म ......... पश्चात और भारतीय सभ्यता का अंतर

Jan 19, 2024 - 18:44
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म ......... पश्चात और भारतीय सभ्यता का अंतर
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पश्चात और भारतीय सभ्यता का अंतर

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शीत ऋतु की हाड़ कपा देने वाली सर्दी की भयंकर काली रात थी ।रह रह कर बिजली कौंध रही थी और हल्की-हल्की बरसा भी हो रही थी। ठंडी ठंडीहवाओं के कारण सर्दी काफी बढ़ गई थी। वृद्ध आश्रम में सन्नाटा पसरा हुआ था। वृद्धा आश्रम केसभी स्त्री पुरुष अपनी रजाई में दुबके पड़े हुए गहरी नींद में सो रहे थे।

80वर्षीय के मुछाड़ी कैप्टन बलबीर सिंह रजाई से मुंह निकाले हुए जाग रहे थे और वृद्धा आश्रम की दूधिया बल्बों को निहार रहे थे ।अचानक उनकी पत्नी रामकली की आंख खुल गई। रजाई से मुंह निकाल कर पति से दबी धीमी आवाज में बोली -अब तो सो जाओ। रात के 12 बज रहे हैं। कैप्टन ने पत्नी की ओर मुंह करते हुए धीरे से कहा- नींद नहीं आ रही है ।

तुम्हारे लाडले पुत्र नरेंद्र की तथा तुम्हारे नाती अनुज की याद आ रही है। बहुत दिनों से उनकी कोई खबर नहीं मिली है। नाती तो अब काफी बड़ा हो गया होगा। पत्नी बोली- जब हम वृद्धा आश्रम मे आई थी तब वह 10 वर्ष का था ।काफी समझदार था ।वृद्ध आश्रम में आए हुए 14 वर्ष वर्ष हो गए है । अबतो वह 24 वर्ष का हो गया होगा। कैप्टन पत्नी से बोले- जब हम लोग वृद्धा आश्रम को चले थे। कितना रो रहा था।

यहां तक पहुंचाने पिता के साथभी आया था । इसके बाद भी दो-तीन बार मिलने भी आयाथा। बाप से कह रहा था बाबा को वृद्धा आश्रम सेलेचलो। बाबा को यहां अच्छा नहीं लगेगा । विदेशी पत्नी के हट के कारण लाचार विमल को हमें तुम्हें वृद्ध आश्रम में छोडना पड़ा। पत्नी बोली- शादी के बाद लड़का अपना नहीं रहता है । वो तो पत्नी का हो जाता है। व्यर्थ में क्यों सोच रहे हो? चुप चाप सो जाओ।

सुबह बातें करूंगी। हमारीतुम्हारी बातों से किसी की नींद खराब ना हो जाए । अब सो जाओ। पति पत्नी ने रजाई ओढ़ ली मुंह ढक कर सो गए। सुबह 8:बजे जब रजाई से मुंह खोला ही था तभी वृद्धाश्रम के नौकर ने आकर कहा- एक लड़का आप से मिलने के लिए आया हुआ है। बाहर बरामदा में बैठा हुआ है । कहो तो उसे बुलाऊं । कैप्टन बोले मुझसे कौन मिलने आने वाला है।

हमें तो सभीअब रिश्तेदार घर भैया सभीभूल गए हैं । अच्छा बुला लाओ। नौकर बाहर जाता है और लड़के को अपने साथ लिवाकर आता है। नाती अनुज को देखते ही बाबा कैप्टन बलबीर सिंह उठ कर बैठ जाते हैं और कहते हैं आहो मेरा नाती बहुत दिनों के बादआया है । कितना बड़ा हो गया है। दादी रामकली भी उठ कर बैठ जाती है ।नाती का हाथ पकड़कर गले लगा लेती है ।

नाती दादा दादी के पैर छूता है और बाबा के पास बैठ जाता है ।बाबा सिर से लेकर पीठ पर हाथ फेरते हैं और कहते हैं बेटा इतने दिन तक क्यों नहीं आए? नाती अनुज उठकर बैग से मिठाई का डब्बा निकालता है और दादा-दादी के सामने करते हुए कहता है। पहले मुंह मीठा कीजिए फिर बताऊंगा।

अपने हाथ से दादा दादी के मुंह में बर्फी का टुकड़ा रखकर कहता है। बाबा दादी आपकी दुआओं से मैं आईएस की परीक्षा में दसवें नंबर पर आ गया हूं । अब मेरी पोस्टिंग ट्रेनिंग करने के लिए किसी जिले में होगी। अनुज की बात सुनते ही दादा दादी खुशी से आत्म विभोर हो हो जाते हैं और बार-बार नाती के सिर पीठ पर हाथ फेर कर कर छाती गले से लगा कर अपनी प्रसन्नता प्रकट करने लगते हैं।

कुछ देर के बाद नाती अनुज बोला- बाबा दूसरी खुशी एक और है। मै गांव के मास्टर साहब आप के दोस्त ठाकुर बलवंत सिंह की बेटी से शादी करने जा रहा हूं। पिताजी मेरी शादी मिल मालिक ठाकुर देवेंद्र सिंह की पाश्चात्य सभ्यता मे पली बिटिया से भारी दहेज के लालच मे शादी करना चाहते हैं।

मैं उस लड़की से शादी करना चाहता हूं जो भारतीय सभ्यता सनातन संस्कृति मे पली हो और परिवार को लेकर चले ।कहने को तो दोनों लड़कियां एमए. तक पढ़ी लिखी सुंदर है। अब आप ही बताइए बाबा मै किसके साथ शादी करूं। बाबा बड़ी जोर से हंसे और बोले-जिसके साथ तू शादी करना चाहता है उसी के साथ शादी कर उसी से तू खुशी रहेगा ।

दहेज के लोभ मे मैने तेरे पापा की शादी एक बड़े घराने में कर के देख लिया है। बड़े घराने लड़कियांअहंकारी संवेनाहीन होती हैं। घर परिवार को लेकर नहीं चलती है। नाती अनुज बोला बाबा यह संस्कार मैंने जो आपसे पाए हैं ।मैं भी यही सोचता हूं इसीलिए मास्टर की बिटिया के साथ शादी करूं गा। वह मेरे साथ बीए एम ए तक साथ साथ पढी है। मै उसके स्वभाव से अच्छी तरह से परिचित हू। बाबा आप की अब मौन स्वीकृति मिल गई है ।

अब आप मेरे साथ घर चलिए और मेरी शादी कराइए ।बाबा कुछ देर मौन रहे फिर बोले- बेटे जिस घर से निकल आया हूं । वह घर अब मेरा नहीं है।अब उस घर में लौट के नहीं जा पाऊंगा ।नाती बोला -आपने अपनी गाढ़ी कमाई से यह मकान बनवाया था। मकान आपका है । बाबा बोले- नहीं बेटा जब दे चुका हूं तो उसी का है। मैं लौट के घर नहीं जाऊंगा ।

तुम खुशी से शादी करो मेराआशीर्वाद है। नाती उठा बैग से 10 पैकेट मिठाई के निकालकर वृद्ध आश्रम में सब को बांटे ।फिर दादा दादी के पैर छूकर फिर आऊंगा कह कर निराश हो कर चुपचाप चला गया । कुछ महीनों के बाद दादा दादी पार्क में बैठे हुए गरम गरम धूप का लुफ्त ले रहे थे। तभी घूंघट काढे एक नई नवेली दुल्हन ने आकर दोनों बुजुर्गों को पैर छुए और घुंघट की ओट से बोली -माता जी पिताजी मुझे आशीर्वाद दीजिए ।

मैं तुम्हारी बहू हूं ।ठाकुर साहब बोले बेटी में तुमको पहचान नहीं पाया । तुम कौन हो? दुल्हन ने घूंघट उठाया और बोली -आपके गांवके मास्टर की बेटी और आपकी बहू हूं। दादा दादी ने गौर से देखा और फिर बोले- बेटी में पहचान गया हूं। तुम मास्टर साहब की बेटी हो । मैं अपनी बहू को आशीर्वाद क्यों नहीं दूंगा? मेरा नाती कहां है। क्या तुम अकेली आई हो ?

बहू ने जवाब दिया नहीं पिताजी वह आपको ले जाने के लिए वृद्ध आश्रम के कार्यालय में कानूनी कार्यवाही कर रहे हैं । ठाकुर साहब बोले - बेटा मैंने पहले ही उसे समझा दिया था बता दिया था कि जिस घर से मैं चला आया हूं । उस घर में लौट के नहीं जाऊंगा। बहू बोली -मैं उस घर में आपको नहीं ले जाऊंगी। उनकी पोस्टिंग मेरठ में हो गई है। एक सरकारी क्वार्टर मिल गया है । उसी में आपको ले जाऊंगी ।

अब आपको वृद्धाश्रम में नहीं रहने दूंगी । आप की सेवा करके आशीर्वाद लेना चाहती हूं। बहू की बातें सुनकर सास ससुर के आंखों में आंसू भर आए । तभी नाती वृद्धा आश्रम सेकानूनी कागज ले करा गया और आकर बोला- बहू के कहने पर अब आपको नए घर चलना ही पड़ेगा। बहू ने सास ससुर के हाथ पकड़े और कहा- पिताजी चलिए मुझे सेवा का मौका दीजिए ।

मेजर साहब ने बहू के आंखों में झांक कर देखा श्रद्धा सेवा भाव को देखकर बोले- अब चलना ही पड़ेगा ।वृद्ध आश्रम के सभी जनों से हाथ जोड़कर कहा -अब बहू नाती लेने आ गए हैं ।इनके साथ जाना ही पड़ेगा। ठाकुर साहब और उनकी पत्नी जीप पर बैठकर खुशी खुशी नाती के संग मेरठ को चलदी।

मेरठ सरकारी क्वार्टर पर पहुंचने पर पहले से ही तैयारी किए हुए कर्मचारियों ने नाती बहू के साथ आरती उतार कर उन्हें क्वार्टर के अंदर ले गए। दो पलंग पहले से ही पडे थे ।उन पर दादा दादी को बिठा दिया गया। सभी कर्मचारियों ने दादा दादी के पैर छुए । दादा-दादी इस आवभगत से बड़े खुश हुए।

 कैप्टन अपनी पत्नी से बोले देखा तुमने पश्चात सभ्यता और भारतीय सभ्यता की बहू में कितना अंतर होता है पहले बहू जब आई थी तो पश्चात सभ्यता की थी यह बहू भारतीय सभ्यता की है। कितना विशाल हृदय रखती है ।फिर कप्तान साहब और उनकी पत्नी ने नाती बहू को हृदय से आशीर्वाद दिया।

 बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी