मर्यादा महोत्सव

Feb 15, 2024 - 09:25
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मर्यादा महोत्सव
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मर्यादा महोत्सव

जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण है मर्यादा और अनुशासन ।जिसके मूल में संयम है ।संयम के अभाव में मुक्त खुलावट उच्छऋंखलता पैदा करती है।संयम हमें जीवों को अभयदान देने की प्रेरणा देता है।संयम से सभी सद्गुणों की जीवन में वृद्धि होती है और हम ज्ञाता-द्रष्टा भाव तक पहुंच सकते हैं।

संयम खलु जीवनम-संयम ही जीवन है।संयम हैं जहां,अहिंसा आदि गुण वहां प्रस्फुटित होते हैं।मर्यादा में है तब सब सुरक्षित है।मर्यादा हमारे जीवन में महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है। सही नज़रिया ही शान्त-सुखी जीवन का मुख्य ज़रिया हैं । ग़लत दृष्टि से हम जीने की ग़लत डगरिया पकड़ लेते है ।

जीवन के हर मोड़ पर विवेकशील चिन्तन और सधा हुआ फ़ैसला होना नितान्त आवश्यक हैं ,उसके अभाव में कभी भी संतोषप्रद जीवन नहीं जी सकते कितनी भी कोशिश चाहे जितनी भरसक कर लें । अनुशासन के अभिवर्धन का मर्यादा महोत्सव एक उत्सव का पर्व है । प्रेरणा एवं प्रगति का,आचार्य के बहुशृत और समर्थ व्यक्तित्व का,आचार्य की वंदना का उत्सव मर्यादा महोत्सव होता है ।

मर्यादा का यह महान पर्व महास्नान जैसा होता है इसमें अतीत की शुद्धि,वर्तमान में भारहीनता और भविष्य के लिए पूज्य प्रवर की नई दृष्टि जो मिल जाती हैं। मर्यादा महोत्सव जिस पर हम गर्व एवं गौरव करते है उसके सम्मान का भी अपना दायित्व है कर्तव्य हैं। सृष्टि और विकास का द्योतक मर्यादा है इसमें सबको विकसित होने का ज़्यादा से ज़्यादा अवसर मिलता हैं ।

शांति अमन का साम्राज्, अभय का वास आदि सदा रहता है इसमें छोटे,बड़े,सबल,निर्बल सभी अपना फ़र्ज़ अदा करते है । भिक्षु स्वामी ने दूरदृष्टा बन संघ में अजब मर्यादा बांधी जो वो दो सौ साठ वर्ष से तेरापंथ की संपदा के रूप में फल फूल रहा हैं ।संघर्षों की आँधियों से जूझ के भी आज संघ जगमगा रहा है ।

छोटा सा बीज अंकुरित बन वट वृक्ष सा आज पनप रहा हैं । एक आचार्य के नेतृत्व में सारा संघ अनुशासन में चल रहा हैं । इसमें कोई भी मन मानी नहीं है और अविनय या उत्शृंखलता का अवकाश ज़रा भी नहीं है ।अनुशासन में रहना आनुशासित रह साधना की चर्या करना और सर्व साधु सतियों का,आज्ञा आचार्य की "तहत" कह आनंदित हो स्वीकार करना संत - सती विहार चातुर्मास क्षेत्र अपना अपना हर्षोल्लास का क्षण होता है ।

सच मर्यादा में रहकर कितना संघ व सबका विकास होता है इसके विपरीत अगर आज ये मर्यादा नहीं होती तो जाने कब का विनाश या लुप्त हो गया होता । प्रकृति का ये नियम भी है कि जव तक मर्यादा में है सब कुछ सुंदर-शांत है, जिस दिन मर्यादा टूटी क्या क़हर पृथ्वी पर ढाया है ? इस विनाश के तांडव का,इतिहास साक्षी गवाह है ।मर्यादा जीवन है,प्राण है, आत्मा है , सुख-शांति , आनंद आदि का वास है। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)