विषय आमंत्रित रचना - खर्च करने की ज़्यादा निर्भरता बढ़ाना

Nov 6, 2023 - 19:44
Nov 6, 2023 - 21:17
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विषय आमंत्रित रचना - खर्च करने की ज़्यादा निर्भरता बढ़ाना
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विषय आमंत्रित रचना - खर्च करने की ज़्यादा निर्भरता बढ़ाना

आज के इस भौतिक चकाचौंध भरे युग में मानव की आय बढ़ी है परन्तु उसके साथ - साथ खर्चा भी उसका बढ़ा है । हर आदमी अपने हिसाब से चिन्तन कर सही जैसे जहाँ जैसे अपने विवेक से प्रमाणिक चिन्तन होता है वहाँ आगे बढ़ने की और उत्सुक रहता है ।

आगे बढ़ कर वह अपने जीवन में व घर में सुविधाओ का विकास करता है । सुविधाओं का विकास होता है तो मानव की इसके पीछे होने वाली मानसिकता का सही से फलीभूत होना है । इसके परिणामस्वरूप खर्च करने की ज्यादा निर्भरता बढ़ती है । हर मानव आगे बढ़ना चाहता है । कितने ही भवों की पुण्याई के उदय से हमें मनुष्य पंचेन्द्रिय जन्म जो कि अति दुर्लभ है वह मिला है ।

उससे भी ज्यादा दुर्लभ श्रुति ,बोधि और फिर तदनुरूप उस पर सही श्रद्धा ये 4 चीजें अति दुर्लभ है मनुष्य जन्म पाकर भी। हमारा चिंतन सकारात्मक रहे और हर समय जो हमें मिला उसके लिए हम आभारी होअपने पूर्वकृत शुभ कर्मों के जिससे हमारी ज्ञानचेतना का निरन्तर अभ्यास होते हुए एक दिन हम कर्म मुक्त हो पाएं। हम हमारे एक एक अंग -प्रत्यंग की कीमत न समझते हुए व्यर्थ में उनकी क्षमता को , दुरुपयोग करके नष्ट कर देते हैं और फिर कितने ही पैसे देकर कृत्रिम अंग के ऊपर निर्भर होने की स्थिति बना लेते हैं।

हम गुरुदेव तुलसी के पट्टधर प्रेक्षा प्रणेता दसवें आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत्त प्रेक्षाध्यान की 5 उपसम्पदाओं को जीवन मे अपनाकर । और हर समय जो मिला है हमें , उसमें संतुष्ट रहकर अपने उपकारी को धन्यवाद देने की प्रक्रिया अपनाएं। उदाहरण तो बहुत है परन्तु सबसे बड़ा उदाहरण हमारी सजगता है । जो हमें मिला है उसके सदुपयोग की और उसमें संतुष्ट होकर कृतज्ञता जताने की। आधुनिक जीवन की व्यस्त शैली में आनंदमय जीवन जीने का सिद्धांत हम भूल रहे हैं ।आनंद महसूस करने की अदभ्य शक्ति हमारे भीतर ही है । जीवन का सही से वास्तविक आनंद स्वयं को जानने से ही मिलता है ।

जिस तरह अपने शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त रखने के लिए भोजन, शयन और जागरण के नियमों के साथ-साथ व्यायाम भी करना जरूरी है। उसी तरह आध्यात्मिक पथ पर बढ़ते हुए यथासंभव दूसरों की निस्वार्थ मदद करना, बदले की भावना की जगह माफ करने का गुण विकसित करना, एक सीमा तक धन अवश्य रखना परंतु उसमे फिजूल खर्च ना करना,पाप -धर्म का बोध होना, समता,करूणा, प्रेम , विश्वास और आदर रखना तथा प्रतिकूल परिस्थिति में भी सम भाव में रहना मानव के आनंदमय जीवन के लिए जरूरी है ।

गुणवत्ता हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण सम्पदा है । इसके सामने नहीं किसी भी अन्य सम्पति की कोइ मूल्यवत्ता है ।जिसके पास मधुर , निर्मल आचार व सुन्दर व्यवहार का धन होता है उसी व्यक्ति का सबसे उजला मन का आँगन व चिंतन होता है । हमें अपने इस जीवन की कलुषताओं का निर्मल भावधारा से परिस्कार करना है और नये जीवन की दिशा में अपने क़दमों को संभल - संभल कर धरना है । आम आदमी जीवन में योजनाएं बनाता हैं वह खर्च की और उसकी व्यवस्था पूरा करने में जुट जाता है। जिसके पास रुपया पहले से हैं उसके लिस्टें बन जाती है। तैयारी हो जाती है। वह अन्त में काम हो जाता है ।

आम गरीब कहीं से भी उधारपाव लाकर जीवन में खुशियों के लिये अतिरिक्त खर्च पाटने का प्रयास करता है।इसके पीछे कारण अपने बच्चों व परिवार की खुशी है । ऐसी कहानी आम लोगों की व गरीब वर्ग की होती है। जीवन की गाड़ी सभी जने सुचारू रूप से चलाने के लिये सभी प्रयास अपने परिवार में करते हैं।  कहीं आर्थिक क्षमता नहीं है तो भी करते हैं । कही ज्यादा अच्छी है तो भी सभी परिवार में प्रयास करते जाते है। पैसा है मानव जीवन के यापन की बहुत बड़ी संपदा । इसको व्यर्थ में खर्च कर मत गंवाओ ।

इसे व्यर्थ मत खर्च करो व करो इसके साथ न्याय ।सोच समझ कर खर्च करना ही है यही समझ है अनमोल । मधुर मधुर गलत उपयोग में अरे इसमें विष मत घोलो । सारपूर्ण बात यह है की मित्त रहे हर काम । कभी भी निरर्थक खर्च कर मत कर इन पर घात । कम खर्च करो हर पैसे को उसका ज्यादा पड़े प्रभाव । पैसे स्वयं के पास रहने पर ही समाज में बाह्य दृष्टिकोण से रहन - सहन के हिसाब से परिवार में सुख - शान्ति रहती है वह इसके बिना सुख - शान्ति का घाव ही घाव है । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)