवैध कब्जे हो चुके हैं। युवाओं की एक पूरी पीढ़ी इन अनुभवों से अनभिज्ञ है। वे ‘रील्स’ में जीवन तलाशते हैं और ‘मैसेज’ में भावनाएं। हालांकि सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने लेखन को लोकतांत्रिक रूप दिया है। अब कोई भी व्यक्ति अपनी बात कह सकता है, पोस्ट कर सकता है, साझा कर सकता है। इससे अनेक नए लेखक और विचारक सामने आए हैं, जो समाज के जमीनी मुद्दों को उठा रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह डिजिटल लेखन पारंपरिक साहित्यिक लेखन की गहराई, संवेदना और शोध की बराबरी कर सकता है? इसके साथ ही अब लेखन की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने भी प्रवेश कर लिया है। यह लेखन को न केवल सरल बनाता है, बल्कि रचनात्मकता को एक नई दिशा भी देता है। पर जब सब कुछ ‘तुरंत’ मिलने लगता है, जैसे गूगल से आंकड़े, संदर्भ, उद्धरण, तो गंभीर और गहन चिंतन की आवश्यकता लोग कम महसूस करते हैं।
यही कारण है कि आज के लेखन में सतहीपन मिलता है। इस बदलते परिदृश्य में यह जरूरी हो गया है कि हम पुस्तक प्रेम को फिर से पुनर्जीवित करें। बच्चों को लाइब्रेरी का संस्कार दें, युवाओं को डिजिटल लेखन के साथ-साथ परंपरागत साहित्यिक रचनाएं पढ़ने के लिए प्रेरित करें। पुस्तकों का संसार केवल जानकारी नहीं देता, वह दृष्टिकोण भी गढ़ता है। ज्ञान के लिए पुस्तकें अब जरूरी नहीं ज्ञान किताबों से नहीं मिलता है। आखिर कबीरदास को क्यों कहना पड़ा, पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। इस दोहे का अर्थ है कि मोटे-मोटे ग्रंथों को पढ़ते हुए संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन सभी विद्वान नहीं हो सके। कबीरदास कहते हैं कि, यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही सही तरीके से पढ़ ले, तो वह प्यार का सही रूप पहचान लेता है और वही सच्चा ज्ञानी होता है। पुस्तकों से शिक्षा ग्रहण की जा सकती है, लेकिन ज्ञान के लिए आपको चहुंओर देखना होगा। संसार में चारों ओर ज्ञान ही ज्ञान पसरा है। संसार में ज्ञान हमेशा से सर्वोपरि रहा है।
सभी लोग जीवन में सफल होना चाहते हैं। सफलता की कुंजी को प्राप्त कर अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं। इसके लिए वे किताबों में ही डूबे रहते हैं। किताबों से ज्ञान तो अर्जित की जा सकती है, लेकिन यह काफी हद तक सीमित ज्ञान होगा। सफलता के लिए जरूरी है सूचनाओं को इकट्ठा करना। संसार में चहुंओर सूचनाओं का अंबार है। इसलिए पुस्तक से निकलकर संसार में अपने आस-पास भी देखिए और ज्ञान इकट्ठा कीजिए। ऐसा देखा गया है कि ऊंची- ऊंची डिग्री धारण करने के बाद भी लोग व्यावहारिक जीवन में बहुत ही असफल होते हैं, उन्हें समझ में नहीं आता है कि अपने इस किताबी ज्ञान को किस तरह से जीवन में उतारें और उपयोग करें। आचार्य विनोबा भावे ने ऐसी स्थिति को ‘हनुमान कूद’ की संज्ञा दी है। इसलिए जरूरी है कि किताबी ज्ञान के साथ ही मानवीय और व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया जाए। यह हमें पुस्तकों से नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवहार से, आसपास के परिवेश और अनुभव से प्राप्त होता है। कई लोगों के मन में यह सवाल होगा कि आखिर सूचनाओं को कैसे इकट्ठा किया जाए? हर किसी के लिए सफलता पाने का अलग-अलग मापदंड होता है। लोग अलग-अलग क्षेत्रों में अपना करियर बनाना चाहते हैं। आप जिस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं या आपका जो भी लक्ष्य है, उससे संबंधित लोगों से बातचीत कीजिए। अपने गुरुजनों, परिवार वालों, सफल व्यक्तियों और आसपास के लोगों से बातचीत कीजिए, सूचनाओं का सबसे अच्छा साधन है संवाद। संवाद के जरिये ही आप संसार की तमाम सूचनाओं को इकट्ठा कर ज्ञान अर्जित कर सकते हैं।
इसीलिए कबीरदास भी अपने दोहे के जरिये यह समझाते हैं कि किताबों में डूबे रहने से ज्ञान का अंकुर कभी नहीं फूट सकेगा। बल्कि प्रेम के अनुभव से ही व्यक्ति ज्ञान के शिखर को छू सकता है। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब