उत्सव की तरह जीवन

Jun 10, 2025 - 08:57
 0  2
उत्सव की तरह जीवन

कई लोग अपनी जिंदगी को किसी बोझ की तरह ढोते नजर आते हैं। न मन में कोई उत्साह, न कोई उमंग। ऐसे लोग दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ गपशप और हंसी मजाक भी नहीं करते। जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह, कोई जश्न नहीं । पदोन्नति हो या पगार में इजाफा, चेहरे पर मुस्कुराहट तक नहीं। ऐसे लोग हमेशा हैरान परेशान नजर आते हैं। वहीं कुछ लोग बीमार पड़े-पड़े भी हंसते-मुस्कुराते रहते हैं । मुसीबत में भी पूरी ऊर्जा से सक्रिय रहते हैं।

दफ्तर में सहकर्मियों के साथ इनकी गपशप चलती रहती है। ऐसे जिंदादिल लोग आए दिन जरा-जरा-सी खुशी पर लड्डू-पेड़े बांटते, केक काटते या लोगों को पार्टी देते नजर आते हैं। असल में जीवन को ऐसे ही लोग जीते हैं। ये जीवन को एक उत्सव की तरह जीते हैं । हमारा जीवन विविधताओं से भरा है। इसमें उतार-चढ़ाव, हर्ष विषाद, सफलता-असफलता, मैत्री - दुश्मनी लगी ही रहेगी। इन सारी चीजों के साथ ही हमें जीवन को जीना है। हमें सपनों को साकार करने के वास्ते लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जीना होता है। इस प्रक्रिया को हम जितनी सुगमता, सहजता और सरलता से पूरा करने की तैयारी रखेंगे, उतनी ही सुकूनदेह जिंदगी जी पाएंगे। जो लोग हमेशा चिंता में डूबे रहते हैं, वे ऐसा नहीं कर पाते। ऐसे चिंताजीवी लोग न खुद को कुछ दे पाते हैं, न अपने परिवार, समाज या देश को । हर समय अवसाद, उदासी और चिढ़ में जीने वाले कभी आगे नहीं बढ़ पाते। इसलिए जीवन को एक खेल या उत्सव की तरह जीना चाहिए। इसमें हार-जीत का महत्त्व नहीं, कोशिश का महत्त्व है। मस्तिष्क को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त रखने के लिए एकाग्रता जरूरी है।

 इसके लिए सुबह- शाम प्राणायाम, ध्यान और योग जरूरी है। उत्साह और खुशी हमारे जीवन की गहराइयों में छिपे होते हैं। इन्हें बाहर निकालना चाहिए। नील पसरीचा ने अपनी किताब, 'द हैप्पीनेस इक्वेशन' में कहा है कि मन को हल्का रखने और आराम महसूस करने के लिए रात को फोन बंद कर देना चाहिए, अच्छे पलों को दर्ज करना चाहिए, प्रातःकाल दस-पंद्रह मिनट तक एक रजिस्टर में बीते दिन की अच्छी बातें लिखें। हर हफ्ते कम से कम दो अच्छे काम करें, जैसे किसी की मदद, किसी की गौशाला या अनाथालय में दान आदि । एक शोध के मुताबिक, तारीफ में कही गई बातें हमें उतना ही प्रोत्साहित करती हैं जितना हाथ में पैसों का आना । इसलिए अपने गहरे दोस्त या परिवार के किसी सदस्य की तारीफ करनी चाहिए। इस तरह खुशी मिलेगी। रोज सुबह कुछ अच्छा पढ़ने और संगीत सुनने की जरूरत है और पार्क में टहलना । कठिनाइयों से घबराना नहीं, बल्कि उन्हें गहराई से समझना चाहिए। गली के आवारा कुत्ते जब हम पर भौंकते हैं और हम उन्हें देखकर भागने लगते हैं तो वे और भी तेज भौंकते हुए हमारा पीछा करने लगते हैं। वहीं हम जब एक जगह खड़े होकर उन्हें घूरते हैं। तो वे शांत होकर पीछा छोड़ देते हैं ।

यही हाल समस्याओं और कठिनाइयों का है। हम उनसे पलायन करके नहीं बच सकते। उन्हें पहचानने और उनका समाधान धैर्यपूर्वक खोजने की जरूरत है। जीवन में सफल होने के लिए उन्हीं प्रयासों, ऊर्जा और साधनों पर केंद्रित रहना चाहिए जो किसी न किसी तरह हमारे काम आ सकते हैं। हुनर, धैर्य और मेहनत का साथ हो तो इंसान को आगे बढ़ने का कोई न कोई अवसर मिल ही जाता है। कठिन समय में जो लोग मदद करते हैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना चाहिए, जिससे हमें भी अच्छा लगेगा। मशहूर लेखिका रोंडा बर्न अपनी किताब 'द 'मैजिक' में लिखती हैं कि कृतज्ञता का जादू हमारे समूचे जीवन को बदल देगा। हजारों लोगों ने सबसे बुरी स्थितियों में रहने के बावजूद कृतज्ञता के अभ्यास से अपने जीवन को पूरी तरह बदल लिया। जीवन को उत्सव की तरह जीना है तो लोगों के प्रति मैत्री भाव रखना चाहिए। यह बात दिमाग से निकाल देनी चाहिए कि दुनिया बहुत खराब है। यह समझने की जरूरत है कि अगर दुनिया खराब है तो हम भी इसी का एक हिस्सा हैं।

हम लोगों से मुस्कुरा कर मिलेंगे तो लोग भी हमसे मुस्कुरा कर मिलेंगे। हम किसी के साथ गेम खेलेंगे तो वे हमें क्यों छोड़ेंगे? विनम्रता, मिलनसारिता, जिंदादिली और हंसमुख स्वभाव बहुत ऊर्जा देते हैं। इससे दूसरे का नहीं, हमारा ही भला होगा। ऊर्जा बनी रहेगी, मिजाज अच्छा रहेगा और काम में मन लगेगा। लोगों से हमेशा किसी स्वार्थ के कारण ही बात नहीं करनी चाहिए, व्यवहार के लिए भी प्रेम के धागे बुनना चाहिए, ताकि बात करके हम अपना मन हल्का रख सकें और किसी के साथ सुझावों का आदान-प्रदान कर सकें। जीवन की गति को नियंत्रण में रखना बेहतर होता है। ज्यादातर दुर्घटनाएं अनियंत्रित गति की वजह से होती हैं। कई बार हम जिंदगी को लेकर एक लीक अपना लेते हैं। वक्त चाहे जितना बदले, पर हमारे विचार नहीं बदलते । पूर्वाग्रहों से हमारे मन में जड़ता आ जाती है। समय- समय पर जीवन से फालतू चीजों को हटाना चाहिए। इस प्रक्रिया के दौरान खुद से कुछ सवाल पूछना चाहिए। मसलन, कि क्या मैं वही कर रहा हूं जो मैं अपने जीवन से चाहता हूं? क्या मैं अपनी जिंदगी से संतुष्ट हूं ? इन सवालों से जो जवाब मिलें, उनसे पता चल जाएगा कि हम आधी से ज्यादा बेकार चीजों के पीछे भागते रहे हैं और इसीलिए हमारी जिंदगी इतनी उलझी हुई और दुश्वार है। 'द लाइफ आडिट' की लेखिका कैरोलीन राइटन कहती हैं, 'इससे आपको अपनी जीवन यात्रा को समझने और अब तक की गई तरक्की या तरक्की में रुकावट बन रहे कारणों का पता चलता है। आपको यह भी पता चलता है कि आप कहां अटके हु हैं। आपको अपनी इच्छाओं का भी पता चलता है।'

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब