शादी के बाद महिलाओं के लिए करियर का चुनाव
 
                                शादी के बाद महिलाओं के लिए करियर का चुनाव
विजय गर्ग
शादी के बाद एक महिला के लिए प्रोफेशन चुनना एक अहम फैसला होता है, जो उसके जीवन में काफी बदलाव ला सकता है। शिक्षित और कम शिक्षित दोनों महिलाओं के लिए, यह विकल्प व्यक्तिगत कौशल, झुकाव और जीवन की स्थिति के आधार पर किया जाना चाहिए। हालाँकि, कुछ पेशे दोनों प्रकार की महिलाओं के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। इस लेख में हम दोनों प्रकार की महिलाओं के लिए कुछ उपयुक्त व्यवसायों पर चर्चा करेंगे। शिक्षित महिला के लिए व्यवसाय: शिक्षक - शिक्षक का व्यवसायशिक्षित महिलाओं के लिए एक सम्मानजनक एवं उपयोगी विकल्प।
इस कार्य में महिलाओं को स्कूलों, कॉलेजों या विश्वविद्यालयों में पढ़ाने का अवसर मिलता है, जिससे स्थिर रोजगार और सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है। शिक्षक के रूप में महिलाएँ छात्रों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, उन्हें ज्ञान का मार्ग दिखाती हैं और उन्हें सफलता की मंजिल तक पहुँचने में मदद करती हैं, जिससे शिक्षकों को छात्रों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की संतुष्टि मिलती है। एक शिक्षक का शेड्यूल अधिकतर निश्चित होता है। जो परिवार के साथ हैखर्च करना सुविधाजनक है. छुट्टियों के प्रावधान के कारण पारिवारिक जीवन और व्यक्तिगत हितों को आगे बढ़ाने का अवसर मिलता है।
इस प्रकार, शिक्षित महिलाओं के लिए शिक्षक का पेशा एक उचित और समझदार विकल्प है, जो न केवल आर्थिक स्थिति में सुधार करता है बल्कि समाज में सम्मान और सम्मान भी देता है। डॉक्टर - मेडिकल पेशा साक्षर महिलाओं के लिए भी उपयुक्त है, खासकर यदि वह मेडिकल क्षेत्र में रुचि रखती हो। डॉक्टर बनने के लिए बहुत मेहनत और पढ़ाई करनी पड़ती है, लेकिन यह एक बहुत ही प्रतिष्ठित और सम्मानित पेशा है। औरतस्त्री रोग, बाल रोग और अन्य क्षेत्रों के लिए पाया जा सकता है। इंजीनियर - शिक्षित महिलाओं के लिए इंजीनियरिंग भी एक अच्छा विकल्प है।
इंजीनियरिंग के कई क्षेत्र हैं, जैसे सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर साइंस आदि। महिलाओं को इन क्षेत्रों में करियर के बेहतरीन अवसर मिल सकते हैं। वकील- शिक्षित महिलाओं के लिए भी वकील बनने के बहुत अच्छे अवसर हैं। कानून और न्याय के क्षेत्र में महिलाएं वकील या जज भी बन सकती हैं। यह क्षेत्र नैतिकता और सच्चाई के लिए जाना जाता है, जिससे समाज में मान-सम्मान मिलता है. एमबीए प्रोफेशन - एमबीए करने के बाद महिलाएं बिजनेस मैनेजमेंट, फाइनेंस, मार्केटिंग आदि में काम कर सकती हैं। व्यवसाय के क्षेत्र में उच्च पदों तक पहुंचने के लिए यह एक अच्छा पेशा है। कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई का पेशा - कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई का काम एक अच्छा विकल्प है।
वे यह काम घर से ही कर सकते हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में योगदान दे सकते हैं। गृह उद्योग - गृह उद्योग, जैसे कागज के पैकेट, खिलौने बनाना, अचार बनाना, उपकरण बनाना आदि कमशिक्षा महिलाओं को बेहतर अवसर प्रदान कर सकती है। वे यह काम घर बैठे भी कर सकते हैं. ब्यूटीशियन- कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर का काम भी एक अच्छा विकल्प है। सौंदर्य सेवा हमेशा मांग में रहती है, जो इन महिलाओं के लिए आय का एक अच्छा स्रोत हो सकती है। कुंच सेवा - शादी के बाद कम पढ़ी-लिखी महिलाएं कुंच सेवा चलाकर अपने घर को आय का जरिया बना सकती हैं। बच्चों की देखभाल के लिए यह एक अच्छा पेशा है।
फील्ड वर्क - जैसे खेती, डेयरी, पोल्ट्री फार्म आदि में काम करना कम पढ़ी-लिखी महिलाएंआपको आय का कोई स्रोत मिल सकता है। ये नौकरियां उनके जीवन को बेहतर बना सकती हैं और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बना सकती हैं। शादी के बाद पेशा चुनते समय महिलाओं को अपने झुकाव, कौशल और जीवन की स्थिति पर विचार करना चाहिए। कुछ पेशे जैसे शिक्षक, डॉक्टर, सिलाई, कढ़ाई, सौंदर्य सेवा आदि शिक्षित और कम शिक्षित महिलाओं दोनों के लिए अच्छे विकल्प हो सकते हैं। प्रत्येक महिला को अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों और वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सही पेशे का चयन करना चाहिए।
इस लेख में दिया गया हैपिछले व्यवसायों के ज्ञान के साथ, हमने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की है कि हर महिला अपने लिए सही और सफल पेशा चुन सके। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट 2( दोस्ती के के रंग विजय गर्ग दोस्त का कोई तय मतलब नहीं होता है और अगर मतलब होता तो दोस्ती होती ही नहीं। दोस्ती इस संसार का ऐसा नाता है जो किसी भी औपचारिकता का मोहताज नहीं है, किसी प्रकार के बंधन का पर्याय नहीं है। अच्छे दोस्त होना मोक्ष पाने के बराबर है। रिश्ते-नाते मुसीबत में साथ तो आते तो हैं, लेकिन उनमें किंतु-परंतु बहुत होते हैं। वहीं दोस्ती सारी किंतु-परंतु से ऊपर होती है।
जो कोई आगे-पीछे नहीं सोचता, बस खुशी हो या गम, बगैर बुलाए, बगैर किसी तामझाम के जो आ जाए, वही दोस्त और ईश्वर होते हैं । ऐसा कहते हैं कि दोस्ती हृदय से हृदय का बंधन होता है और सच्चा दोस्त परेशानी आने से पहले ही मौजूद हो जाता है । कुछ लोग अपने दोस्ताना मिजाज के लिए ही बने होते हैं । मित्रता का विज्ञान ही दिल से चलता है, जहां गुणा- भाग, घटाव का स्थान नहीं होता है, सिर्फ जोड़ होता है । इतना ही गणित आता है दोस्तों को । वे एक और एक ग्यारह करना जानते है, दो और दो पांच तो कभी आठ कर देते हैं, पता ही नहीं चलता । रसायन भी इतना ही जानते है कि जो पदार्थ घुलनशील हैं, वे ही दोस्तों को याद रहते हैं। दोस्त नमक की तरह होते हैं । न हों तो खाने का स्वाद ही नहीं रहता है । उनका अर्थशास्त्र अलग ही होता है और कहता है, 'तू रख अभी, जब तेरे पास आएगा तब दे देना ।' दोस्त सिर्फ आवरण को प्रभावित नहीं करते, वे अंतरतम तल तक जाकर वह सब कुछ जानते हैं जो शायद परिवार के लोग भी नहीं जानते ।
उन्हें तुरंत पता चल जाता है कि दोस्त की इस समय जरूरतें क्या हैं । ऐसा अनुसंधान कहते हैं कि अगर मन में अवसाद है तो वह दोस्तों की संख्या पर निर्भर करता है । 'प्रोसीडिंग्स आफ रायल सोसायटी' जर्नल में प्रकाशित शोध दोस्ती के बारे में नई बात सामने रखता है। शोध में ऐसे दो हजार विद्यार्थियों को शामिल किया गया, जिनमें अवसाद के लक्षण दिखे । सामने आया कि जिन विद्यार्थियों के पास दोस्तों की संख्या बड़ी थी, उनमें अवसाद के लक्षण घटे । इनमें दोगुना तेजी से सुधार की संभावना देखी गई । अमेरिका में हुई एक और शोध के मुताबिक, अकेलापन अवसाद बढ़ाने के साथ सेहत को भी प्रभावित करता है । दरअसल, दोस्तों का दायरा हमारी उम्र बढ़ाता है और हमें खुश भी रखता है ।
दोस्ती हमेशा प्रेरणा देती है और हमें एकाकीपन से परे धकेलती है। जहां मौन हो वहां अगर दोस्त हो तो भी वह उस मौन को पढ़ लेता है । वे उन भावनाओं, अपनापन, खुशी, गम सबको पढ़ लेते हैं और वैसे ही सहयोग देने लगते हैं। बचपन के दोस्त तो ऐसे होते जो हमारी रग-रग से वाकिफ होते हैं और हमें चिढ़ाए बगैर नहीं मानते । ब्रिटिश मानव विज्ञानी और शोधकर्ता राबिन डनबार की शोध कहती है कि एक इंसान डेढ़ सौ से अधिक दोस्तों से दोस्ती नहीं निभा सकता। इनमें से इंसान के दिल के करीब कुछ ही दोस्त होते हैं। सबसे अच्छे दोस्त कितने होते हैं, इस पर राबिन का कहना है कि एक इंसान भले ही डेढ़ सौ दोस्तों के दायरे को निबाह सकता है, लेकिन मात्र पांच दोस्त ही ऐसे होते हैं, जिनसे वह अपनी हर बात साझा कर सकता है।
जर्नल 'साइकोलाजिकल साइंस' में प्रकाशित शोध के मुताबिक, जो लड़के बचपन में अपने दोस्तों के साथ ज्यादा वक्त बिताते हैं, जब वे तीस वर्ष के होते हैं तो उनका रक्तचाप और 'बाडी मास इंडेक्स' कम रहता है। अमेरिका की टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के जेनी कंडिफ का कहना है, 'शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि शुरुआती जीवन का वयस्क होने पर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है । बचपन के हमारे दोस्त बड़े होने पर भी हमारी सेहत को फायदा पहुंचाते हैं।' जीवन में कुछ रिश्ते हमें ऊपर वाला ही बनाकर देता है, लेकिन दोस्ती का रिश्ता हम नीचे आकर स्वयं चुनते हैं। कई शोध में यह सिद्ध भी हो चुका है कि अकेले रहने वाले लोगों के शरीर में कार्टिसोल नाम का तनाव हार्मोन तेजी से बनता है, जिसकी वजह से उन्हें तनाव से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं।
वहीं जिन लोगों के पास दोस्त होते हैं, जो ज्यादातर समय दोस्तों के साथ बिताते हैं, उनके तनाव हार्मोन कम हो जाते हैं । वे न सिर्फ बुरे वक्त में काम आते हैं, बल्कि हमें दिमाग से भी तेज बनाते हैं । यह सच है कि जिनके पास दोस्त हैं, वे लोग बाकी लोगों के मुकाबले दिमागी तौर पर ज्यादा जवान और तेज होते हैं। एक शोध के मुताबिक, यादों, भावनाओं और प्रेरणाओं को महसूस करने वाला दिमाग का हिस्सा स्पष्ट रूप से उम्र के साथ प्रभावित होता है। लोगों के दिमाग के इस हिस्से में सामाजिक संबंध संरक्षित रहते हैं । दरअसल, दोस्ती का एक ही नियम है कि उसका कोई नियम नहीं है। बगैर नियम के जो चले और उसमें चार चांद लगा दे वही दोस्ती का आयाम होता है। वैसे हर दोस्ती अपने आप में एक मिसाल होती है, क्योंकि कोई भी दोस्ती की तुलना दूसरी दोस्ती से नहीं की जा सकती।
हर दोस्ती में कुछ नया ही मिलेगा, कुछ अतरंगी मिलेगा। जितने रंग दोस्ती के होते हैं, उतने रंग तो शायद कुदरत ने भी नहीं बनाए विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट 3 लापरवाही की लत विजय गर्ग आज के हमारे सामान्य जीवन में सब कुछ बस यों ही चलता जा रहा है। चाहे हम घर पर हों या बाहर हों, हम सबका जीवन बदस्तूर जारी है। बात सिर्फ इतनी-सी है कि हमने बस यों ही जीवन जीने की कला सीख ली है। हमारा पूरा जीवन 'चलता है सब ' के आधार पर चल रहा है। हमारे दादा परदादा ने चाहे जैसे भी जिंदगी जी हो, चाहे अपने जीवन में कितने ही नियम- कायदे रखे हों, लेकिन हमारे जीवन में आज कोई नियम - कायदा नहीं है और हम 'चलता है सब' के आधार पर सिर्फ अपने आप को बनाए रखने की कोशिश में लगे रहते हैं ।
बस के ड्राइवर से लेकर दफ्तर के बाबू तक के बीच यह बात अंदर तक बैठ गई है कि हमें बस चलताऊ काम करना है और काम के प्रति ज्यादा गंभीरता हमें नुकसान पहुंचा सकती है। इसी तरह की प्रवृत्ति हमें अपने देश के राजनेताओं में भी नजर आती है । उनके पास भी अगर कोई व्यक्ति अपनी छोटी समस्या लेकर जाता है, तो उनका भी यही जवाब होता है कि आज सब चलता है। चाहे हम कहीं भी किसी भी चीज से जुड़े हों, हमारी प्रकृति में किसी भी काम को हल्के रूप में लेने की सोच जारी है। इसकी बहुत सारी वजहें हो सकती हैं, लेकिन एक मूल वजह यह हो सकती है कि हम सब लापरवाही के शिकार हैं और यही लापरवाही हमें मूल्य विघटन की ओर लेती जा रही है ।
मूल्य विघटन कोई मामूली बात नहीं है, फिर भी उसको सतही तौर पर लेने की हमारी एक आदत बनती जा रही है । ऐसा क्यों न हो कि हम सब बातों को ऊपरी तौर पर लेना बंद कर दें और उनकी गहराई तक पहुंचें ? समाज में अगर किसान मरता है तो कोई बात नहीं, राजनेता घोटाला करता है तो कोई बात नहीं, भाई अपने भाई को मारता है तो चलता है, गरीब और गरीब होता है तो चलता है, भ्रष्टाचार बढ़ता है तो चलता है आदि। ऐसा क्यों नहीं है कि हम सब अपनी गलती को स्वीकार करें और सही रास्ते पर चलें ? शायद ऐसा इसलिए है कि हम सभी लोग जीवन को एक यों ही चलने वाली अवस्था मानकर चलते हैं । काश ऐसा होता कि हम अपने जीवन को इतना हल्के तौर पर न लेते तो आज भारत की तस्वीर कुछ और ही होती।
यहां अपने लोगों को दोषी ठहराने का इरादा नहीं है, लेकिन क्या हमने कभी देखा कि मेहनती लोग किस तरह से छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने आप को मुसीबतों से बाहर निकाल लेते हैं ? अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? फर्क सिर्फ नजरिए का है। अगर हम चाहें तो पूरी दुनिया बदल सकते हैं। जीवन सरलता और सहजता दोनों का नाम है, लेकिन यही सहजता कभी-कभी हमें वह नहीं सोचने देती जो हमें वाकई सोचना चाहिए। अपने पूरे जीवन का आकलन करते हुए सोचना चाहिए कि जब भी हमने किसी विषय पर गंभीरता से विचार और उस पर अमल किया है तो हमने कितनी उन्नति की है। चाहे वह हमारे स्कूल बोर्ड की परीक्षा हो या फिर नौकरी से जुड़ी कोई बात, जब-जब हमने इस 'चलता है सब' को त्यागा है, तब-तब हमने सफलता और एक कदम बढ़ाया है।
सफलता केवल व्यक्तिगत सफलता को नहीं कहते, सफलता हमारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों को भी समेटने की ताकत रखती है और सफलता के पीछे कैसी सोच होनी चाहिए, ये तो आप जानते ही हैं । 'चलता है सब' के दोहरे मापदंड के साथ हम कभी भी अपनी पूर्ण सफलता का स्वाद नहीं चख सकते हैं, चाहे वह हमारा अपना जीवन हो या सार्वजनिक जीवन हो । कोशिश यह हो कि आज से और अभी से ही 'चलता है सब' के सतही जीवन को त्याग दिया जाए और अलग दौर की शुरुआत की जाए। जीवन को सकारात्मक परिवर्तन की ओर ले जाया जाए। इस तरह से हम अपने समाज को एक गंभीर चिंतन देने में सफल हो पाएंगे। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारा देश एक विशाल, लेकिन विविधता से भरा देश है। जिसकी अपनी समस्याएं हैं। ऐसे में अगर हम लोग प्रत्येक काम को अच्छे से करें और ध्यान रखें कि किसी काम में कोई लापरवाही न बरती जाए तो हम कहीं न कहीं देश को प्रगति के रास्ते पर लेकर जा सकते हैं ।
सड़क सुरक्षा का पालन करना हमें असामयिक दुर्घटनाओं से बचा सकता है, राजनेताओं पर पैनी दृष्टि रखने से वे लोग भ्रष्टाचार के रास्ते को भूल सकते हैं, नकल रोकने पर कई लोगों का भविष्य बन सकता है, सड़कों का ध्यान रखने से देश की सड़कें गड्ढा बनने से बच सकती हैं, प्रशासन को लापरवाही से बचाया जा सकता है। साथ ही हमारे व्यक्तिगत जीवन की उन्नति संभव हो सकती है । बात सिर्फ इतनी है कि चलता है किसी भी काम के प्रति हल्के नजरिए से इतर उसे गंभीरता से लिया जाए। अगर इतना भी कर लिया जाए तो आधी मुसीबत से बाहर निकलने में काफी मदद मिल सकती है।
जीवन को खूबसूरती के साथ जीना एक मूल्य होना चाहिए, बस यह याद रखा जाए कि जीवन की गंभीर बातों को गंभीरता से लेकर अपना और राष्ट्र का उत्थान करने का साहस अपने अंदर कायम रखा जाए । अगर इतना काम हमने कर लिया तो 'चलता है सब' के दृष्टिकोण को हम भुला पाएंगे और एक नए युग की ओर कदम बढ़ाने में कामयाब हो पाएंगे। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            