कांशीराम की पुण्यतिथि पर मायावती के तेवर ने सपा की पीडीए रणनीति को दिया झटका, बसपा में नई जान
कांशीराम की पुण्यतिथि पर मायावती के तेवर ने सपा की पीडीए रणनीति को दिया झटका, बसपा में नई जान लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राजनीति में एक बार फिर बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। राजधानी लखनऊ में बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर उमड़ी भारी भीड़ और पार्टी सुप्रीमो **मायावती के आक्रामक तेवरों** ने उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है। मायावती ने मंच से मिशन 2027 के लिए खुद को पूरी तरह सक्रिय रहने का एलान करते हुए साफ संकेत दिया कि बसपा अब फिर से **'सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय'** के पुराने सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर लौट रही है।
■ सपा की पीडीए रणनीति को खतरा मायावती के इस रुख को समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, जो पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDए) के समीकरण के जरिए भाजपा को चुनौती देने की रणनीति पर काम कर रही है। मायावती ने अपने भाषण में वंचितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और सवर्ण समाज के नेताओं को खास तवज्जो देकर साफ कर दिया कि पार्टी अब **सिर्फ दलित-मुस्लिम** समीकरण पर नहीं, बल्कि **सर्वसमाज** को साधकर आगे बढ़ेगी।
■ सोशल इंजीनियरिंग की वापसी बसपा ने 2007 में दलित-ब्राह्मण समीकरण के साथ सत्ता में पूर्ण बहुमत से वापसी की थी। लेकिन बाद के चुनावों में यह फॉर्मूला असफल रहा और 2022 के विधानसभा तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में 'दलित-मुस्लिम' गठजोड़ भी नहीं चल पाया। इस बार मायावती ने **सोशल इंजीनियरिंग के पुराने फॉर्मूले को फिर से अपनाते हुए** पार्टी के संगठन को बूथ स्तर तक खड़ा करने की घोषणा की है।
■ भाजपा को मिल सकती है राहत राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बसपा की सक्रियता से जहां सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, वहीं **भाजपा को पीडीए गठबंधन से मिलने वाले खतरे से राहत** मिल सकती है। हाल ही के उपचुनावों में देखा गया कि बसपा के वोट शेयर ने सपा को नुकसान पहुंचाया और भाजपा को जीतने में मदद मिली।
■ बसपा में घर वापसी के संकेत मायावती के आह्वान के बाद पार्टी के पुराने नेता भी वापसी की तैयारी में हैं। माना जा रहा है कि अन्य दलों में उपेक्षित, नाराज वंचित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के नेता बसपा का रुख कर सकते हैं। हालांकि पार्टी नेताओं का कहना है कि सिर्फ उन्हीं को जगह मिलेगी, जिन्होंने **मायावती के खिलाफ कभी बयानबाजी नहीं की**।
■ अखिलेश यादव की चुनौती बढ़ी अखिलेश भले ही बसपा को भाजपा की "बी टीम" करार देते रहे हों, लेकिन यह रणनीति सपा के लिए अब उलटी पड़ सकती है। पीडीए समीकरण को मजबूत करने की उनकी कोशिश बसपा के पुनर्गठन से कमजोर पड़ सकती है। **निष्कर्ष:** कांशीराम की पुण्यतिथि पर दिखी बसपा की ताकत और मायावती के बदले तेवर इस बात के संकेत हैं कि मिशन 2027 के लिए बसपा अब पूरी तैयारी में है। सपा को जहां अपनी रणनीति फिर से टटोलनी पड़ सकती है, वहीं भाजपा इस समीकरण में संभावित लाभ की ओर देख रही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में 'हाथी' की यह हलचल अगले विधानसभा चुनाव के समीकरणों को नए सिरे से गढ़ सकती है।





