कहानी - अहंकार का पयश्चित

Dec 17, 2024 - 08:07
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कहानी -   अहंकार का पयश्चित
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कहानी - अहंकार का पयश्चित

 इटावा जिला के किशनपुर गांव में70 वर्षीय बृजनंदन सक्सेना के ढलती उम्र में 2 पुत्र पैदा हुए थे ।एक पुत्र का नाम राजकिशोर था। दूसरे पुत्र का नाम रामकिशोर था। बड़े पुत्र 25 वर्षीय राजकिशोर पिताजी के रसूख से कलेक्ट्रेट में क्लर्क की नौकरी पा गए थे और 4 वर्ष नौकरी करने के बाद सीनियंर होने के कारण परगना अधिकारी के पेशकार हो गए थे । पेशकार होने के कारण अच्छी कमाई हो रही थी । छोटे पुत्र रामकिशोर ने बीए करने के बाद एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक हो गए थे । वृद्ध बृजनंदन ने 10 बीघा जमीन दोनों पुत्र में4 - 4बीघा करके बाट दी थी और 2 बीघा खेती अपने पास रख ली थी। बड़ा लड़का राजकिशोर शहर में नौकरी करने के कारण पत्नी दो बच्चों के साथ रहा था ।

परिवार से कोई वास्ता न रख कर मौज की जिंदगी जी रहा था । छोटा लड़का राम किशोर एक पुत्री शकुंतला 10 वर्ष एक पुत्र वीरेंद्र 8 वर्ष पत्नी रामकली तथा अपने माता पिता के साथ छोटी सी नौकरी 6 बीघा खेती में गुजर बसर कर रहा था ।छोटा लड़का माता-पिता की दवाई तथा बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा खर्चा होने के कारण परेशान रहा करता था । लेकिन अपने परेशानी किसी से कुछ नहीं कहता था । पिताजी के मना करने के बाद भी बड़ा लड़का राजकिशोर अपनी 4 बीघा खेती बटाई पर उठाए हुए था । खेती की उपज का पैसा बड़ा लड़का पिता को नहीं देता था और छोटे भाई रामकिशोर आर्थिक दशा खराब होने के बाद भी उसकी कोई सहायता नहीं करता था । इससे पिता बड़े लड़के से नाराज रहा करते थे। अपनी अच्छी कमाई के कारण बड़ा लड़का किसी की परवाह नहीं करता था ।

लाल बृज नंदन के दोनो लड़के आपस में कोई संबंध न रखकर अपने अपने परिवार को पाल रहे थे । गांव में रह रहे छोटे लड़का रामकिशोर आर्थिक दशा खराब होने के बाद भी रिश्तेदार परिवार से अपने अच्छे संबंध रख रहाथा । जबकि बड़ा लड़का अच्छी माली हालत होने के बाद भी किसी रिश्तेदार से कोई संबंध नहीं रखता था। कहते हैं ईश्वर भी अच्छे आदमी की परीक्षा लेने के लिए दुख पर दुख देता है । छोटा पुत्र राम किशोर जब पिताजी की दवाई लेकर अपनी मोटरसाइकिल से बाजार से वापस घर आ रहा था। तो पीछे से आ रही एक मेटाडोर ने उसकी मोटरसाइकिल में टक्कर मार दी। जिस से गिरकर वह गंभीर रूप से घायल हो गया। जब गांव वालों तथा परिवार के लोगों पता चला तो गंभीर घायल राम किशोर को शहर के एक अस्पताल में ले गए और अस्पताल में भर्ती करा दिया गया ।जब राम किशोर का ऑपरेशन होने जा रहा था तो राम किशोर की 10 वर्षीय पुत्री शकुंतला ने अपने मोबाइल से ताऊ राज किशोर से कहा- पिताजी एक्सीडेंट हो गया है ।

बहुत बुरी तरह से घायल हो गए हैं । आप अस्पताल आ जाइए । हम लोग काफी परेशान हैं ।उधर से ताऊ ने मोबाइल से कहा- मैं क्या करूं? मैं अपनी नौकरी करूं कि उनको देखूं। तेज गतिसे मोटरसाइकिल शराब पीकर चलाई होगी।तभी लड़की ने इधर मोबाइल से कहा- नहीं ताऊजी। पिताजी कभी शराब नहीं पीते हैं । बाबा की दवाई लेने गए थे । लौट रहे थे तो पीछे से मेटाडोर ने टक्कर मार दी थी। ताऊ जी डॉक्टर साहब कहते हैं। पिताजी का पैर को काटकर ही उन्हें बचाया जा सकता है । ताऊ जी हम लोग बहुत घबरा रहे हैं । आप फौरन आ जाइए । हम लोग बहुत परेशान हैं। घबरा रहे । उधर से ताऊ जी ने रूखा सा जवाब देकर कहा- मैं नहीं आ पाऊंगा। मोबाइल को काट दिया । राम किशोर की पत्नी ने गांव से आए हुए प्रधान जी से कहा- प्रधान जी मेरी 4 बीघा खेती को बिकवा दीजिए । गांव से दो लाख मंगवा लीजिए । मैं खेती का बैनामा कर दूंगी। प्रधान जी बोले- बहू तुम घबराओ मत। सुबह तक रुपया आ जाएगा और डॉक्टर को दे दिया जाएगा। गांव के लोग आज भी एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहते हैं ।

तुम्हारे जेठ जी को शहर की हवा लग गई है । इसलिए उन्हें अपने मतलब से मतलब रहता है । जब मैं तुम्हारे पति को लेकर आया था तो मैंने पहले ही गांव के लोगों से कह दिया था । वो रुपया लेकर आ रहे है । सुबह का सूर्य लालमा बिखेरता हुआ निकल रहा था । उधर राम किशोर के बुजुर्ग पिता गांव के बलदेव सिंह के साथ दो लाख रुपया लेकर आ गए। डॉक्टर को रुपया दिया गया और राम किशोर का ऑपरेशन किया गया। रुपया खर्च करने के बाद भी रामकिशोर की जान तो बच गई । लेकिन उनका एक पैर काट दिया गया ।अस्पताल में 15 दिन तक रामकिशोर का इलाज चला । लेकिन रामकिशोर के बड़े भाई राज किशोर भाई को देखने को नहीं आए और ना छोटे भाई का कोई हाल चाल लिया। गांव के लोग 15 दिन तक अस्पताल में रहे और जब राम किशोर को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई तभी उनको लेकर सब गांव लौटे। रामकिशोर की पत्नी ने अपने हिस्से की 4 बीघा खेती बैच दी ।लेकिन पिताजी की 2 बीघा खेती को नहीं बेचा। राम किशोर पिता बराबर कह रहे थे कि यह मेरी भी खेती बेच दो।

 लेकिन बहू ने ऐसा नहीं किया। एक पैर कटने के बाद जब रामकिशोर जब गांव में आए तो पूरा गांव उन्हें देखने के लिए आया और रामकिशोर के परिवार को हर प्रकार की सांत्वना दी ।गांव वालों के कहने पर रामकिशोर स्कूल से नहीं निकाला गया और उन्हें स्कूल मे लंगड़े होने पर भी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए रखा गया ।राम किशोर की पत्नी एक पड़ोस में रहने वाले 80 वर्षीय बुजुर्ग सत्यदेव और उनकी 75 वर्षीय पत्नी जिनके पास पहले भी आया जाया करती थी वहां काम पर लग गई ।अब राम किशोर की पत्नी ने बुजुर्ग सत्यदेव की नौकरानीको हटाकर उनके घर का सब काम खुद संभाल लिया। बुजुर्ग सत्यदेव तथा उनकी पत्नी की सेवा करना, घर का खाना बनाना, बर्तन साफ करना हर प्रकार का काम कर नौकरनी की तरह से उनकै घर का काम करने लगी। बुजुर्ग सत्यदेव रामकिशोर पत्नी की सेवा को देखकर आर्थिक मदद भी करने लगे । राम किशोर की लड़की ट्यूशन कर के अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाने लगी ।राम किशोर का लड़का भी अपनी पढ़ाई करने के बाद बाबाकी2 बीघा खेती की देख रेख करने लगा ।इस प्रकार राम कुमार के परिवार का खर्चा चलने लगा ।

कहते हैं दुख के बाद सुख भी आता है। राम किशोर की बड़ी लड़की शहर में जाकर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करके एमए. किया ।आईएएस के कंपटीशन में बैठ गई । भाग्य चक्र ने सहारा दिया और वह आईएएस कंपटीशन मैं दसवा नंबर पा गई । आई एस की ट्रेनिंग करने के लिए उसे उसी शहर में एसडीएम की पोस्टिंग दी गई जहां उनके ताऊजी कलेक्ट्रेट पर नौकरी कर रहे थे। शकुंतला के ज्वाइन करने के 10 दिन पहले ही राजकिशोर को रिश्वत लेने के जुर्म में निलंबित हो चुके थे और जेल में बंद थे । राजकिशोर की पत्नी ने गांव में आकर अपने ससुर बृजनंदन तथा अपने देवर रामकिशोर से अपने पति राजकिशोर को जेल जाने की पूरी बात बताई। ससुर ने तो रूखा जवाब दे दिया ।जब राम किशोर का एक्सीडेंट हुआ था और उनकी बेटी ने तुम्हारे पति देव को सब कुछ बताया था ।वह देखने तक अस्पताल में नहीं आए थे ।ऐसे आदमी कि मैं क्या मदद कर सकता हूं ?जैसा किया है उसका फल भोगे गे। मैं किस मुंह से छोटे लड़के से तुम्हारी मदद के लिए कहूं ।तुम्हें उस समय सोचना चाहिए था। लेकिन तुम लोगों ने नहीं सोचा। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता हूं।

 जब राजकिशोर की पत्नी निराश होकर शहर को जाने वाली थी ।तभी लंगड़ा देवर राम किशोर स्कूल से आ गया । जब पिताजी के द्वारा उसने यह सब समाचार सुना तो पिताजी से बोला- भाभी को निराश मत करो ।बुराई का बदला बुराई से देने से भाई भाई मैं और वैमनस्यता बढ़ेगी । परिवार की टूटन बचाने के लिए मैं बड़े भाई की मदद करूंगा । बृजनंदन ने बड़ी बहू से कहा- देखा तुमने । तुम्हारे देवर में कितनी बड़ी इंसानियत है और तुम्हारे पति और तुममे कितनी बड़ी हैवानियत थी। तुम ने जान कर भी पति को नहीं समझाया था। तुम चाहती तो पति को समझा कर भेज सकती थी ।रोती भाभी के आंसू देख कर देवर राम किशोर ने भाभी से कहा- घबराओ नहीं सब ठीक-ठाक हो जाएगा। कल मैं शहर चलूंगा। आजकल बिटिया शकुंतला उसी शहर में एसडीएम है। मैं उससे मदद करने को कहूंगा ।वह निश्चित मदद करेगी । दूसरे दिन गांव के प्रधान को लेकर देवर राम किशोर भाभी के साथ शहर पहुंचा । रामकिशोर अपनी बेटी शकुंतला के पास जाकर उसके ताऊ राजकिशोर को रिश्वत के मामले में पकड़े जाने तथा जेल में बंद होने की बात बताई ।तो शकुंतला ताई की ओर देखते हुए बड़ी जोर से मुस्कुराई और बोली -ताऊ जी को जब मैंने पिताजी के एक्सीडेंट की बात बताई थी। तो उन्होंने बड़ा रूखा जवाब दिया था । पिताजी को देखने तक नहीं आए थे। क्या मैं इन सब बातों को भूल जाओगी? लंगड़े बाप रामकिशोर ने अपनी बेटी को समझाया ।

तुम्हारे ताऊ जी ने जो किया वो उसका फल भोग रहे । तुम्हें अब उनकी मदद करना चाहिए। आखिर में वह मेरा बड़ा भाई है ।मुझे भाई का फर्ज निभाना है। शकुंतला गंभीर होकर सोचते हुए बोली-- पिताजी मै मदद करूंगी । उन्होंने जो गलत काम किया है उसकी कुछ दिन सजा भोगने पड़ेगी। मुझे एक-दो दिन में सरकारी क्वार्टर मिल जाएगा ।ताई और सभी को उसी क्वार्टर में ले आऊंगी ।ताई जी इस समय किराए के मकान में रह रही हैं ।इसीलिए उन्हें अपने क्वाटर पर लाऊंगी। सभी प्रकार का ताई जी का खर्चा उठाऊंगी‌। आप निश्चिंत रहिए मैं हर तरह से ताई की मदद करूंगी। दूसरे दिन शकुंतला पिताजी के साथ जेल में ताऊ जी को देखने पहुंची। ताऊ को एसडीएम शकुंतला ने हर तरह से सांत्वना दी और ताऊ को बताया आप परेशान नहीं हो मैं ताऊ ताई को अपने पास रखूंगी उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दूंगी। शर्मसार ताऊ ने शकुंतला के पैर छूने के जैसे ही हाथ बढ़ाएं ।शकुंतला ने हाथ पकड़ लिए और बोली ताऊ जी आप घबराइए नहीं मैं जो कर सकती हूं कानून के अनुसार करूंगी। ताऊ से मिलने के बाद शकुंतला अपने पिताजी के साथ ताई के घर पर पहुंची और सभी को सांत्वना दी ‌।्चार-पांच दिन के बाद शकुंतला को सरकारी क्वार्टर मिल गया ।

शकुंतला ताई जी को अपने क्वार्टर पर ले आई। शकुंतला के पिता यह सब देखकर बहुत खुश हुए और गांव को लौट गए। 4 माह जेल में रहने के बाद शकुंतला के ताऊजी जमानत पर जेल से छूट गए ।शकुंतला के पास आकर बोले- बेटी तुमने जो कुछ किया है। मैं उसको अब कभी जिंदगी भर नहीं भूलूंगा ।मैं अपने छोटे भाई के प्रति निष्ठुर रहा। लेकिन मेरे छोटे भाई ने मेरे साथ भाई का फर्ज निभाया है। मैं उसके एहसान को अब जिंदगी भर नहीं भूलूंगा। अब मैं जान गया हूं भाई भाई होता है। वक्त पर वही काम आता है। मैं अपनी करनी पर प्रायश्चित कर रहा हूं। बेटी मुझे क्षमा कर देना। कल मैं बच्चों के साथ गांव जा रहा हूं और भाई के साथ मिलकर रहूंगा ।तुमने टूटे हुए परिवार को जोड़ दिया है। माता पिता की सेवा करके अपने पाप का प्रायश्चित करूंगा ।बेटी तुम देवी हो अपने चरणों छुआ कर मुझे माफ कर देना ।शकुंतला बोली ताऊ जी आप दुखी नहीं हो मेरे छोटे को मेरे पास छोड़ देना। मैं उसे यहां पढ़ाऊगी। अब आप गांव में पहुंच जाएंगे ।अब घर का सभी काम संभाल लेंगे । गांव से मेरे छोटे भाई को भी मेरे पास भेज देना। जिससे उसे भी पढ़ा लिखा कर एक बार इंसान बना सकूं।

जब मेरे दोनों भाई पढ़ लिखकर बड़े अधिकारी बनेगे। तो परिवार की खुशहाली देखकर मैं गौरवान्वित होगी। परिवार की एकता से ही देश की एकता बनेगी । पश्चात सभ्यता में पडकर अपने भारतीय संस्कृति एकता को भूल रहे हैं।पहले परिवार संगठित रहते थे तो ताकतवर होते थे ।शकुंतला के ताऊ जी बोले ््बेटी तुम ठीक कहती हो जो परिवार संगठित होता है ।वहीं परिवार मजबूत होता है संगठित परिवार खुशहाल रहता है।संगठित परिवारों में ही खुशहाली होती है। संगठित परिवार से ही देश की एकता मजबूत होती है ।देश की उन्नति होती है। मैं अपने अहका प्रायश्चित करने के लिए गांव जा रहा हूं। छोटेभई तथा माता-पिता के साथ रहकर अपने अहंकार का पश्चाताप करूंगा। अगले दिन राजकिशोर अपने पुत्र को शकुंतला के पास छोड़कर पत्नी के साथ गांव चले गए। गांव में पहुंचकर दोनों भाई संगठित होकर साथ-साथ रहने लगे । राजकिशोर अपने अहंकार का प्रायश्चित करने के लिए संगठित परिवार में रहकर माता-पिता की सेवा करना तथा भाई के कार्यों में सहयोग करना अपना धर्म मानता रहा। 

 बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी