प्रणाम
प्रणाम
जब हम किसी को प्रणाम करते हैं तो सहज ही उनके मुँह से हमारे लिए खुश रहो, सदा सुखी रहो निकलता है जो आशीर्वाद का अमृतपान हैं । प्रणाम के उत्तर में ह्रदय से निकले ये शब्द कोई साधारण शब्द नहीं हैं ।मैं तो इसमें ये कहूँगा हैं कि ये दुनिया के सबसे कीमती शब्द चमत्कारी शब्द हैं ।
मैं कितनी बार कितनो को कहता हूँ कि भगवान मेरे को सबसे प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए रखे जिससे मेरे में अहं भाव का किंचित भी विकास नहीं हो मेरे जीवन का मैं सतत विकास करता रहुँ क्योंकि प्रणाम एक आशीर्वाद का ऐसा कवच होता है जो पाने वाले की ख़ुशियों को आबाद रखता है । सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है, सारांश में हम यह कह सकते हैं कि प्रणाम अनुशासन है, शीतलता है । प्रणाम नम्रता है जो आदर सिखाता है, झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध-बाधक है जो अहंकार मिटाता है। एक समय था कि इंसान बहुत सुखी और खुशहाल था।बड़ा और भरा पुरा परिवार होने के बावजूद मन में किसी चीज़ की कमी नहीं लगती थी।बड़ों के प्रति आदर और सभी पारिवारिक सदस्यों में बहुत प्रेम था। जमाना तो बदला ही पर साथ में इंसान का सोच भी बदल गया।इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते हुये इंसान रिश्तों की मर्यादा भूल गया। वर्तमान समय को देखते हुये सामाजिक स्तर पर हम देख सकते हैं की इंसान ने भौतिक सम्पदा ख़ूब इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी भावनात्मक सोच का स्थर गिरते जा रहा है।
जो प्रेम-आदर अपने परिवार में बड़ों के प्रति पहले था वो आज कंहा है ? आज के युग में इंसान का यही सोच होते जा रहा है कि बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया ।इसलिये हम न भूलें कि प्रणाम हमारी पावन संस्कृति है जो इसमें कोई विकृति नहीं आने देता है । सभी बड़ों को मेरा सविनय सादर प्रणाम।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )