वे लगाम किसान यूनियनों का बढ़ता प्रभाव: क्या ये वास्तव में किसानों के हित में काम कर रही हैं?
वे लगाम किसान यूनियनों का बढ़ता प्रभाव: क्या ये वास्तव में किसानों के हित में काम कर रही हैं?

वे लगाम किसान यूनियनों का बढ़ता प्रभाव: क्या ये वास्तव में किसानों के हित में काम कर रही हैं?
एटा। जिले में किसानों की समस्याओं और उनके अधिकारों की बात करने वाली कई किसान यूनियनों का अस्तित्व है, लेकिन हालिया घटनाओं ने एक नया सवाल खड़ा कर दिया है – क्या ये यूनियनें वाकई किसानों के हित में काम कर रही हैं या फिर अपने व्यक्तिगत फायदे और राजनीति में व्यस्त हैं? पिछले दिनों, अलीगंज तहसील के नदराला गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा अवैध मेडिकल क्लीनिकों पर कार्रवाई के बाद क्षेत्रीय किसान यूनियन "स्वराष्ट्र" ने CMO कार्यालय पर धरना दिया और इन क्लीनिकों को फिर से खोलने की मांग की। हालांकि, इसके बाद से इस मुद्दे पर कई सवाल उठने लगे हैं।
स्थानीय लोग और अन्य किसान संगठन इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि किसान यूनियनें कृषि कार्य से ज्यादा अन्य मुद्दों में क्यों हस्तक्षेप करती हैं। स्थानीय निवासी और किसान, रघुवीर सिंह का कहना है, "यूनियन के लोग जो आजकल किसानों के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उन्हें कभी खेतों में काम करते नहीं देखा। ये लोग कभी किसानों की असल समस्याओं पर ध्यान नहीं देते, बस हर विवाद में कूदकर अपनी छवि चमकाने का प्रयास करते हैं।" दूसरी ओर, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि किसान यूनियनों ने किसानों के हितों की बात करने के बजाय निजी स्वार्थों और राजनीतिक फायदे के लिए अपने आंदोलन का स्वरूप बदल लिया है। एटा में दर्जनों यूनियनें सक्रिय हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश यूनियनों का फोकस सिर्फ राजनीति और वर्चस्व पर ज्यादा होता है, न कि वास्तविक कृषि समस्याओं पर। किसान नेता, ओम प्रकाश यादव का कहना है, "किसान की असली समस्या तो भूमि सुधार, सिंचाई की कमी, फसलों की कम कीमत और कृषि ऋण जैसी बातों में है।
लेकिन इन यूनियनों के नेता किसानों के मुद्दों को छोड़कर हर छोटी-बड़ी समस्या पर टांग अड़ा रहे हैं। ये लोग अपनी छवि बनाने के लिए किसी भी मुद्दे का फायदा उठा लेते हैं।" हालांकि, कुछ यूनियनें मानती हैं कि वे गांवों में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी समस्याओं पर ध्यान देकर किसानों की स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हैं। वे कहती हैं कि अवैध क्लीनिकों की बंदी से गांव के गरीबों को समस्या हो रही है, और इसलिए उनका विरोध उचित है। यह मामला अब जिले भर में चर्चा का विषय बन चुका है।
एक ओर जहां किसान यूनियनें खुद को किसानों का सशक्त प्रतिनिधि साबित करने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में ये यूनियनें अपने उद्देश्य के प्रति ईमानदार हैं, या फिर राजनीति और व्यक्तिगत लाभ की ओर झुक रही हैं? क्या किसान यूनियनों का वास्तविक उद्देश्य अब भी किसानों के हित में है, या वे सिर्फ अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए किसानों के नाम पर राजनीति कर रही हैं? इस सवाल का जवाब अब एटा के किसानों और उनकी यूनियनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।