मिथ्या प्रतिस्पर्धा
मिथ्या प्रतिस्पर्धा
मैंने देखा समझा अनुभव किया कि जब हम घूमने के लिये निकलते है तो एक दूसरे से आगे बढ़ने की स्वतः ही होंडा- होड लग जाती है की कैसे मैं इससे आगे निकल जाऊँ । ठीक इसी तरह अपने साथियों को, पड़ोसियों को,परिचितों को हम प्रतियोगी समझने लगते हैं और उनको चाहे कैसे भी हो पीछे छोड़ना चाहते हैं तो इस संसार कि आपाधापी में हम सुख , चैन , शान्ति आदि - आदि सब भूल जाते है ।
जो अपनापन का अहसास होता है वो खत्म हो जाता हैं । जीवन एक फूल है,उसकी खुश्बू में महकते रहे,यह तभी सम्भव है जब हम एक दूसरे के साथ आत्मीयता से रहना सिख लेंगे। आत्मीयता या सहृदयता जीवन का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। आत्मीयता या सहृदयता का सबसे बड़ा लाभ हम स्वयं को ही होता है।सहृदयता या आत्मीयता आदि सृष्टि के नियम के जरिये कार्य करती है।जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को संचालित करता है।
हमारे जीवन मे यह नियम हमारे विचारों और भावनाओं पर कार्य करता है।हम जैसा महसूस करते है,वैसा ही हम अपनी ओर आकर्षित करते है।जिस तरह धातु चुम्बक की तरह खिंचती है।सहृदयता-आत्मीयता भी एक तरह से चुम्बकीय होती है। हमारे पास जितना अपनापन या सहृदयता का भाव होगा, हम उतने ही अधिक आनन्द ओर शांति का अनुभव करेंगे।सभी ने ये कहावतें तो सुनी होगी कि - जो हम बोते है वही काटते हैं,जो देते है वही पाते हैं ।
ये सारी बाते सृष्टि के उसी नियम का वर्णन कर रही है।सहृदयता भी सृष्टि के उसी नियम का एक हिस्सा हैं।जो हजार गुणा होकर हमारे पास लौटती है। वास्तव में आत्मीयता से आत्मन किसी को पुकारना,अपने आप मे यह एक अनूठी शक्ति है,जो निष्प्रणो में प्राण भर देती है। जहां सहृदयता या अपनेपन का जल प्रवाहित होता है वहां कभी नीरसता नही आती, सदा सरसता बनी रहती है।।अतः सदैव सहृदयता का भाव रखे और अघोषित मिथ्या प्रतिस्पर्धा से बचते रहे । प्रदीप छाजेड़