चूल्हे से चाँद तक" — चूल्हे की आँच से चाँद की कविता तक की यात्रा

Jun 28, 2025 - 14:00
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चूल्हे से चाँद तक" — चूल्हे की आँच से चाँद की कविता तक की यात्रा

समीक्षा: "चूल्हे से चाँद तक" — चूल्हे की आँच से चाँद की कविता तक की यात्रा

✍️ समीक्षक: सोनल शर्मा, देहरादून

प्रियंका सौरभ का यह काव्य संग्रह ‘चूल्हे से चाँद तक’ केवल कविता नहीं, स्त्री आत्मा की यात्रा है। यह वह आवाज़ है, जिसे सदियों से दबाया गया, पर वह फिर भी जलती रही – रोटियों के साथ, परातों के बीच, और आँसुओं में घुली स्याही के माध्यम से। इस संग्रह की कविताएं परंपरा और प्रतिरोध के बीच की वह खाई भरती हैं, जो पितृसत्ता ने पीढ़ियों से गहरी की है। इन कविताओं में स्त्री केवल ‘प्रेरणा’ नहीं है, बल्कि वह स्वयं कविता है — जिसमें भाव भी है, लय भी और आक्रोश भी।

? स्त्री की आत्मा से निकली चीख: ‘चूल्हे से चाँद तक की यात्रा’ संग्रह की शीर्षक कविता ही इस संकलन की आत्मा है। यह उस अनाम, अनदेखी स्त्री की कहानी है, जो इतिहास में दर्ज नहीं, पर हर घर की नींव रही है। कविता की आरंभिक पंक्तियाँ ही पाठक को चौंका देती हैं: “न रच सकी इतिहास में जितनी लड़ाइयाँ, उतनी लड़ी है वह — खामोश, मगर पूरी ताक़त से।” यह कविता बताती है कि स्त्री की हर दैनिक गतिविधि एक संघर्ष है — परात में गूंथा आटा, माँजे गए बर्तन, आँखों की राख — सब कुछ क्रांति के प्रतीक हैं। जब वह चूल्हे से चाँद तक पहुँचती है, तो यह केवल भौगोलिक नहीं, आत्मिक और वैचारिक उड़ान है। कविता कहती है: “कविता ने जब यह पहचाना, तब लिखी गई स्त्री की पहली मुकम्मल कहानी।”

? देशभक्ति की चुप सिसकियाँ: ‘घूंघट से गूंज तक’ यह कविता एक शहीद की मौत को केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए छाया हुआ शून्य मानती है। यह रचना वीरगाथा नहीं, भावनाओं की गठरी है, जिसमें हर सदस्य का दर्द गूंजता है: “शहीद होती है बहन की राखी, जो अब सिर्फ़ तस्वीरों में कलाई तलाशती है। शहीद होती है माँ की ममता, जो दीपावली पर दीप बन जलती है — बिना उत्तर के।” यहाँ प्रियंका ने सैनिक के परिवार के टूटते तंतुओं को ऐसा काव्यात्मक आकार दिया है, जो किसी रिपोर्ताज से अधिक विश्वसनीय और मार्मिक लगता है।

? प्रेम की पुनर्परिभाषा: ‘वो स्त्रियाँ सौभाग्यशाली थीं’ यह कविता समकालीन स्त्री विमर्श में प्रेम की एक नई भाषा गढ़ती है। यह स्त्री को पूजा की वस्तु नहीं बनाती, बल्कि उसे बराबरी का स्पर्श देती है। प्रियंका सौरभ लिखती हैं: “वो पुरुष जो प्रेम में पूजा नहीं, पर बराबरी का स्पर्श दे सका। जो स्त्री को ‘कम’ नहीं, ‘कभी’ नहीं कह सका।” इस कविता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह ‘प्रेम’ को बिना ग्लैमर के, पूरी आत्मीयता से प्रस्तुत करती है — जहाँ स्त्री एक व्यक्ति बनती है, न कि केवल रिश्तों में गूंथी गई एक परछाई।

? आत्ममंथन का महाभारत: ‘तुम शकुनि नहीं, पर बनते क्यों हो?’ यह रचना एक आत्मालोचनात्मक प्रस्तुति है, जो पाठक से संवाद करती है। कविता किसी दूसरे को नहीं, बल्कि स्वयं को संबोधित है — अपने भीतर के षड्यंत्र को पहचानने की कोशिश: “तुम्हारे भीतर की महाभारत, अभी भी अधूरी है, जारी है। जागो उस भीतर के युद्ध से, और अपने साये को स्वीकारो।” यह कविता बहुत कम शब्दों में वह बेचैनी पैदा करती है, जो समाज को नहीं, व्यक्ति को बदलने का आग्रह करती है।

? शिक्षा और पक्षपात की त्रासदी: ‘द्रोणाचार्य की वर्ग नीति’ प्रियंका की यह कविता हमारे सामाजिक-शैक्षणिक ढाँचे की पोल खोलती है। ‘द्रोणाचार्य’ जैसे प्रतिष्ठित प्रतीक के माध्यम से वह यह दिखाने में सफल होती हैं कि न्याय केवल शिक्षा नहीं, साहस भी मांगता है: “ज्ञान बाँटना मेरा कर्म था, पर न्याय कहीं खो गया। वर्ग नीति ने उसे बंदी बना लिया।” यह कविता उस शिक्षकीय विफलता की बात करती है, जो ज्ञान को वर्ग विशेष के लिए सीमित कर देती है।

? शिल्प और भाषा प्रियंका की भाषा सीधी, पर सशक्त है। वह प्रतीकों के माध्यम से बात करती हैं — परात, दुपट्टा, चूड़ियाँ, घूंघट, राखी, छाया — ये सब कुछ उनके काव्य-लोक के जीवंत पात्र बन जाते हैं। उन्होंने हर कविता को केवल छंद में नहीं, चेतना में बुना है। उनकी कविताओं में कहीं भी दिखावे की शैली नहीं है। वे सहजता से गहरे अर्थों को पिरोती हैं। यह संग्रह छंदबद्धता या अलंकरण के पीछे नहीं भागता, बल्कि मर्म की तलाश करता है। ‘चूल्हे से चाँद तक’ उस स्त्री की आवाज़ है, जिसे सदियों तक बस ‘प्रेरणा’ बनाकर रखा गया। यह संग्रह कहता है कि अब समय है, जब स्त्री स्वयं कविता बने — शस्त्र बने — और अपने सपनों की परिभाषा लिखे। यह काव्य-संग्रह हर उस पाठक के लिए ज़रूरी है, जो कविता को केवल पढ़ना नहीं, जीना चाहता है। इसमें आँसू भी हैं, प्रतिरोध भी, और सबसे महत्वपूर्ण — उम्मीद भी। यह संग्रह हिंदी कविता की नई स्त्री-आवाज़ों में एक सशक्त हस्ताक्षर है, जो पाठक के मन में देर तक गूंजता है।

पुस्तक का नाम: चूल्हे से चाँद तक (हिंदी काव्य संग्रह) लेखिका: प्रियंका सौरभ #333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, वी.पी.ओ. बरवां, सिवानी, भिवानी, हरियाणा ✉️ priyankasauabh9416@gmail.com समीक्षक: सोनल शर्मा, देहरादून प्रकाशक: आर.के. फीचर्स, प्रज्ञानशाला (पंजीकृत) भिवानी, हरियाणा, भारत