सन्तोषी सदा सूखी

सन्तोषी सदा सूखी
हम अमूमन देख रहे हैं कि आज हर कोई अपनी परिस्थिति से खुश नहीं है । वह यहाँ तक कि अच्छे-खासे धनाढ्य के चेहरे भी यही कहते है कि उन्हें भी सुख नहीं है । इसका कारण स्पष्ट है कि लोग अपने पास जो है उससे संतुष्ट नहीं है । वह भूल गए हैं कि प्राप्त ही पर्याप्त है वही सबसे बड़ा सुख है । वह हर समय दूसरों से तुलना करना और फलत: खुद को कम आँकना यही तो दु:ख को बुला-बुलाकर गले लगाना है । हम यह जान लें कि संतोष का मतलब यह कभी नहीं है कि महत्वाकांक्षा न रखें बल्कि इसका तात्पर्य है जो मिल जाए उसी में खुश तो रहें। हमको दौलत से सिर्फ सुविधाएँ मिल सकती हैं सुख नहीं। वह दौलत से यदि सुख मिलता तो किसी भी धनपति के जीवन में कभी दु:ख आता ही नहीं। अत: हमको धन से सुख मिल जाएगा यह भ्रम हम मन से हम मिटा दें क्योंकि करोड़पति के मन में होगा कि उसके पास एक अरबपति से कम है ।
हमारे अपने कर्म ही तो वास्तव में सुख-दु:ख के निमित्त है । यह दृष्टव्य है हमको सुख मन के सन्तोष से मिलता है । वह परिस्थितियों को सही से स्वीकार करने के आत्मतोष से है । वह सदाचार व सद्व्यवहार से है । वह अपनों के साथ से व आपस के प्यार से है । हमारे खुश रहने का तात्पर्य यह भी है कि जो प्राप्त हुआ है उसके लिए हम आभारी बनें। वह मन से कृतज्ञता प्रकट करें और भीतर से आनन्दित रहें। वह हम दिल से मन ही मन इतना कहें कि साईँ इतना दीजिए जा में कुटुम्ब समाय। मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाए। हम यह सदा स्मरण रखें कि संतोषी सदा सुखी। वह कभी न दुखी होता है इसीलिए तो कहते हैं कि सन्तोषी सदा सुखी।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )