मिठाइयों की उम्र
मिठाइयों की उम्र
मिठाइयों की उम्र
विजय गर्ग
सर्वोच्च न्यायालय ने दो साल पहले दिल्ली समेत महानगरों में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के चलते पटाखे छुड़ाने के बजाय मिठाइयां खाकर दिवाली मनाने की सलाह दी थी। अच्छे हलवाई की दूध- खोए की मिठाइयां अब सात सौ रुपए किलो से ऊपर ही मिल रही हैं। सबसे ज्यादा और स्वादिष्ट मिठाइयां दूध से ही बनती हैं। समय का कैसा उलटफेर है कि एक जमाने में पटाखों पर कोई रोक-टोक नहीं थी, जबकि दूध और दुग्ध पदार्थों पर नियंत्रण रखा जाता था । इस हद तक कि 1970 के दशक में देश के कई राज्यों में दूध पर पहरा लगने लगा था। उत्तर प्रदेश दुग्ध एवं दुग्ध पदार्थ नियंत्रण अधिनियम लागू किया गया, जिससे दूसरे राज्यों को दूध की आपूर्ति पर रोक लग गई। यही नहीं, पूरे देश में गर्मी के दिनों में पनीर और दूध की मिठाइयां बनाने-बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता, ताकि दूध का इस्तेमाल इनके लिए न हो सके। इससे पहले 1965 में पश्चिम बंगाल में 'छैना स्वीट्स कंट्रोल आर्डर' जारी किया गया, तो ऐसा ही कानूनी नियंत्रण पंजाब में 1966 में आया ।
इसी बीच, दिल्ली में भी दूध की रोक-टोक के लिए कड़ा कानून लागू किया गया। कानूनी रोक के मुताबिक, दिल्ली में पच्चीस से अधिक मेहमान-संख्या के समारोह आयोजन में खोया, छैना, रबड़ी और खुरचन से बनी मिठाइयां नहीं खाई जा सकतीं। मौके बेमौके मिठाइयां खाने- खिलाने की चाह हर किसी को होती ही है । इसीलिए हर तीज-त्योहार से किसी न किसी मिठाई का खास जुड़ाव रहता है। कम ही खाने वाले जानते हैं कि मिठाइयों की भी एक उम्र होती है । उसके बाद उसकी गुणवत्ता में गिरावट शुरू हो जाती है । होली पर गुझिया का बोलबाला होता है, तो सावन के महीने में घेवर का । घेवर तो मुश्किल दो दिन ही चलता है, जबकि माना जाता है कि गुझिया काफी दिनों कर खराब नहीं होती, और खाने लायक रहती है। लेकिन ऐसा है नहीं । हलवाइयों की माने तो खरीदने के चार दिनों में गुझिया खा लेनी चाहिए। कलाकंद, मिल्क केक और बर्फी जैसी दूध-खोये से बनी मिठाइयां चंद दिनों के लिए ही अच्छी रहती हैं, भले ही इन्हें हिफाजत से फ्रिज में रखा जाए। सबसे कम उम्र कलाकंद की है। कलाकंद केवल एक दिन में खा लिया जाए, तो उत्तम है, क्योंकि यह दानेदार होता है, दूध से लिपटा होता है और सूखे मेवे के चूरा का भी इसमें उपयोग भी होता है।
दूध को ढाई-तीन घंटे काढ़- काढ़ कर यों बनाते हैं कि बारह लीटर दूध से करीब पौने चार किलो कलाकंद ही बनता है। आमतौर राजभोग, चम-चम, खोया बर्फी, खोया रोल और तिल बुग्गा दो दिन के बाद खाने लायक नहीं रहता । पंजाब में सर्दी के दिनों की खास मिठाई तिल बुग्गा खोए-चीनी को भून कर, तिल और मेवे मिला कर, लड्डुओं की शक्ल में बनाते हैं। मोहन भोग, रसकदम, रसो माधुरी, संदेश वगैरह ज्यादातर बंगाली मिठाइयों को फ्रिज में रखने की सबसे ज्यादा हिदायत दी जाती है। बंगाली मिठाइयां गाय के खालिस दूध की छैना से जो बनाई जाती हैं, इसीलिए उम्र दो दिन ही है। हलवाई बताते हैं कि दाल पिन्नी, बूंदी या मोतीचूर लड्डू, छैना मुरकी, रसगुल्ला, गुलाब जामुन और शाही पिन्नी की उम्र तीन दिन है। हालांकि लगता यह है कि ये मिठाइयां तीन दिन से ज्यादा दिनों तक खाने लायक रहती हैं। मिल्क केक, कोकोनट बर्फी, चाकलेट बर्फी, कोकोनट लड्डू, केसर मलाई बर्फी वगैरह चार दिनों में खा लेने की सलाह दी जाती है, बेशक हम ज्यादा दिनों तक खाते रहें। काजू कतली, बेसन लड्डू और बालू शाही की उम्र सात दिनों की है। तब तक स्वाद नहीं बिगड़ता । काजू कतली बनाने के लिए काजू को भिगो कर पीसते हैं, फिर चीनी के साथ मिला कर, बर्फी की शक्ल में ढालते हैं। ऊपर चांदी का वर्क शोभा बढ़ाता है। इनके उपयोग की अवधि सात दिन होने की वजह से त्योहारी मौसम में लोग खोया बर्फी से ज्यादा काजू बर्फी के दीवाने होने लगे हैं।
इसी तरह पिस्ता, बादाम और अखरोट की 'ड्राई फ्रूट लौंज' कम से कम दो हफ्ते तक खाने लायक रहती हैं। दूसरी ओर, पेठा, अंगूरी पेठा, डोडा बर्फी वगैरह दस दिन तक खाने लायक रहते हैं । डोडा बर्फी पंजाब और जम्मू की लोकप्रिय मिठाई है । अंकुरित गेंहू को सुखा और पीस कर तैयार अंगूरी बनाते हैं। अंगूरी, दूध, चीनी वगैरह की कड़ाही में घंटों काढ़- काढ़ कर डोडा को काजू-पिस्ता की टापिंग कर बर्फी की शेप में बनाते हैं। बीस दिनों की लंबी उम्र नवाजी गई है पतीसा, पंजीरी और कराची हलवा को । पतीसा बेसन से बनता है। सोन पापड़ी नाम की मिठाई को पतीसे का भाई - बहन कह सकते हैं। इसीलिए सोन पापड़ी की आदर्श उम्र भी बीस दिन ही है। सोहन हलवा देखने में बेशक सख्त लगता है, लेकिन खाने में कुरमुरा है, बावजूद इसके ज्यादा चबाना नहीं पड़ता, क्योंकि इसमें करीब सत्तर फीसद देसी घी ही होता है । इसलिए बिना फ्रिज में रखे एक महीने तक खा सकते हैं। मिठाइयों में सबसे ज्यादा उम्र हब्शी हलवा की है । कभी चख कर देखा जा सकता है। दूध, समलख (अंकुरित गेहूं), देसी घी, जाफरान, केसर, मेवे, चीनी वगैरह को कड़ाही में दस-बारह घंटे पका पका कर बनाते हैं। खास बात है कि फ्रिज के बिना भी खाने लायत जीवन छह महीने है। उम्र का तकाजा तो ठीक है, लेकिन त्योहारों के दौरान धड़ल्ले से बिकतीं नकली खोए की मिठाइयों का क्या किया जाए ? न खाए बनता है, न छोड़े । आमतौर पर खोया - छैना के मुकाबले बाकी मिठाइयों की खपत महज तीस फीसद ही है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
साक्षरता पर सोशल मीडिया का प्रभाव
विजय गर्ग सोशल मीडिया का साक्षरता पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ा है। यहां इसके प्रभाव का एक सिंहावलोकन दिया गया है: सकारात्मक प्रभाव: 1. पढ़ने और लिखने में वृद्धि: सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म लोगों को अधिक नियमित रूप से पढ़ने और लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, चाहे पोस्ट, टिप्पणियों या सीधे संदेशों के माध्यम से। पाठ के साथ यह लगातार जुड़ाव लोगों को साक्षरता कौशल का अभ्यास करने में मदद करता है, विशेष रूप से युवा उपयोगकर्ताओं को जो अन्यथा पढ़ने के पारंपरिक रूपों से बच सकते हैं। 2. विविध सामग्री तक पहुंच: सोशल मीडिया समाचार लेखों से लेकर ब्लॉग, कहानियों और चर्चाओं तक सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला तक पहुंच प्रदान करता है। यह प्रदर्शन उपयोगकर्ताओं के पढ़ने के क्षितिज को व्यापक बनाता है और उन्हें विभिन्न लेखन शैलियों और विचारों से परिचित कराता है। 3. डिजिटल साक्षरता कौशल: जैसे-जैसे लोग सोशल मीडिया से जुड़ते हैं, वे आवश्यक डिजिटल साक्षरता कौशल विकसित करते हैं। इनमें ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर नेविगेट करना, स्रोतों का मूल्यांकन करना और मीडिया संचार के विभिन्न रूपों को समझना शामिल है, जो आधुनिक डिजिटल परिदृश्य में महत्वपूर्ण हैं। 4. वैश्विक संचार: सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं के लोगों से जुड़ने की अनुमति देता है, जिससे अंतर-सांस्कृतिक साक्षरता और भाषा सीखने को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, उपयोगकर्ता वैश्विक दर्शकों के साथ बातचीत के माध्यम से नई भाषाएँ या शब्दावली सीख सकते हैं। नकारात्मक प्रभाव: 1. अनौपचारिक भाषा का उपयोग: सोशल मीडिया अक्सर अनौपचारिक भाषा, स्लैंग, संक्षिप्ताक्षर और इमोजी के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
समय के साथ, यह पारंपरिक लेखन और व्याकरण संबंधी कौशल को नष्ट कर सकता है, खासकर युवा उपयोगकर्ताओं में जो औपचारिक पढ़ने या लिखने की तुलना में ऑनलाइन अधिक समय बिताते हैं। 2. कम ध्यान अवधि: लघु-रूप सामग्री (ट्वीट्स, पोस्ट, मीम्स) की त्वरित खपत उपयोगकर्ताओं की लंबे, अधिक जटिल पाठों से जुड़ने की क्षमता को कम कर सकती है। इस प्रवृत्ति से सरल, कम सूक्ष्म सामग्री को प्राथमिकता दी जा सकती है, जो गहन पढ़ने के कौशल और समझ को प्रभावित करती है। 3. गलत सूचना और खराब गुणवत्ता वाली सामग्री: सोशल मीडिया गलत सूचना और निम्न-गुणवत्ता वाला लेखन भी फैला सकता है, जिससे असत्यापित या खराब लिखित सामग्री की खपत हो सकती है। यदि उपयोगकर्ताओं को गंभीर रूप से स्रोतों का मूल्यांकन करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, तो यह जोखिम महत्वपूर्ण पढ़ने और विश्लेषणात्मक कौशल को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। 4. पारंपरिक पढ़ने में गिरावट: कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग से किताबें, समाचार पत्र या अकादमिक लेख पढ़ने में गिरावट आ सकती है। गहन, संरचित पढ़ने से छोटे, खंडित पाठों की ओर यह बदलाव साक्षरता विकास को कमजोर कर सकता है।
संक्षेप में, जबकि सोशल मीडिया डिजिटल साक्षरता को बढ़ा सकता है और पढ़ने और लिखने के लिए नए रास्ते प्रदान कर सकता है, यह पारंपरिक साक्षरता मानकों, जैसे व्याकरण पर ध्यान, दीर्घकालिक समझ और सामग्री के महत्वपूर्ण मूल्यांकन के लिए चुनौतियां भी प्रस्तुत करता है। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब [3) मीडिया बनाम डिजिटल मीडिया विजय गर्ग मीडिया क्या है? जनसंचार में मीडिया से तात्पर्य जनसंचार के उन साधनों से है जो खेल, शिक्षा, मनोरंजन, राजनीति आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित सूचना या समाचार को कम समय में बड़ी आबादी तक पहुँचाने में मदद करते हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जनसंचार के दो प्रमुख रूप हैं। आइए देखें कि वे एक दूसरे से कैसे भिन्न हैं! प्रिंट मीडिया क्या है? प्रिंट मीडिया सूचना प्रसारित करने के सबसे पुराने साधनों में से एक है। यह विज्ञापन का एक लोकप्रिय रूप है जो समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तकों, पत्रक, ब्रोशर आदि जैसे भौतिक रूप से मुद्रित मीडिया का उपयोग करता है। प्रिंट मीडिया में लोगों के व्यापक वर्ग तक पहुँचने की क्षमता है। यह लोगों के बीच समाचार, संदेश और सूचना फैलाने के लिए मुद्रण प्रौद्योगिकी और विधियों का उपयोग करता है। डिजिटल मीडिया क्या है?
डिजिटल मीडिया से तात्पर्य प्रिंट मीडिया को छोड़कर सूचना साझा करने के सभी साधनों से है, जैसे रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि। यह एक ऐसा मीडिया है जिसे दर्शकों के देखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर साझा किया जा सकता है और व्यापक आबादी तक प्रसारित किया जा सकता है। प्रिंट मीडिया बनाम डिजिटल मीडिया समय के साथ आगे बढ़ते हुए दुनिया डिजिटल मीडिया को भी उतना ही महत्व दे रही है। लेकिन इसका प्रिंट मीडिया पर क्या असर हो रहा है, या फिर हम जनसंचार की इन दो व्यापक तकनीकों के बीच कैसे संतुलन बना सकते हैं, आइए देखें। प्रिंट मीडिया के लाभ विश्वसनीय प्रिंट मीडिया ज़्यादा भरोसेमंद है क्योंकि एक बार खबर प्रकाशित होने के बाद उसमें बदलाव या उसे हटाया नहीं जा सकता। जबकि डिजिटल मीडिया में हम कंटेंट में बदलाव या उसे हटाया जा सकता है। इसलिए, अखबार और पत्रिकाएँ चलाने वाले लोग खबर या लेख प्रकाशित करते समय ज़्यादा सावधान रहेंगे।
इसलिए प्रिंट मीडिया ज़्यादा भरोसेमंद है पढ़ने का विकल्प अखबार या पत्रिका का लेख घर या व्यवसाय में टेबल या रैक पर रखा जा सकता है, जिससे आगे चलकर बार-बार प्रचार-प्रसार हो सकता है। ब्रोशर, फ़्लायर्स और अन्य सहायक सामग्री की अक्सर कई बार समीक्षा की जाती है और अन्य संभावित खरीदारों के साथ साझा की जाती है। इसके विपरीत, बैनर विज्ञापनों सहित कई प्रकार के डिजिटल संदेश एक प्रभाव उत्पन्न करने के बाद गायब हो जाते हैं। डिजिटल डिटॉक्स आजकल पढ़ाई और काम के कारण कई लोगों को स्क्रीन पर समय बिताना पड़ता है। ऐसे में प्रिंट मीडिया एक ब्रेक और राहत की तरह है। इसके अलावा, आजकल ज़्यादा से ज़्यादा लोग डिजिटल डिटॉक्स का विकल्प चुन रहे हैं। प्रिंट मीडिया उनके लिए बहुत उपयोगी है। गांवों में प्रिंट मीडिया फिर भी, भारत के कुछ दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट की सीमित पहुंच है। प्रिंट मीडिया उनके लिए दुनिया भर में होने वाली नवीनतम घटनाओं को जानने का एक वरदान है। साथ ही, पत्रिकाओं या अखबारों में छपी खबरों को समझने के लिए, यह अनिवार्य है कि व्यक्ति को पढ़ना आना चाहिए। प्रिंट मीडिया अशिक्षित लोगों के लिए बहुत उपयोगी नहीं लगता है। डिजिटल मीडिया के लाभ विस्तृत श्रृंखला डिजिटल मीडिया में संदेश को बहुत कम समय में कई लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। इसके अलावा, यह एक माध्यम में ऑडियो, वीडियो, टेक्स्ट और ग्राफ़िक्स की एक श्रृंखला का उपयोग करता है, जो इसे दुनिया भर में सबसे पसंदीदा माध्यम बनाता है।
इसके माध्यम से वितरित की गई सामग्री को भविष्य में उपयोग के लिए रिकॉर्ड या संग्रहीत किया जा सकता है। लाइव प्रोग्रामिंग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसके माध्यम से विभिन्न घटनाओं का वास्तविक समय में प्रसारण संभव है। पर्यावरण के अनुकूल डिजिटल होना कचरे को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। प्रिंट स्टूडियो में कागज़ की बर्बादी पर्यावरण के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है। प्रिंट-आधारित डिज़ाइन स्टूडियो में, टीम द्वारा साप्ताहिक रूप से उपयोग किए जाने वाले कागज़ के ढेर दो पूरे कमरों में समा सकते हैं। कागज़ का उपयोग संक्षिप्त विवरण प्रिंट करने, टीम के साथ डिज़ाइन विचारों को साझा करने के लिए किया जाता है, इस बर्बादी को डिजिटल सॉफ़्टवेयर और सुविधाओं का अधिक कुशलता से उपयोग करके आसानी से ठीक किया जा सकता है। प्रिंट मीडिया से सस्ता स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, और इसलिए कई डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म विज्ञापनों के कारण मुफ़्त में सामग्री प्रदान कर रहे हैं। इसलिए, लोग ज़्यादा खर्च किए बिना आसानी से सामग्री पढ़ और देख सकते हैं। साथ ही, डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पुरानी सामग्री से भी राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए, उन्हें अधिक राजस्व मिलेगा और इसलिए वे सामग्री की गुणवत्ता में अधिक निवेश कर सकते हैं।
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लेकिन शोहरत का नशा वही करता है, जो शराब—पहले सिर चढ़ती है, फिर पैर के नीचे की ज़मीन खींच लेती है। एक शाम, दफ्तर में बैठा राघव नए मुनाफ़ों का हिसाब देख रहा था, तभी फोन की घंटी बजी। उधर से उसके मैनेजर ने हड़बड़ाई हुई आवाज़ में कहा, "सर, बाजार अचानक गिर गया है, हमारे शेयर धड़ाम से नीचे आ गिरे हैं!" राघव को यकीन नहीं हुआ। जिस कारोबार की नींव उसने अपनी मेहनत से रखी थी, वह इस तरह धराशायी कैसे हो सकता था! कुछ ही दिनों में उसकी हालत ऐसी हो गई कि जिस सफलता पर वह घमंड करता था, वही अब लोगों की हँसी और चर्चा का कारण बन गई। जो लोग कल तक उसकी तारीफें करते नहीं थकते थे, वही आज उसकी नाकामियों का मजाक उड़ाने लगे। राघव को अब एहसास हुआ कि जिस डाल पर वह बैठा था, वह कभी भी टूट सकती थी। लेकिन उसे यह समझने में देर हो गई थी। उसने दौलत और शोहरत के घमंड में न केवल अपने पुराने दोस्तों से दूरी बना ली थी, बल्कि अपने आपको भी भुला दिया था। ऐसे में एक दिन उसका पुराना मित्र मोहन, जो उसकी बुलंदियों के वक्त भी उससे दूर नहीं हुआ था, मिलने आया। उसने बड़े स्नेह से कहा, "राघव, जीवन में ऊँचाइयाँ हासिल करना बुरा नहीं है, पर ऊँचाई पर रहते हुए यह भूलना सबसे बड़ा धोखा है कि इंसान को कभी भी गिरना पड़ सकता है।
शोहरत और दौलत का खेल पल भर का तमाशा है—आज हैं, कल नहीं। इसीलिए हमेशा विनम्र रहना चाहिए।" उस रात राघव ने अपने कमरे में देर तक सोचा। उसे एहसास हुआ कि उसने लोगों को छोटा समझा, अपनों से मुँह मोड़ा, और सफलता के नशे में खुद को भी कहीं खो दिया था। अगले दिन उसने अपने काम की फिर से शुरुआत की, लेकिन इस बार मन में कोई अहंकार नहीं था। अब राघव न सिर्फ अपने कारोबार को संभाल रहा था, बल्कि हर छोटे-बड़े से वही इज्जत और स्नेह के साथ पेश आता, जिसे कभी वह भूल बैठा था। उसने सीख लिया था कि बुलंदियों का सुख तभी टिकाऊ होता है, जब इंसान ज़मीन से जुड़े रहे। अब भले ही उसकी कंपनी पहले जैसी बड़ी न हो, लेकिन उसे इसका मलाल नहीं था। राघव ने समझ लिया था कि सफलता पंखों पर सवार होकर आती है, लेकिन विनम्रता वह नींव है, जो इंसान को कभी गिरने नहीं देती।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट