जनसंख्या वृद्धि में गिरावट देश के लिए खतरा या सकारात्मक बदलाव?
जनसंख्या वृद्धि में गिरावट देश के लिए खतरा या सकारात्मक बदलाव?
भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या को गरीबी और पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है। इस पर अंकुश लगाने के लिए ही सरकार ने सदी के सातवें दशक में 'हम दो, हमारे दो' का नारा देकर लोगों को परिवार नियोजन के प्रति जागरूक किया। देश में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ने और शहरीकरण की वजह से इसका असर भी दिख रहा है और जनसंख्या वृद्धि में तेजी से गिरावट आई है। कुछ समुदायों में तो कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घट कर रिप्लेसमेंट रेट 2.1 प्रतिशत से भी नीचे चली गई है। हाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इसी पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि अगर टीएफआर 2.1 प्रतिशत से नीचे जाती है तो समाज अपने आप खत्म हो जाएगा। ऐसे में उन्होंने लोगों से कम से कम तीन बच्चे पैदा करने की अपील की है। जापान में भी आशंका जताई गई है कि अगर टीएफआर नहीं बढ़ाई गई तो अगले 120 वर्ष में जापान गायब हो जाएगा। जनसंख्या वृद्धि में गिरावट क्या देश और समाज के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है, इसकी पड़ताल ही आज का अहम मुद्दा है? क्यों गिर रही है प्रजनन दर शहरीकरण और आधुनिक जीवन शैली: शिक्षा, प्रोफेशन और स्वास्थ्य सुविधाओं तक बेहतर पहुंच की वजह से महिलाएं आम तौर पर कम बच्चे पैदा करना चाहती हैं।
देर से शादी होना: बढ़ती आकांक्षाओं और करियर बनाने की प्राथमिकताओं की वजह से युवा अब देर से शादी कर रहे हैं। इसकी वजह से बच्चे पैदा करने की अवधि कम हो गई है। परिवार नियोजन और जागरुकता: परिवार नियोजन सेवाएं और गर्भनिरोधक अब आसानी से उपलब्ध हैं। इससे दंपती यह तय करने में सक्षम हैं कि उनके कितने बच्चे होने चाहिए। आर्थिक दबाव: जीवन जीने की लागत तेजी से बढ़ रही है। खास कर शहरों में। इससे एक से अधिक बच्चों का पालन- पोषण करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। कैसे होगा भारत का भविष्य? घटती जनसंख्या वृद्धि देश के सामाजिक -आर्थिक परिदृश्य को बदल देगी। बुजुर्गों की आबादी बढ़ने से उनकी देखभाल के लिए सेवाएं देने वालों की मांग बढ़ेगी। कम बच्चे होने से युवाओं को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण मुहैया कराने पर निवेश बढ़ेगा। शहरी इलाके बदलते परिदृश्य के हिसाब से खुद को आसानी से ढाल पाएंगे लेकिन उम्रदराज लोगों की अधिक आबादी के साथ ग्रामीण इलाकों में दिक्कतें बढ़ेंगी। सकारात्मक असर ज्यादा मिलेंगे संसाधन, बेहतर होगा जीवन स्तर बेहतर जीवन स्तर: परिवार में कम बच्चे होंगे तो कमाने वाले पर निर्भर सदस्य कम होंगे। इससे उनको गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की सुविधा मिलेगी और जीवन स्तर बेहतर होगा। टिकाऊ संसाधन प्रबंधन: जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार सुस्त होने से प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी, जमीन, ऊर्जा पर दबाव कम होगा।
महिला सशक्तिकरण: परिवार छोटे होने से महिलाओं को शिक्षा हासिल करने और करियर बनाने के ज्यादा मौके मिलेंगे। इससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। नकारात्मक प्रभाव आर्थिक और जनसांख्यिकी से जुड़ी चुनौतियां बढ़ेगी बुजुर्गों की आबादी: जनसंख्या वृद्धि में गिरावट जारी रहने से 2050 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी काफी अधिक हो जाएगी। इससे स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव बढ़ेगा। श्रमिकों की किल्लत: कुल जनसंख्या में काम करने योग्य आबादी की हिस्सेदारी कम होने से श्रमिकों की कमी हो जाएगी। यह आर्थिक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। इसका असर उन उद्योगों पर ज्यादा दिखेगा, जहां अधिक श्रमिकों की जरूरत होती है। नहीं मिलेगा युवा आबादी का लाभ: भारत की जनसंख्या में एक बड़ा हिस्सा युवाओं का है। अभी हमें जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ मिल रहा है। लेकिन घटती जनसंख्या वृद्धि हमें इस लाभ से दूर ले जाएगी। इन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है जापान जापान जैसे देश इन दिनों इन्हीं समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जापान की अर्थव्यवस्था में सुस्ती या ठहराव का कारण यह है कि यहां आबादी का बड़ा हिस्सा उम्रदराज लोगों का है। काम करने वालों की संख्या कम है।
धरती से गायब होने वाला पहला देश बन सकता है दक्षिण कोरिया तेज आर्थिक विकास और शहरीकरण के लिए जाना गया दक्षिण कोरिया इन दिनों अप्रत्याशित प्रजनन संकट से जूझ रहा है। दक्षिण कोरिया की जन्म दर गिर कर इस स्तर पर पहुंच चुकी है कि अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो 21वीं सदी के अंत तक देश की जनसंख्या मौजूदा स्तर की एक तिहाई रह जाएगी।
■ महाकुंभ और मकर संक्रांति का गहरा वैज्ञानिक महत्व है
विजय गर्ग महाकुंभ और मकर संक्रांति दोनों का गहरा वैज्ञानिक और खगोलीय महत्व है, जो आकाशीय पिंडों की गतिविधियों और पृथ्वी पर उनके प्रभाव में निहित है। इन घटनाओं के पीछे का वैज्ञानिक तर्क इस प्रकार है: मकर संक्रांति: वैज्ञानिक व्याख्या 1. खगोलीय घटना मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में संक्रमण का प्रतीक है, जो सूर्य की उत्तर की ओर यात्रा (उत्तरायण) का संकेत देता है। यह परिवर्तन शीतकालीन संक्रांति के बाद होता है जब उत्तरी गोलार्ध में दिन लंबे होने लगते हैं, जो गर्मी और नवीनीकरण की शुरुआत का प्रतीक है। 2. सौर विकिरण में परिवर्तन सूर्य के कर्क रेखा की ओर बढ़ने से उत्तरी गोलार्ध में सौर ऊर्जा बढ़ती है, जो जलवायु और कृषि चक्र को प्रभावित करती है। यह संक्रमण जैविक लय को प्रभावित करता है, कायाकल्प और जीवन शक्ति को प्रोत्साहित करता है। 3. विटामिन डी अवशोषण इस अवधि के दौरान, लोग पारंपरिक रूप से धूप सेंकते हैं या धूप में अधिक समय बिताते हैं, जिससे शरीर को अधिक विटामिन डी का उत्पादन करने में मदद मिलती है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक है। 4. संस्कारों का वैज्ञानिक आधार तिल और गुड़ का सेवन केवल सांस्कृतिक नहीं है; ये खाद्य पदार्थ पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं जो ठंड के महीनों के दौरान शरीर को गर्म और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद करते हैं।
महाकुंभ: वैज्ञानिक व्याख्या 1. खगोलीय संरेखण महाकुंभ तब आयोजित होता है जब सूर्य मकर राशि में, चंद्रमा मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है। माना जाता है कि ये खगोलीय संरेखण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को बढ़ाते हैं और मानव स्वास्थ्य और चेतना को प्रभावित करते हैं। 2. नदियों की शुद्धि एवं स्नान माना जाता है कि इस संरेखण के दौरान गंगा जैसी नदियों में प्राकृतिक विषहरण गुणों में वृद्धि हुई है। इस दौरान जल निकायों के पास बढ़ी हुई ओजोन और यूवी विकिरण माइक्रोबियल कमी और शुद्धिकरण में योगदान दे सकती है। 3. सामूहिक एकत्रीकरण और प्रतिरक्षा महाकुंभ में भागीदारी में सांप्रदायिक गतिविधियां और विविध वातावरण का अनुभव शामिल है, जो माइक्रोबायोम एक्सचेंज के माध्यम से प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित कर सकता है। 4. मौसमी बदलाव और स्वास्थ्य महाकुंभ का समय मौसमी बदलाव के साथ मेल खाता है जब बीमारियों की संभावना अधिक होती है। नदियों में स्नान, उपवास और अन्य अनुष्ठान विषहरण को बढ़ावा देते हैं और शरीर को परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाने में मदद करते हैं। निष्कर्ष दोनों घटनाएँ, मकर संक्रांति और महाकुंभ, महत्वपूर्ण खगोलीय गतिविधियों के साथ संरेखित होती हैं जो मौसमी परिवर्तनों, मानव शरीर विज्ञान और पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। वे प्राचीन ज्ञान को दर्शाते हैं जो खगोलीय ज्ञान को स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं के साथ एकीकृत करता है।
■ जीवन का इंद्रधनुष
अगर हम कुदरत के करिश्मे को गौर से देखें तो हैरानी होती है। हालांकि यह हैरानी हमारी समझने और खोज पाने की सीमा के कारण है। सच यह है कि सारा जगत ही इस हद तक विविधतापूर्ण है, जहां के बारे में हमें अंदाजा तक नहीं हो पाता । कुदरत से फितरत तक। संसार का कोई फूल हूबहू दूसरे फूल जैसा नहीं । नदी, पहाड़, झरना - कोई एक दूसरे जैसा नहीं है। कहीं-कहीं दिखने में समान होने का भ्रम भले हो । यानी हर कोई बेजोड़ ही है । फल मंडी में फल देखा जाए तो और भी अधिक हैरानी होती है । हर फल किसी न किसी पेड़ पर ही फलता और फूलता । मगर सब अलग-अलग रस और स्वाद के । एक ही बगीचे में एक- सीमाटी पर उगे दो अमरूद के पौधे भी जब फलदार वृक्ष बनते हैं तो उस पेड़ की शक्ल से लेकर उनके फल का जायका अलग-अलग हो सकता है। इंसान भी इसी तरह है। आज तक दुनिया मे किसी की अंगुली के निशान यानी 'फिंगर प्रिंट' दूसरे से मिलता हुआ नहीं पाया गया है । एक ही घर के एक ही माता-पिता की संतानें गुण और आदत में कितनी भिन्न होती हैं । यह भी हैरानी की ही बात है। जो इस सच को महसूस कर लेता है, वह न तो नकलची बनता है, न घिसे-पिटे रास्ते पर चलता है। वह मौलिक बनता है ।
वही सचमुच में सार्थक जीवन जी रहा है, जो अपने अनोखे होने पर यकीन करता है । ठीक इसी तरह अगर हम खुद के होने पर भरोसा करेंगे तो हमें अपनी खुशियों के लिए कभी भी किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि तब हम खुद ही खुद को खुश रख पाएंगे और अपने आप में खुशी ढूंढ़ने से पहले हम जैसे हैं, वैसे ही स्वयं को स्वीकार करें। दूसरों को देखकर खुद से उम्मीद करने से कहीं बेहतर है खुद से शिकायत कम और अपने आप पर भरोसा ज्यादा किया जाए। इससे संबंधित एक संदर्भ कथा है। एक व्यक्ति की मानसिकता का अंदाजा लगाने के लिए उससे पूछा गया कि 'विश्व में मनुष्यों के बीच बहुत तरह की असमानताएं हैं। कई तरह के भेदभाव हैं। उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?' व्यक्ति ने उत्तर दिया कि 'ऐसा करने की आवश्यकता क्यों है ? अगर हम पर्वतों को तोड़कर उन्हें समतल कर देंगे तो ऋतु चक्र प्रभावित होगा । उस इलाके के पर्यावरण पर असर होगा। कई तरह के जीव-जंतुओं का आश्रय समाप्त हो जाएगा।
अनेक तरह की वनस्पतियां खत्म हो जाएंगी। फिर नदियां कैसे निकलेंगी ? फिर मछलियां कैसे जीवित रहेंगी ? विश्व इतना विशाल और विस्तृत है कि ये असमानताएं ही उसे पूर्णता प्रदान करती हैं। हालांकि यह एक पक्ष हो सकता है कि भिन्नता और विविधिता में संसार की खूबसूरती है, लेकिन इस तर्क पर मनुष्य के समाज में असमानता या विषमता को सही नहीं ठहराया जा सकता। कुदरत की विविधता को असमानता के रूप में नहीं देखा जा सकता। विविधता जहां सौंदर्य है, वहीं असमानता अन्याय का प्रतीक । सच यह है कि कुदरत को हमेशा सरलता तथा ईमानदारी पसंद आती है। वह यही चाहती है कि हम जैसे हैं, खुद को स्वीकार करें। अपना विकास करें। किसी ने जीवन के अनुभवों से यही सब सीख कर कहा होगा कि सुनो सबकी, लेकिन करो अपने मन की । इसलिए अपनी तरफ से अपने मनपसंद क्षेत्र में काम करते हुए सौ फीसद मेहनत करनी चाहिए। इसके बाद उसका परिणाम कुदरत पर छोड़ देना चाहिए। जिस कुदरत ने अपनी इस विविधता को इस तरह सहेज रखा है, वही सबका खयाल रखती है। मेहनत से ज्यादा और समय से पहले कभी किसी को कुछ नहीं मिला है। जो भी परिपक्वता के बाद प्रकट होता है, वह शाश्वत रहता है ।
उसमें एक गरिमा होती है। महात्मा गांधी का सरोकार देश और यहां के लोगों को कहां लेकर आया। उन्होंने सत्याग्रह पर अनगिनत प्रयोग किए। वकालत को त्याग दिया। अंग्रेजों से लोहा लिया। एक शस्त्र न उठाया। मगर अंग्रेज उनसे कांपते थे। उसकी वजह थी उनकी स्थिरता और परिपक्वता । गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर कहते थे कि आप अपने कर्म करते हुए बस एक अच्छे और सच्चे इंसान बन जाओ। आगे की हर बात बहुत ही मनभावन तथा अच्छी होती जाएगी। अगर मन में कपट है तो फिर कुछ भी संतुलित नहीं रहेगा। चीजें पटरी से उतरती जाएंगी। जीवन का रंग खिलकर निखर न सकेगा । अगर व्यक्ति के मन में स्वार्थ होगा, तो उसका प्रभाव उसके सार्वजनिक आचार-व्यवहार पर पड़ेगा। हो सकता है कि कुछ समय तक वह कुछ लोगों की नजर में अच्छा या लाभकारी साबित हो, लेकिन कुछ समय बाद उसके विचार और व्यवहार जमीनी स्तर पर ऐसे प्रभाव पैदा करने लगते हैं कि उससे किसी को नुकसान भी हो सकता है । इसी वजह से धीरे-धीरे लोग उससे दूर होने लगते हैं। स्वार्थी व्यक्ति किसी के लिए न उपयोगी बन पाते हैं और न जीवन में उन्हें अच्छे अवसर मिलते हैं। सवाल है कि स्वार्थ की छिपी मंशा को कब तक छिपाया जा सकता । एक न एक दिन लोग उसे पहचानने ही लगते हैं और ऐसे लोगों से कटना शुरू कर देते हैं । स्वार्थ के परिणाम अंतिम तौर पर ऐसे ही निकलते हैं । यह भी सच है कि जगत में चीजें हमेशा बदलती हैं। जो कल था, वह आज नहीं है और जो आज है, वह कल नहीं रहेगा। मगर हम उम्मीद करें कि जीवन और जगत को देखने का हमारा नजरिया हमेशा मानवीय तथा लोक कल्याणकारी रहे। इससे हमारे आसपास के लोगों का परिदृश्य भी बदलेगा और वह बदलाव बेहतरी के लिए ही होगा ।
■ नाकामी में छिपी कामयाबी
आज के प्रतिस्पर्धात्मक दौर में ज्यादातर लोग एक काल्पनिक भय में जी रहे हैं। वे वर्तमान के सुख का उपभोग करने की अपेक्षा भविष्य को संवारने और उसमें उपजने वाली काल्पनिक चिंता के मायाजाल में उलझ रहे हैं, जबकि हमें यह तक नहीं पता कि आने वाला पल कैसा होगा । आपत्ति या विपत्ति का आना कोई निश्चित नहीं है । उसी तरह हो सकता है कि आने वाला पल बेहद अच्छा हो, लेकिन अपनी विफलता के मायावी भय में जीते हुए हम अपने वर्तमान को दांव पर लगा रहे हैं। अपनी जीवन शैली को बेहतर दिखाने के फेर में व्यर्थ ही चिंता की आग में जिए जा रहे हैं। यह दबाव समाज की अपेक्षा मन की उपज है जो वर्तमान को अशांत किए हुए है। कल क्या होगा और हमारी योजनाएं कहीं असफल न हो जाएं, बस इसी असुरक्षा के भाव में हम उलझे जा रहे हैं । क्या यह समझना सबसे महत्त्वपूर्ण काम रह गया है कि कल क्या होगा? ऐसा लगता है कि यह केवल हमारी कल्पना का हिस्सा है।
अगर हम अपने मन को शांत रख सकें और अपनी क्षमताओं पर भरोसा करें, तो जीवन अधिक सरल और सुंदर हो सकता है। हमें अपने बाल्यकाल से प्रेरणा लेते हुए जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करके देखना चाहिए। जिस तरह एक शिशु अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए बार-बार गिरता पड़ता है, ठीक उसी तरह हमें अपनी असफलताओं से घबराना छोड़कर बार-बार प्रयत्न करना चाहिए। जबकि आज की भागमभाग से भरी जिंदगी में हो इससे विपरीत रहा है । जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा सोचने का ढंग और मानसिकता बदलने लगती है और हम लगातार असफल होने के भय से कुंठित होने लगते हैं। हमारी मानसिकता आज इस दिशा में विकसित हो रही है कि हमें अपने उद्देश्य की प्राप्ति तो करनी है, लेकिन उस उद्देश्य प्राप्ति के मार्ग में मिलने वाली असफलताओं को हम स्वीकार नहीं कर पाते। जबकि असफलताएं भी उसी मार्ग का एक पड़ाव होती हैं।
सफलता की इस नवीन परिभाषा, जिसमें असफलता की गुंजाइश का अभाव हो, इसमें उलझकर आत्मविश्वास में कमी आती है। इसलिए हमें बालमन से सीखने की जरूरत है कि निरंतर प्रयास ही सफल होने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, न कि डरकर और थक हारकर बैठ जाने से उद्देश्य प्राप्ति हो सकती है । एक शिशु अपनी हर असफलता से सीखता है और बार-बार उठकर चलने का प्रयास करता रहता है, न कि गिरने के डर से हार जाता है । मानव इतिहास भी ऐसे अनेक महापुरुषों की असफलताओं से भरा पड़ा है जो बार - बार असफल होने पर अपने उद्देश्य की प्राप्ति शुमार की जंग में पराजित नहीं हुए और आखिरकार सफल होकर इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करवा गए । थामस एडिसन अनेक बार असफल होने के बावजूद बल्ब के अपने आविष्कार से दुनिया को रोशन कर गए और छोटे-से गांव का साधारण सा दिखने वाला एक बालक अपने अथक प्रयासों से भारत के मिसाइल पुरुष एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से विख्यात हुआ। इस तरह सकारात्मक दृष्टिकोण और गिरने की प्रत्येक अवस्था से कुछ सीखने की आदत को अपने जीवन शैली में कर लिया जाए, तो निश्चित ही सफलता कदम चूम सकती है। सच यह है कि असफलता हमें सिखाती है कि सफलता का सही अर्थ क्या है। कामयाबी और असफलता उद्देश्य प्राप्ति के दो स्तंभ हैं। अपने प्रयासों में नाकामयाब होना जीवन में कोशिशों को बेहतर बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। प्रयासों से भयभीत होने की अपेक्षा उन्हें जीवन में अपना गुरु मान लेना चाहिए जो हमें सीखने का अवसर तो प्रदान करते ही हैं, जीवन को धैर्यवान बनाने की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं । यह असफलता ही है जो हमें संघर्षों से भरे जीवन में हमारे प्रयासों का मूल्य बाताती है। सीखने या प्रयास करने के क्रम में मिली नाकामयाबी हमें जीवन में यह सीख देती है कि जीवन जीने के रास्ते में आने वाली कठिनाइयां जीवन की बाधा नहीं हैं, बल्कि ये एक सीढ़ी बनकर आगे बढ़ने में सहायक भी बनती हैं और इससे खुद पर विश्वास करने और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिलती है।
इसलिए असफलता को नकारात्मक रूप में न लेकर सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए, ताकि हम मुसीबत में रुकने के बजाय अपनी रणनीति को जरूरत के मुताबिक परिवर्तित कर सकें और उद्देश्य प्राप्ति के अपने मार्ग का निर्धारण कर सकें। यह भी याद रखने की जरूरत है कि सफलता उन्हीं का स्वागत करती है, जो गिरकर फिर से उठते हैं और चलते रहते हैं। विपरीत परिस्थितियों का एक आम खमियाजा यह होता है कि हम खुद को कमजोर महसूस करने लगते हैं। जबकि सच यह है कि अगर हम असफलता के सामने हार नहीं मानें तो सफलता हमारी राह देखती है। हर असफलता के साथ हम सफलता के एक कदम और करीब आ जाते हैं । यह एक स्थापित सत्य है कि हम मेहनत करेंगे तो हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन यही कठिनाइयां हमें कामयाबी की उड़ान भरने के लिए पंख देती हैं। कहा भी कहा गया है कि हर असफलता यह साबित करती है कि हमने सफलता के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया। सफलता की लोकप्रिय परिभाषा के प्रभाव में नाकामी से हार मानने के बजाय उससे कुछ सीखना चाहिए और अपने जीवन को मूल्यवान अनुभवों से समृद्ध करना चाहिए । जो अपना रास्ता खुद बनाता है वह सफलता के शीर्ष पर पहुंचता है। इसके विपरीत जो दूसरों की राह देखता है, सफलता भी दूर से उसकी ओर देखती है | विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब