गणतंत्र होने के गहरे अर्थ हैं भारत के लिए लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को जीने की अनुमति देता है

Jan 21, 2025 - 09:21
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गणतंत्र होने के गहरे अर्थ हैं भारत के लिए लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को जीने की अनुमति देता है
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गणतंत्र होने के गहरे अर्थ हैं भारत के लिए लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को जीने की अनुमति देता है

भारत कुछ दिनों के बाद अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। इसकी सारे देश में तैयारियां चल रही हैं। राजधानी दिल्ली में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। अगर कोई पूछे कि भारत के लिए गणतंत्र दिवस क्यों खास है, तो इस सवाल का उत्तर होगा गणतंत्र राष्ट्र बनने के बाद देश अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो गया है। गणतंत्र होने का भारत के लिए बहुत गहरा और महत्वपूर्ण अर्थ है। यह सिर्फ एक राजनीतिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह हमारे देश के मूल्यों, इतिहास और भविष्य की दिशा को परिभाषित करता है। गणतंत्र ने भारत को अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों को खुद तय करने का अधिकार दिया है। इसी की मार्फत देश में एक लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना की गई, जिसमें जनता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का हक मिला।

भारत में संविधान लागू होने के बाद सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार मिला। क्या यह सब सामान्य बातें हैं ? गणतंत्र देश बनने के बाद सरकार लोगों के प्रति उत्तरदायी बनी और उसे नियमित चुनावों के माध्यम से अपनी नीतियों का हिसाब देना होता है। क्या यह सब राजशाही या गोरी सरकार के वक्त संभव था... नहीं। गणतंत्र ने कानून के शासन की स्थापना की, जिसमें सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं। नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले, जैसे कि समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, आदि। ये अधिकार सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त हैं। इन अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है और कानून सभी नागरिकों को इन अधिकारों की रक्षा करता है। गणतंत्र बनने से भारत में कानून का शासन लागू हो गया। इसी के साथ देश में कानून के शासन की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। इसका मतलब है कि देश में सभी नागरिक, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति, धर्म, जाति या लिंग कुछ भी हो, कानून के समक्ष समान हैं।

कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और सभी को कानून का पालन करना होता है। गणतंत्र बनने से पहले, भारत में ब्रिटिश शासन था, जहां कानून अंग्रेजों द्वारा बनाए जाते थे और उनका उद्देश्य भारत पर अपना नियंत्रण बनाए रखना था। उस समय, भारतीयों को समान अधिकार प्राप्त नहीं थे और उन्हें अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता था। अब बात कानून के शासन की स्थापना में गणतंत्र बनने के बाद उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों की भी कर लेते हैं। भारत के संविधान ने कानून के शासन को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान ने शक्तियों को सरकार के विभिन्न अंगों (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) के बीच विभाजित किया, जिससे किसी एक अंग के पास अत्यधिक शक्ति न हो। देश में एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई, जो कानूनों की व्याख्या करती है और यह सुनिश्चित करती है कि सभी नागरिकों को न्याय मिले। न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका के हस्तक्षेप से मुक्त है।

कानून का शासन सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जैसी संस्थाओं का निर्माण किया गया, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि सरकार कानून के अनुसार काम करे। समय के साथ, कानूनों में संशोधन करने की प्रक्रिया भी स्थापित की गई, ताकि वे बदलते सामाजिक मूल्यों और जरूरतों के अनुसार अनुकूल हो सकें। यह याद रखना जरूरी है कि कानून का शासन लोकतंत्र की नींव है और यह किसी भी देश के विकास और समृद्धि के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक सुरक्षित महसूस करें, सभी नागरिकों को समान अवसर मिलें, सरकार जवाबदेह हो,भ्रष्टाचार खत्म हो और देश में शांति और स्थिरता बनी रहे। हालांकि, यह भी सच है कि भारत में कानून के शासन को पूरी तरह से लागू करने में अभी भी चुनौतियां हैं। गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को न्याय पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप भी कानून के शासन को कमजोर करते हैं। फिर भी, भारत में कानून का शासन एक आदर्श है जिसे प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। गणतंत्र बनने से भारत में कानून के शासन की नींव रखी गई। पर अभी भी कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन देश लगातार एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहा है जहां कानून सभी के लिए समान रूप से लागू हो। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें सरकार, न्यायपालिका, नागरिक समाज और सभी नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। गणतंत्र ने सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया, जिसमें समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करना शामिल है।

गणतंत्र ने भारत को अपनी आर्थिक नीतियों को खुद तय करने का अधिकार दिया, जिससे आर्थिक विकास को गति मिली। गणतंत्र ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा दिया, जिससे साक्षरता दर में वृद्धि हुई। गणतंत्र बनने के बाद भारत की आर्थिक प्रगति का रास्ता कैसे साफ हुआ, इसे समझने के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना होगा: भारत ने सोवियत संघ से प्रेरित होकर पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की। इनका उद्देश्य था देश की अर्थव्यवस्था को नियोजित तरीके से विकसित करना। इन योजनाओं में कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया। भारत ने एक मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों को महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। सार्वजनिक क्षेत्र को भारी उद्योगों और बुनियादी ढांचे के विकास की जिम्मेदारी दी गई, जबकि निजी क्षेत्र को उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं में प्रोत्साहन दिया गया। जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और भूमि को किसानों के बीच समान रूप से वितरित करने के लिए भूमि सुधार कानून लागू किए गए। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।

1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसके तहत उच्च उपज देने वाले बीजों, उर्वरकों और सिंचाई तकनीकों का उपयोग किया गया। इससे भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना। किसानों को ऋण और सब्सिडी प्रदान की गई, जिससे उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में मदद मिली। गणतंत्र होना भारत के लिए एक महान उपलब्धि है। यह एक ऐसा राजनीतिक ढांचा है जो हमें संप्रभुता, लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को जीने की अनुमति देता है। यह हमें एक मजबूत, एकजुट और समृद्ध राष्ट्र बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। हमें गणतंत्र को बनाए रखने और इसके आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए। आप कह सकते हैं कि गणतंत्र भारत हरेक नागरिक के सुख और सपनों को साकार करने को लेकर प्रतिबद्ध है। इस बारे में किसी तरह की बहस नहीं हो सकती।

 विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब