स्त्री का जीवन दो घरों की परवरिश में पलता है।

Jan 17, 2025 - 15:18
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स्त्री का जीवन दो घरों की परवरिश में पलता है।
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यह काल्पनिक रील नहीं रीयल है-- पर तबाही की है तो कहानी जैसी ही--- स्त्री का जीवन दो घरों की परवरिश में पलता है-- आज पहले घर का पतन कागज पर उतार रही हूं--

एक छोटे से गांव में बचपन की अनमोल और बड़ी बड़ी यादें आज तक जीवन पर कुछ राज करती है कुछ हैरान करती हैं कि हमने बहुत कुछ कमा लिया फिर भी उतना नहीं जिससे बचपन खुश रहता था-कहते हैं बचपन हालातों का मुहताज नहीं होता है बस माता पिता की मौजूदगी और आंचल में खेला और प्यार स्नेह से पला हो जीवन का बो हिस्सा बो लम्हे पूरे जीवन की किताब का सीर्षक बन जाता है हरा-भरा बो घर आंगन अब हमारे और भाई की सराहरते और चंचलताऔ से हंसता और खेलता था,क्यों कि दो बड़ी बहनों की शादी होकर अपने अपने घर जा चुकी थी- हम दोनों के बीच खेल तो खेल एक चीज और भी सामिल थी जिस दिन पड़वा का दिन आने बाला होता था उस दिन भाई सबसे पहले उठ कर मेरे सिर पर एक हाथ हौले से जमा देता था सोते समय इस लिए कि अब तेरी पंद्रह दिन तक पिटाई हर रोज होगी-और जब सकट का पर्व आता था जो तिल और गुड़ की बकरी या बकरा जो भी हो बना कर काटा जाता है-

उसने मुझे बहुत दिनों तक डराया कह कर कि आज सकट है लड़कियों को काट कर सटकने आएंगे उस दिन मां के साथ साथ छिपती सहमी सहमी रहती थी और दरवाजे की तरफ देखती रहती थी सकट तो नहीं आ रहे हैं, हम दोनों की सरारतो के साथ साथ कभी-कभी सबूत भी साथ होता था जैसे मुझे कटहल की सब्जी पसंद है उसने एक दिन क्या किया कि जो कांटों बाला जंगली चूहा होता है एक पोलिथिन में रख कर मुझे हाथ में पकड़ा दिया कहकर अंदर मम्मी को दे आओ इसमें कटहल है-- जैसे ही दो कदम आगे बढ़ी पीछे से कहता है कि इसमें तेरी टोफी भी रखी हैं निकाल लो जैसे ही खोला बो निकल कर भागा और मेरे चीखने की आवाज से सारा घर इकट्ठा हो गया और मेरी एक उंगली जिधर बो भागा था उधर सीधी होकर चीखती रही पर उसका पता नहीं कहां गायब हो गया क्यों कि उसे पता था पापा से आज पिटाई लगनी तय है उसकी शक्ल कटहल जैसी ही लगती है जब किसी भी आहट को महसूस करता है तो अपना आकार मुंह दवा कर अंदर गोल गोल हो जाता है-- बचपन अमीरी और गरीबी से नहीं प्यार से याद गार बन जाता है क्योंकि अमीर हो या गरीब यह बात बच्चों को नहीं माता पिता को--- जब याद आती है तो ताजा दर्द की चोटें वदन पर बेसक ओरों को नहीं दिखती है पर जिसने बो मंजर देखा हो तो उसको बो ताजा ताजा मन पर प्रहार सा करतीं है उभर आती है बो चोटें तो आज भी चीख निकल जाती है पूरा दिन हमें बेचेन कर जाता है-

जब हम दोनों बड़े होने लगे तब भाई बहन के प्यार और पवित्र रिश्ते को समझा एक रक्षा बंधन का पर्व एसा भी था कि उस दिन भाई घर पर नहीं कानपुर गया हुआ था राखी को लेकर मन तो उदास था ही पर भाई हमसे भी ज्यादा वहां परेशान हो गया--उस दिन उसने बो गाना सुना भईया मेरे छोटी बहन को न भुलाना-- और उसने अपने अधूरे कार्य को छोड़कर वहां से चल दिया देर रात उसने आकर राखी बंधवाई और आंखों में आंशू भर के मुझे सीने से लगा कर रोने लगा आज तूने मुझे बहुत रूलाया है जब तू अपने पति के घर चली जाएगी तो क्या होगा---- लेकिन बक्त को कुछ और ही मंजूर था जैसे हमारी बातें हमारे साथ खड़े होकर सुन रहा हो19081,की दीवाली आने बाली थी पर्व की खुशियां दहलीज पर दस्तक दे चुकी थी धनतेरस बाले दिन भाई बाजार के लिए गए थे करीब दोपहर का बक्त था साम होने को आई और हम सब उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे पर बो नहीं आए तो पाया उन्हें देखने गये लेकिन उनका कोई अता-पता नहीं न कोई सुराग लगा आज तक-उस हादसे का मंजर आज भी रूह कंपा देता है जिसका इकलौता पुत्र और भाई, रौशनी का पर्व दीवाली और उस घर का इकलौता चिराग ही बुझा दिया हो--पता लगा कि उनका किडनैप हो गया है, तीसरे दिन एक डिमांडिंग लेटर एक लाख का मिला कि अगर बेटा की जिंदगी चाहिए तो---दुश्मनी की हदें पार इस तरह की गई कि उनको दोस्ताने के भरोसे पर लेजा कर उसी दिन---

और एक लाख और जब कि यह किडनेप धोखे से किया गया था घर से विस्वास के साथ निकले थे और फिर---क्यों कि जब कोई इंसान पावर और प्रोपर्टी के साथ एक इमेज और इकलौता बारिश होता है तो बो इंसान घटिया लोगों की नजरों में आ जाता है आमने सामने जब कुछ नहीं हो सकता था तो विस्वास में लेकर विस्वास घात किया गया उस बक्त मेरी उम्र 18 बर्ष की थी गांव में लड़कियों शादी जल्दी कर दी जाती है रिश्तों की तलाश उनके सामने से शुरू हो गई थी-- और एक साल बाद सन 82,15 जून को हमारी शादी हुई पापा-मम्मी और हम तीनों बहनों की उस बक्त की मनोदशा क्या रही थी आज तक रूह कांप जाती है भाई की शादी दो साल पहले हो गई थी पर कोई भी बच्चा नहीं--- बो हंसता-खेलता घर एसा तबाह किया गया था कि अपने आप में बो घटना एक एतिहासिक घटना बन गई थी उस बक्त पापा मम्मी पूरी तरह टूट गये थे पर सुरक्षा की दृष्टि से बेटी की शादी भी जरूरी थी तरह तरह की अफवाहों ने जो दहशत फैला रखी थी क्योंकि दुश्मन पूरी तरह अब आजाद था कभी कभी इंसान का उपकार भी ले डूबता है कार्य अच्छा होता है किसी की मदद करना पर क्या पता होता है कि मदद लेने बाले की नजर तो पूरी तरह तबाह करने की थी कभी- हम जमींदार हुआ करते थे तब ये बाहर से जानवरों की पीठ पर सामान रख कर हमारे गांव में आए थे और उनको सम्मान के साथ पनाह बिद जमीन के दी थी पूर्वजों ने लेकिन भविष्य को क्या मंजूर है यह तो कोई नहीं जानता कि हमारे द्वारा की गई समाज सेवा हमारा ही विनाश कर देगी-- बाद में बहुत खून खराबा हुआ पर जो छति हुई उसकी भरपाई आज तक नहीं हुई मेरी शादी के बाद पापा मम्मी को अब उस घर में रहना एक पल भी दम घोंटने के एहसास---

हम तीन बहनें एक भाई था पर भाई से भी ज्यादा मुझे प्यार किया जाता था क्योंकि मैं सबसे छोटी थी--- मेरी शादी की विदाई के बाद पापा जैसे कि हमने पहले भी अपनी किसी स्टोरी में यह चर्चा की है घर जाकर अपना सिर दीवार में मार दिया था कह कर कि आज मेरा छोटा बेटा भी मुझे छोड़ कर चला गया, पापा देश के एक तेज तर्रार सिपाही जिसके हौसलों के किस्से आज भी जीवित हैं, बो उस दिन बुरी तरह टूट कर रोए थे-- और दूसरे दिन हमारे पति ने उन्हें बुला लिया था कि पापा आप हमारे पास आजाओ हम भी तो आपके बेटा हैं, जो बाप बेटी के घर का पानी नहीं पीता था बक्त ने कैसा कहर ढाया कि बेटी के घर में उनको पनाह और मोक्ष मिला---सोर्टकट--सटोरी--क्रिमाग से दूसरा चेप्टर लिखूंगी-- वैसे उनकी उनके सामने दो और भी बड़ी बेटियां थीं पर बो दोनों हमारे पास ही रहते थे हमें अपनी ससुराल और पति पर गर्व था कि उन्होंने दामाद नहीं बेटा का रोल प्ले किया-- और पापा की उम्र उस बक्त 65,की रही होगी और सन,86,मे पापा होली बाले दिन अच्छे खा से मुझसे कह रहे हैं कि बेटू आप मुझे गर्मागर्म गुजिया खिलाओ और अपनी पूजा ठीक से कर लो आज मुझे अंदर से कुछ अलग फील हो रहा है सच उन्हें सुन कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि साम को पापा हमें छोड़ कर--- उनकी अंतिम इच्छा थी कि मुझे मेरे घर पर ले जाना और घर के सामने जो जमीन है उसमें---हम उन्हें लेकर गये और उनकी इच्छा के---सब कुछ किया---इसी तरह मां सन,88,में विजय दशहरा के दूसरे दिन एकादशी के दिन--- बो बचपन का घर जिसे पापा चाचा को दे गए थे कि यह घर हमारा सेफ रहेगा तुम लोग भी हमारे--बो घर पापा के बाद उन्होंने सबसे पहले बेच दिया आज उस घर में एक पड़ोसी रहता है जब कभी किसी शादी या फंग्शन में जाना होता है तो उस मनोदशा को व्यक्त करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं होते हैं--

 उसके बाद जो तबाही उस घर और परिवार पर आई जैसे लुटेरों ने पहले से ही--- पापा जो भी जमीन छोड़ गये उसके बाद चाचा के परिवार का पूरा कब्जा आज तक चल रहा है और साथ में दुश्मनी भी दिखावे के सोपीस चेहरे के साथ--उसके बाद हमे बक्त ने इतना मौका ही नहीं दिया कि उस जमीन या घर के विषय में सोचते कुछ यह भी सोच कर कभी कभी आना जाना हो जाता है पापा की उस मोक्ष स्थली के दर्शन भी- पर हमें तो यह भी पता नहीं चला कि बाकी जमीन पर किस किस तरह से कब्जा किया गया घर के सामने एक प्राइमरी पाठशाला खुलवा दी गई बाकी जमीन पता नहीं किस तरह से अपने नाम करवाईं गई पता ही नहीं चला और हम माता पिता तुल्य चाची और चाचा के भरोसे रहे और बक्त की मार मे-- इसका फुल फायदा सन,92,में पूरी जमीन अपने नाम---कुछ समय बाद जब हमने पापा की जमीन के कागज निकलवाए तो पता चला कि यहां तो बड़ा षणियंत्र हो चुका है और बो सब हमारे खानदानी रहे प्रधान और उस समय की मौजूदा सरकार द्वारा-- और यह सब हमारे ऊपर जब बक्त की मार पड़ रही थी तब इसका कार्य चल रहा था हालात यह हो रहे थे कि कुटुम्ब रजिस्टर तक सालों साल गायब रहा है उस बक्त- पर हमने तब से यह जरूर समझ लिया कि पैसा इंसान को अंधा जरूर बना देता है इन खून के रिश्तों से अच्छे तो हमें बाहर बाले लगे जिन्होंने बक्त पर साथ दिया आज बचपन की यादें सिर्फ दिल में बसी है बो घर तो किसी और का हो गया,जिसमें हमारे परिवार की समाधी पर कोई रहता है, पर आदमी के विनाश से किसी का विनाश कब हुआ जिस जमीन पर कब्जा यह सोचकर किया गया था कि बेटियां कोई बारिश थोड़े होती है बारिश तो सिर्फ बेटा होता है आज उन्हें यह नहीं पता उनका एक बेटा आज भी उस अंधेरे पर----- --------------- दीप्ति मान है--

आज बेटियां और बेटों में कोई फर्क नहीं जो बेटा भी नहीं कर सकता बो बेटियां करती हैं आज बस एक ही बात बार बार मन में गूंजती है कि पापा शायद हमें इसी लिए अपना छोटा बेटा कहते थे तब शायद हमने भी यह नहीं सोचा था कि एक लड़की जो न पढ़ी-लिखी है न बाहर निकली मासूम सी जो मात्र डरावनी बातों से दहशत में आ जाती है पर बक्त की रजा को भला कौन समझ सकता है हमारी आज की पहचान ने बो पुरानी पहचान बिल्कुल खत्म कर दी जिसे लोग अभी ठीक से पहचानते भी नहीं है हम अपने इस कायाकल्प को हकीकत में आपके सामने पेस जल्द जल्द अब करेंगे अब तक हमने कोशिश ही नहीं की और बक्त ने मौका भी नहीं दिया बक्त आज भी हमारे परीक्षाएं ले रहा है पर अब आसान सी दिखने बाली उस लड़की का इतिहास क्या है आपको अब पढ़ने को मिलता रहेगा हमारे नये खुदाओं को जिन्होंने हमें तीसरे जन्म में स्थापित करने की कोशिश की है आज एक घर का पतन लिखा है दूसरे का इतिहास आगे आप पढ़ेंगे लेखिका-पत्रकार-दीप्ति चौहान‌।