पुलिस की गलती से निर्दोष को 17 साल तक न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ा, दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश

Jul 26, 2025 - 09:06
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पुलिस की गलती से निर्दोष को 17 साल तक न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ा, दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश

पुलिस की गलती से निर्दोष को 17 साल तक न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ा, दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश

मैनपुरी (अजय किशोर)। मैनपुरी में पुलिस की लापरवाही और "अक्षर" की एक गलती ने एक निर्दोष व्यक्ति की ज़िन्दगी को तहस-नहस कर दिया। 31 अगस्त 2008 को पुलिस द्वारा की गई गलती के कारण राजवीर नामक व्यक्ति को 22 दिन जेल में बिताने पड़े और लगभग 17 वर्षों तक उसे कोर्ट में न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ा। **क्या हुआ था?** 31 अगस्त 2008 को, मैनपुरी शहर कोतवाली के तत्कालीन इंस्पेक्टर ओमप्रकाश ने गैंगस्टर एक्ट के तहत मनोज यादव, प्रवेश यादव, भोला और राजवीर के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। इस मामले की जांच दन्नाहार थाना पुलिस को सौंप दी गई थी, और 1 दिसंबर 2008 को एसआई शिवसागर दीक्षित ने राजवीर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

हालांकि, यह गिरफ्तारी एक बड़ी गलती के कारण हुई। पुलिस ने राजवीर के खिलाफ तीन आपराधिक मुकदमे दिखाए, जबकि असल में ये मुकदमे राजवीर के भाई रामवीर के खिलाफ दर्ज थे। राजवीर के खिलाफ कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। राजवीर ने इसके खिलाफ कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया और मामला खुलने पर इंस्पेक्टर ओमप्रकाश ने कोर्ट में स्वीकार किया कि राजवीर का नाम गलती से मुकदमे में जोड़ा गया था और वास्तविक आपराधिक इतिहास उसके भाई रामवीर का था। **कोर्ट ने क्या कहा?** कोर्ट ने राजवीर को 20,000 रुपये के निजी मुचलके पर रिहाई के आदेश दिए। बावजूद इसके, पुलिस ने लापरवाही बरतते हुए चार्जशीट में राजवीर के नाम को नहीं हटाया और मामले को कोर्ट में भेज दिया। 2012 में यह मामला ट्रायल पर आया और मैनपुरी में गैंगस्टर कोर्ट की स्थापना होने के बाद सुनवाई शुरू हुई। **17 साल बाद न्याय मिला** राजवीर के अधिवक्ता विनोद कुमार यादव ने बताया कि अदालत ने 17 साल बाद, एडीजे विशेष गैंगस्टर एक्ट स्वप्नदीप सिंघल के माध्यम से राजवीर को पूरी तरह से बरी कर दिया है।

कोर्ट ने पुलिस की लापरवाही पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि कैसे अधिकारियों ने बिना संबंधित दस्तावेज़ों की जांच किए यांत्रिक रूप से गैंग चार्ट को मंजूरी दे दी, जिससे एक निर्दोष व्यक्ति को 22 दिन जेल में रहना पड़ा और लगभग 17 वर्षों तक कोर्ट में पेश होना पड़ा। **पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश** कोर्ट ने इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के आदेश दिए थे। पहले, 18 जनवरी 2021 को भी कोर्ट ने एसपी को दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था, लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई थी। अब, कोर्ट ने आदेश दिया है कि मैनपुरी के पुलिस अधीक्षक अपने स्तर से तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक ओमप्रकाश, थानाध्यक्ष संजीव कुमार, एसआई राधेश्याम समेत अन्य दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करें और इस बारे में कोर्ट को अवगत कराएं। यह मामला पुलिस की लापरवाही और न्याय व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है, कि कैसे एक अक्षर की गलती ने एक निर्दोष व्यक्ति को 17 साल तक न्याय की तलाश में संघर्ष करने पर मजबूर किया।