स्वाद बनाम सेहत
स्वाद बनाम सेहत
विजय गर्ग
किसी का जन्मदिन हो, विवाह समारोह या फिर कोई भी मौका, आज देखते ही देखते हर तरह के जश्न में 'फास्ट फूड' की उपस्थिति अनिवार्य - सी हो गई है। हमारे समय का हलवा पूरी और पुदीने की चटनी अब चलन से बाहर हो चुके और एक 'पिछड़ी' हुई रुचि का खाद्य मान लिए गए हैं। अब कोई इनका जिक्र तक नहीं करना चाहता । पिज्जा और बर्गर की पहुंच तो कस्बे ही नहीं, गांव-गांव तक हो गई है। इसलिए अब पेस्ट्री और पास्ता के लिए गांवों में रहने वालों को शहर नहीं भागना पड़ता। पेशेवर तौर पर तैयार खाना घर पहुंचाने वाली कुछ कंपनियां तकनीक में ऐसी चाक-चौबंद और मुस्तैद हैं कि बहुत कम वक्त में अपनी छाप छोड़ चुकी है।
यहां भी बच्चों का स्वाद बदलने के लिए आती ही जा रही है। भारत के चौबीस हजार से अधिक गांवों के नाम आज पांच फास्ट फूड पहुंचाने वाली कंपनियों के पास दर्ज हैं। आगे भी तैयारी चल रही है। गांव में कार्यक्रमों का आयोजन करके शायद बाकी गांवों में छा जाने का लक्ष्य है। माता-पिता का नाम, पास्ता और सैंडविच के प्रकार अब स्कूल जाते बहुत सारे पांच साल के बच्चे को भी याद होते हैं। करीब पांच साल के दूर बच्चे तो मंचूरियन को भी पहचान लेते है। आज भारतीय समाज मे बच्चों की स्वाद ग्रंथि पर इन मीठे और नमकीन फास्ट फूड ने जितना गहरा स्थान बना लिया है, उतना नवरत्न चटनी, घी आटे का हलवा, लड्डू, नारियल की खीर, पकौड़े, चटपटे आलू जैसे देसी व्यंजन नहीं बना सके।
ये पुरानी चीजें अब भुलाई जा रही हैं। तुरंता आहार या फास्ट फूड के कारोबार में हर दिन नए प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका आकार प्रकार, इस्तेमाल होने वाले रसायन, स्वाद, खुशबू, रंग, विविधता, खाने में सुविधाजनक होना फास्ट फूड की लोकप्रियता का प्रमुख कारण है। यह बेवजह नहीं है कि पारंपरिक भोजन और भोजन शैली की जगह अब तेजी से सिकुड़ती जा रही है। लोगों के स्वाद बदल रहे हैं। इसके प्रति ऐसा आकर्षण पैदा हुआ है कि कुछ लोग मानने लगे हैं कि यह दबी हुई भूख को जाग्रत कर देता है । पिज्जा या बर्गर का नाम लेते ही कुछ लोगों के मन में एक जायकेदार छवि बनने लगती है। एक लत की तरह की रुचि का अध्ययन करने की जरूरत है कि अगर ऐसा होता है तो क्यों होता है ! इसमें कौन-सी ऐसी चीज का प्रयोग किया जाता है कि लोग ऐसा सोचने लगते हैं !
आज हालत यह है कि बर्गर का एक टुकड़ा मुंह में रखकर आखें बंद कर आनंद से खाने वाला अगर परांठा खाए तो शायद उसे अरुचि हो । जबकि परांठे के गुण पिज्जा से हर हाल में कई- कई गुना अधिक है। मगर इस पर लोग अब शायद सोचते भी नहीं । दो-तीन दशक पहले तक खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता पर गौर किया जाता था। वह ताजा बना हुआ है, यह भी देखा जाता था। अब ताजा और बासी का कोई प्रयोजन नहीं करना होता । 'ओवन' में बस कुछ सेकंड में बासी सैंडविच को गरमागरम ताजा बना लिया जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक, कम से कम बीस लाख 'फास्ट फूड' के डिब्बे या पार्सल की आपूर्ति केवल राजधानी दिल्ली में होती है। इनमें सैंडविच, पिज्जा, बर्गर आदि खासतौर पर होते हैं।
यह हैरानी की बात हो सकती है, मगर इसके साथ ही ठंडे पेयों की बिक्री का आंकड़ा शायद और भी चौंकाए । स्वाद और जायके की दुनिया में गोते लगाएं और सेहत का रंग रूप भूल जाएं, यही मकसद है फास्ट फूड के कारोबार का । पार्सल को खोलकर उसमें से गरमागरम खाद्य पदार्थ निकालना और फिर आराम से बैठकर इसको एक-एक कौर दांतों से काटकर जीभ से रसीला बनाकर इसमें खो जाना एक तरह की खुशी है। कुछ समय पहले एक पाश्चात्य गायक किसी फास्ट फूड का प्रचार करते हुए इसे चटखारे लेकर खाए जा रहे थे। उनका एक संकेत यह भी था कि भोजन की फिक्र में सिर किसलिए खपाया जाए..! उनको इस तरह देखने वाले लोग भी दाल-चावल रोटी, साग, रायता, पापड़, चटनी भूलकर उसी खाने पर रीझ रहे होंगे। मनमोहक इश्तिहार देखकर मजबूत मन भी उसके साथ हिलने-डुलने लगता है। बच्चे हों या किशोर, युवा हों या वयस्क, हैसियत का पैमाना मान लिए गए फास्ट फूड के इंद्रजाल में ऐसे फंसते हैं जैसे सांप को रस्सी समझ लिया जाए।
विडंबना यह है कि इसके नुकसान झेलने के बावजूद ऐसी नासमझी बरकरार रहती है। इसे सुधारा नहीं जाता। भले ही कब्ज हो, दस्त लग जाए, गला खराब हो, रसायन युक्त खाद्य से बदन ही दुखने लगे, बाल गिरने लगे, दांत खराब हो, कान दुखने लगे। मगर हर अगली भूख को तृप्त करने के लिए फिर उसी सम्मोहन में डूबे रहना लोगों को अच्छा लगता है। आजकल छोटे-छोटे बच्चे इस तरह के खानपान के शौकीन बनकर इसके अर्ध कल्पित, अर्ध परिचित अर्ध सत्य के भ्रम में सेहत का नुकसान कर रहे हैं। उनके भविष्य को लेकर जरूर चिंतित होना चाहिए। इस तरह के खाने का उद्देश्य न तो किसी की सेहत बनाना है, न किसी को भोजन के माध्यम से अच्छी औषधीय गुण वाले व्यंजन परोसना है ।
हमारे यहां पारंपरिक भोजन में रायता और चावल को खाने से अतिसार एकदम ठीक हो जाता है। मूंग दाल का स्वादिष्ट चीला अगर पुदीने की चटनी के साथ खाया जाए तो पेट की समस्या, यानी अपच और कब्ज भी ठीक होती है। नारियल की चटनी और चने की रोटी या भरवां करेला ही मजे से खाया जाए तो पेट के कीड़े मर जाते हैं। प्याज का सलाद खाने से लू नहीं लगती। मेथी की चपाती या पकौड़ी से बदन का दर्द दूर होता है। सवाल है कि हर तरफ पसर रहे बाजार के तुरंता खाने से सेहत में कितना सुधार होता है! अगर केवल स्वाद और आकर्षण में डूबा जाए तो धन तो जाएगा ही, सेहत भी दांव पर लगेगी। विजय गर्ग शैक्षिक स्तंभकार मलोट पंजाब 2) उच्च तापमान का बनता रिकार्ड विजय गर्ग यूरोप की 'कापरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस संस्था' के अनुसार 2023 को अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रूप में चिह्नित किया गया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का औसत तापमान उत्तरोत्तर वृद्धि की ओर है। महीने - दर - महीने, साल-दर- साल तापमान के रिकार्ड ध्वस्त होते जा रहे हैं। यह चिंताजनक है, क्योंकि उच्च तापमान का पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। दरअसल जलवायु परिवर्तन के साथ दुनियाभर में बढ़ता तापमान कई अनुषंगी पर्यावरणीय समस्याओं को भी जन्म देता है। सूखा, बाढ़ और दावानल इसके प्रमुख रूप हैं। उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण की दर में वृद्धि से मिट्टी की नमी कम होने लगती हैं, जिससे कई क्षेत्र सूखे का सामना करते हैं। सूखे के कारण फसलों की पैदावार में कमी आती है।
इससे मानव समाज के समक्ष खाद्य असुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी और पलायन का खतरा मंडराने लगता है। वहीं जलाशयों में पानी का भंडारण कम होने और भूजल का स्तर गिरने से एक बड़ी आबादी को पानी की समस्या से जूझना पड़ता है। बढ़ता - वैश्विक तापमान बाढ़ को भी आमंत्रित करता है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, हवा अधिक नमी अवशोषित करती है, जिससे अत्यधिक वर्षा होती है और कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। वायु में नमी का अधिभार तूफान को अत्यधिक संवेदनशील बनाता है।
वहीं उच्च तापमान जंगल की आग को फैलने में सहायक होता है, क्योंकि ईंधन कम तापमान की तुलना में उच्च तापमान में अधिक आसानी से जलते हैं। उच्च तापमान जंगल की आर्द्रता को अवशोषित करते हैं, जिससे हरियाली सूखती है और दावानल की चपेट में आसानी से आ जाती है। गर्मी का मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1998-2017 तक लू के कारण 1,66,000 से अधिक लोग मारे गए। वहीं 2000 और 2016 के बीच लू की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या में लगभग 1.25 अरब की वृद्धि दर्ज की गई। है। जाहिर है, मौसम संबंधी मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण चरम तापमान भी है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल देश में अप्रैल और जून के महीने में भीषण गर्मी के कारण हीटस्ट्रोक के कारण लगभग 110 मौतें हुईं। वहीं 2021 में हीटस्ट्रोक से 374 लोगों की जान गई थी । उच्च गर्मी से बचने के लिए एक और जहां सतर्क रहने की जरूरत है, वहीं पौधारोपण, प्लास्टिक के प्रयोग में कमी, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को अपनाने जैसे कार्य भी जारी रखने होंगे। प्रकृति को संरक्षित करने का कार्य हरेक स्तर पर जारी रखने होंगे। तभी जाकर इस धरा को मानव जीवन के अनुकूल बनाया जा सकता है। विजय गर्ग शैक्षिक स्तंभकार मलोट पंजाब